सर्वेश श्रीवास्तव/अयोध्या: पूरे देश में धूमधाम के साथ चैत्र नवरात्रि का महापर्व मनाया जा रहा है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हर साल में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. इसमें से दो बार की नवरात्रि शारदीय और चैत्र नवरात्रि को प्रत्यक्ष तो दो बार की नवरात्रि माघ और आषाढ़ की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं. प्रत्यक्ष नवरात्रि शारदीय और चैत्र नवरात्रि में मुख्य रूप से गृहस्थ पूजा अर्चना करते हैं और इस समय माता दुर्गा के 9 स्वरूप पूजे जाते हैं, जबकि गुप्त नवरात्रि में प्रायः तंत्र-मंत्र की साधना की जाती है और माता दुर्गा की 10 महाविद्या की पूजा की जाती है.

वहीं चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है. इस साल चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हुई है, जिसका समापन 17 अप्रैल होगा. नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक माता रानी के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है. नवरात्रि के इन नौ दिनों में लोग मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं.नवरात्रि में किए गए उपायों से देवी मां को जल्द प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं.

इस स्तोत्र का करें पाठअयोध्या के ज्योतिषी पंडित कल्कि राम के अनुसार नवरात्रि के दौरान लोग अपनी मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं. ऐसे में अगर आप सौभाग्य की प्राप्ति चाहते हैं या फिर मनचाहा वर चाहते हैं तो इसके लिए नवरात्रि के दौरान आपको और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना होगा.

।अर्गला स्तोत्रम्।।ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥

स्तुवद्‌भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि१॥10॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्‍वरि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्‍वरि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्‍वरि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
.Tags: Ayodhya News, Dharma Aastha, Local18, Religion 18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : April 13, 2024, 10:01 ISTDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.



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