सौरभ वर्मा/रायबरेली: सब्जियों की बात हो और टमाटर का नाम ना आए, तो सुनने में बड़ा अजीब लगता है. क्योंकि टमाटर के बिना सब्जियों का स्वाद अधूरा माना जाता है. लाल रंग का गोल मटोल टमाटर देखने में जितना सुंदर लगता है. किसानों को इसे उगाने में भी उससे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. साल के 12 महीने मिलने वाले टमाटर की खेती करने वाले किसानों को इसमें लगने वाले रोग से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा सड़ने वाले रोग का खतरा बना रहता है.

रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि टमाटर एक कोमल और मुलायम सब्जी है. यही वजह है कि इसमें बहुत जल्दी रोग लग जाते हैं. वहीं कई बार ऐसा होता है कि खेत की नमी या किसान द्वारा खेत में उर्वरक ज्यादा डाल देने पर इसके लिए खतरा हो जाता है. इस तरह के होने वाले नुकसान से कुल उत्पादन में 20 से 30 फ़ीसदी तक कमी हो जाती है. क्योंकि इसमें मुख्यतया अगेती, पछेती रोग ,गलन रोग, छेदक कीट लगने का खतरा ज्यादा रहता है.

पौधे को सुखा देते हैं यह रोग

वह बताते हैं कि अगेती झुलसा रोग, पछेती झुलसा रोग यह रोग पौधे को सुखा देते हैं, एवं गलन रोग टमाटर में फफूंद और फाइफ्थोरा के संक्रमण से होता है. इस रोग में पौधे का तना गलने लगता है. अगर ध्यान न दिया गया, तो यह तीन से चार दिन में पूरे खेत में फैल सकता है. साथ ही टमाटर में पर्ण कुंचन रोग, मूल ग्रंथि रोग ,उकटा रोग भी लगने की संभावना ज्यादा रहती है.

अपनी फसल का ऐसे करें बचाव

लोकल 18 से बात करते हुए प्रभारी अधिकारी कृषि शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि टमाटर की फसल में लगने वाले गलन रोग से बचने के लिए किसान पौधा रोपण के पहले ही टमाटर के 1 किलो बीज में तीन ग्राम थायराम या केप्टॉन मिलाकर बीजों को रोपण करें. अगेती रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब 75 डबल्यूपी का प्रति हेक्टेयर ढाई किलो के हिसाब से छिड़काव करें. पछेती रोग के लिए मेटालेक्सिल 4 प्रतिशत और मैंकाजेव 64 प्रतिशत डब्ल्यू पी 25 ग्राम प्रति लीटर मिलाकर फसल पर छिडक़ाव करके अपनी फसल को बचा सकते हैं. टमाटर में पर्ण कुंचन रोग, मूल ग्रंथि रोग ,उकटा रोग भी लगने की संभावना ज्यादा होती. इससे बचाव के लिए किसान गोबर के खाद का खेतों में प्रयोग कर सकते हैं.
.Tags: Farming, Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : April 16, 2024, 16:18 IST



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