रिपोर्ट – सुशील सिंह

मऊ. भारत की ज्यादातर आबादी अपने जीवन यापन के लिए कृषि पर ही आधारित है. अगर पैदावार अच्छी हुई तो जीवन आसानी से कट जाता है, लेकिन यदि किसी कारणवश फसलों की पैदावार कम हुई तो काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इस मौसम में गेहूं, चना, सरसों की फसलें बोई जाती हैं. रबी की फसलों में कम उपज होने का मुख्य कारण है पाला और खर पतवार. कड़ाके की पड़ रही सर्दी से फसलों को पाला मारने का खतरा रहता है. वहीं गेहूं जैसी फसलों में खर पतवार भी आ ही जाते हैं, जो पैदावार के कम होने का अहम कारण है. ऐसे में किसान ऐसा क्या करें कि इन दोनों चीजों से अपनी फसल को सुरक्षित बचा सकें.

जिला कृषि अधिकारी सोमेश गुप्ता ने बताया कि फसलों को पाला से बचाने के लिए सही समय पर उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. इससे फसलों को पाला नहीं लगता. वहीं खरपतवार से बचाने के लिए फसलों में खर पतवारनाशी डालना चाहिए. इससे फसलों की सुरक्षा भी होती और पैदावार भी अच्छी होती है. कृषि अधिकारी ने बताया कि रबी की फसलों में मुख्य रूप से दो तरह के खर पतवार पाए जाते हैं. एक चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, हिरनखुरी, जंगली जई और खर बथुआ.

इन दवाओं से खरपतवार से मिलेगी निजातखरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 2,4-D जैसे खरपतवार नाशी की 625ग्राम की मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल कर दो बार छिड़काव करना चाहिए. वहीं गेहूं में पाया जाने वाला एक और खर पतवार है फलारिस माइनर यानी मंडूसी. यह गेहूं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. यह बिल्कुल गेहूं की तरह ही दिखता है, जिसके कारण इसकी पहचान आसान नहीं होती. इसे ‘गेंहू का मामा’ भी कहते हैं. कई जगहों पर इसे ‘गुल्ली डंडा’ भी कहा जाता है. इसे नष्ट करने के लिए आइसोप्रोटान दवा को ढाई एमएल प्रति लीटर के हिसाब से पानी में मिलाकर 2 बार फसलों पर छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा किसानों को सरसों में कीट एवं अन्य रोगों का भी प्रबंधन करना चाहिए. इसके लिए कृषि विभाग की सलाह एवं देखरेख में कीटनाशकों का प्रयोग करें.
.Tags: Local18, Mau newsFIRST PUBLISHED : January 16, 2024, 12:58 IST



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