लखनऊ. यूपी भाजपा में उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह (Dayashankar Singh) आखिर कहां से चुनाव लड़ेंगे? पहले तो ये चर्चा चली थी कि वे लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से उतर सकते हैं. उनके बैनर पोस्टर भी सरोजनी नगर विधानसभा में कई जगहों पर लग गये थे, लेकिन जैसे ही भाजपा ने वहां से राजेश्वर सिंह को उतारा वैसे ही ये चर्चा चल पड़ी है कि दयाशंकर सिंह बलिया (Ballia) से लड़ेंगे. अभी ऐसी चर्चाओं पर पूर्ण विराम नहीं लगा है, क्योंकि पार्टी ने बलिया की सभी सीटों पर प्रत्‍याशियों का ऐलान नहीं किया है.
ऐसे में सवाल उठता है कि यदि पार्टी दयाशंकर सिंह को बलिया से उतारती है, तो फिर टिकट किसका काटा जायेगा. बलिया की सात में से पांच सीटों पर भाजपा के सिटिंग विधायक हैं. सभी एक से बढ़कर एक हैं. जिन दो सीटों पर सपा और बसपा के विधायक हैं वहां से जल्दी कोई लड़ना नहीं चाहेगा. आइए समझते हैं कि बलिया की किसी भी सीट से दयाशंकर सिंह के लिए क्या मुसीबत है.
बलिया की किस सीट से लड़ेंगे दयाशंकरबलिया में विधानसभा की सात सीटें बलिया नगर, फेफना, रसड़ा, बेल्थरा रोड, बांसडीह, सिकंदरपुर और बैरिया हैं. इनमें से चार सीटों बेल्थरा रोड, फेफना, सिकंदरपुर और रसड़ा से भाजपा ने टिकट घोषित कर दिया है. अब बची तीन सीटें यानी बलिया नगर, बांसडीह और बैरिया. बलिया नगर से आनन्द स्वरूप शुक्ला भाजपा से विधायक हैं. अब क्या पार्टी इनका टिकट काटकर दयाशंकर सिंह को लड़ायेगी? जातीय समीकरण के हिसाब से ये ठीक नहीं बैठता. ऐसा होने पर पूर्वांचल में ये हवा जा सकती है कि एक ठाकुर के लिए एक जीते हुए ब्राह्मण का टिकट काटा गया. बैरिया में भी ऐसा ही हिसाब किताब है. भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह भले ही विवादों में रहते हों, लेकिन इलाके में उनकी अच्छी पकड़ रही है. उनका टिकट काटने से पार्टी को सियासी फायदा कम और नुकसान ज्यादा संभव है.
अब बची सीट बांसडीह की. यहां से तो शायद ही दयाशंकर सिंह उतरना चाहेंगे. ये सीट सपा के रामगोविन्द चौधरी की है. 2017 में वे आठवीं बार विधायक बने थे. विधानसभा में नेता विरोधी दल हैं और पुराने समाजवादी. हालांकि ऐसा नहीं है कि रामगोविन्द चौधरी को इस सीट से किसी ने हराया नहीं है. 2007 के चुनाव में वे बसपा से हारे थे लेकिन सिर्फ 488 वोटों से. भाजपा की इस सीट पर स्थिति कभी अच्छी नहीं रही है. 2007 के चुनाव में पार्टी को मात्र 3 हजार वोट मिले और वो छठी पोजिशन पर रही. 2012 में पार्टी को दूसरा स्थान हासिल हुआ, लेकिन चौधरी की जीत का अंतर 23 हजार रहा. 2017 में तो ओपी राजभर की सुभासपा के साथ लड़कर भी भाजपा जीत नहीं पाई. और तो और अरविंद राजभर तीसरे स्थान पर रहे. जाहिर है ऐसी मुश्किल सीट दयाशंकर सिंह क्यों चुनना चाहेंगे.
बता दें कि दयाशंकर सिंह मूल रूप से बक्सर बिहार के रहने वाले है जो बलिया से सटा जिला है. उनकी पढ़ाई लिखाई और शुरुआती राजनीति बलिया की ही रही है. इसीलिए ये कयास लगाये जा रहे हैं कि उन्हें बलिया से उतारा जायेगा. उनके उतारे जाने में पार्टी के सामने कई मुश्किलें तो फिलहाल दिख रही है, लेकिन मुश्किलों से पार पाकर ही तो भाजपा केन्द्र से लेकर राज्य तक सत्ता में बैठी है. ऐसे में भले ही समीकरण उल्टे दिख रहे हों, लेकिन किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

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