सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर : भारत में 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद से फसलों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा. रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से देश में अनाजों का उत्पादन अधिक तो हुआ, लेकिन इसके साथ ही कई घातक बीमारियां भी तेजी से बढ़ी. इस कारण अब खेती में नीम का प्रयोग कीटनाशक के तौर बढ़ रहा है. जैविक खेती में कीटों की रोकथाम के लिए नीम से बनने वाले कीटनाशकों को नीमास्त्र कहा जाता है. जो रस चूसने वाले छोटे कीड़े, छोटी सुंडी, इल्लियों को नियंत्रित करता है.

फफूंदी, बैक्टीरिया, विषाणु और वनस्पति पर आधारित जैविक कीटनाशक नीमास्त्र फसलों, सब्जियों और फलों में लगने वाले कीटों और रोगों से सुरक्षित कर उत्पादन बढ़ाता है. जैविक कीटनाशक से इंसान की सेहत पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता, वहीं इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य को भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. खास बात यह है कि यह बेहद सस्ता होता है. कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर के वैज्ञानिक डॉ. एनपी गुप्ता ने बताया कि नीमास्त्र बहुत ही सस्ता और उपयोगी होता है. नीमास्त्र फलों और सब्जियों को कीटों से बचाता है और उत्पादन बढ़ाने में भी मदद करता है.

नीमास्त्र तैयार करने की विधिडॉ. एनपी गुप्ता ने बताया कि नीमास्त्र बनाने के लिए 5 किलो नीम की पत्ती या फली, 5 किलो देशी गाय का गोबर और 5 किलो मूत्र की जरूरत पड़ेगी. इस सामग्री को एकत्रित करने के बाद नीमास्त्र बनाने के लिए सबसे पहले नीम के पत्तों और सूखे फलों को कूटा जाता है. इसके बाद इसमें पानी मिलाया जाता है. इसमें फिर गाय का गोबर और गौमूत्र मिलाया जाता है. इस घोल को छाया में ही रखना अच्छा माना जाता है. दो दिन के बाद इसको महीन कपड़े से छान लें. फसल, फल या सब्जी में कीट लगे हो तो वहां इसका छिड़काव करें. छिड़काव करने से 100 % फायदा होगा.

इन फसलों में करें प्रयोगडॉ. एनपी गुप्ता ने बताया कि नीमास्त्र रासायनिक कीटनाशकों के मुकाबले बेहद सस्ता होता है. इतना ही नहीं यह मानव जीवन के लिए भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. बल्कि इसका छिड़काव करने से तैयार हुई उपज पूरी तरह से जैविक होगी. नीमास्त्र का इस्तेमाल आलू, गन्ना, धान और गेहूं सहित सब्जियों पर भी किया जा सकता है.
.Tags: Agriculture, Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : March 9, 2024, 16:43 IST



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