ऋषभ चौरसिया/लखनऊ: कहते हैं लक्ष्य बनाकर हौसले के साथ किसी काम को अंजाम देने की ठान लो तो फर्श से अर्श तक पहुंचा जा सकता है. कुछ ऐसी ही कहानी है चिकनकारी का व्यापार करने वाले रमेश चंद्र अग्रवाल की. कम संसाधनों में छोटे व्यापार को शुरू कर, उसे बुलंदियों तक पहुंचाने का जज्बा रखने वाले रमेश आज व्यापार करने वालों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं. चंद पैसों में उन्होंने चिकनकारी का व्यापार शुरू किया और खुद के दम पर लाखों के मालिक बन गए हैं. इस सफलता तक पहुंचने में कई रुकावटें आईं, पर रमेश ने सबका सामना किया.

राजधानी लखनऊ के निवासी रमेश चंद्र अग्रवाल ने 1958 में वकालत की पढ़ाई की, लेकिन नौकरी नहीं मिलने से बहुत परेशान थे और लोगों की टिप्पणियों का सामना करना पड़ रहा था. एक दिन उनकी बहन की शादी हुई और विदाई के समय मिले पैसे बहन ने रमेश को दे दिए और कहा, “इस पैसे से कोई व्यापार करो.” इसके बाद रमेश ने व्यापार की शुरुआत की.

700 रुपए से किया था शुरुआत1958 में रमेश ने अपनी बहन द्वारा दिए गए 700 रुपए के साथ लखनऊ की चिकनकारी का व्यापार शुरू करने का फैसला किया. चिकन के कपड़े लोग दूर दराज से खरीदने आते थे और इसमें मुनाफा भी अच्छा था. चिकनकारी एक ऐसी कला है, जिसमें वस्त्रों पर विभिन्न रंग, ढांचे और मोटीफों का उपयोग करके नक्काशी की जाती है. इसकी खास बात यह है कि यह निर्माण कार्य को पूरी तरह से हाथ से किया जाता है, जिससे इसे एक अद्वितीय और मूल्यवान कला बनाता है.

शौक में महिलाएं करती थी कामरमेश ने बताया कि पुराने जमाने में चिकनकारी का काम बढ़े घराने की महिलाएं खाली समय में शौक में करती थीं, जिन्हें पैसे का लालच नहीं था और यह काम बहुत सस्ता और अच्छा होता था. जैसे-जैसे वक्त बितता गया, लखनऊ की चिकनकारी दुनिया भर में प्रसिद्ध हुई और आज लखनऊ के अधिकांश घरों में लोग चिकनकारी का काम करने का तरीका जानते हैं.

700 से शुरू हुआ लाखों का सफर1958 में 700 रुपए से व्यापार शुरू करके रमेश ने उस साल 27000 रुपए कमाए. उन्होंने बताया कि बहन द्वारा दिए गए पैसे ने उनका भाग्य बदल दिया था और आज जो लाखों का कारोबार है, वह उनकी बहन की देन है. अगर उनकी बहन ना होती तो आज इतने बड़े स्तर पर व्यापार नहीं होता.
.Tags: Bhai dooj, Local18, Lucknow news, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : November 15, 2023, 16:23 IST



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