सृजित अवस्थी/ पीलीभीत : उत्तरप्रदेश के पीलीभीत जिले के अमरिया इलाके में आज से तकरीबन 10 साल पहले बाघों का कुनबा देखा जाता था. एक्सपर्ट्स ने इन बाघों को शुगर केन टाइगर्स की उपाधि दी थी. लेकिन समय बीतने के साथ बाघों का यह कुनबा रहस्यमयी ढंग से गायब हो गया. लंबे अरसे से यहां एक भी बाघ को नहीं देखा गया है. जानकारों के मुताबिक अमरिया के “शुगर केन टाइगर्स” अनहोनी का शिकार हो गए हैं. वहीं दूसरी तरफ विभागीय पक्ष यह है कि सभी बाघ किसी अन्य वास स्थल की ओर प्रवास कर गए हैं.

गौरतलब है कि तराई में गन्ने का उत्पादन ज्यादा होता है. जंगल से सटे खेतों में खड़ी गन्ने की फसल को बाघ जंगल का ही हिस्सा समझते थे. नरकुल के ऊंचे-ऊंचे घास के मैदानों में रहना बाघ पसंद करते हैं. गन्ने की फसल भी नरकुल जैसी ऊंची होती है. कई बाघ तो स्थायी रूप से खेतों को ही अपना बसेरा बना चुके थे. इसी कारण विशेषज्ञों ने इन बाघों को “शुगर केन टाइगर” का नाम दिया था.

बाघों को क्यों नाम पड़ा “शुगर केन टाइगर्स”उत्तरप्रदेश के पीलीभीत जिले में हमेशा से ही बाघों की मौजूदगी देखी जाती है. एक समय था जब पीलीभीत के अमरिया इलाके के गन्ने के खेतों में देश के तमाम टाइगर रिज़र्व से भी अधिक बाघों की संख्या हुआ करती थी. गन्ने के खेत में पलते बढ़ते इस 10 बाघों के कुनबे को जानकारों ने शुगर केन टाइगर का नाम दिया था. वैसे तो आमतौर पर आबादी या फिर खेतों में डेरा जमाए बाघों को लेकर स्थानीय लोग आक्रोशित होते हैं. लेकिन यह मामला कुछ अलग था. क्योंकि आवारा पशुओं समेत नील गाय व जंगली सुअर आदि से ये बाघ फसल की रखवाली करते थे. तो ऐसे में इनको लेकर कभी विरोध के सुर भी नहीं उठे. लेकिन 2021 के बाद इस इलाके में कभी कोई बाघ नहीं देखा गया. वहीं इस इलाके में 7 तेंदुओं की मौजूदगी देखी जाने लगी. बाघ व तेंदुए कभी अपनी टेरिटरी में एक दूसरे का दखल नहीं बर्दाश्त करते. ऐसे में तेंदुओं की मौजूदगी इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि अब इस इलाके में एक भी बाघ मौजूद नहीं हैं.

ऐसे शुरू हुआ था ये सिलसिलातकरीबन 3 दशक से पीलीभीत में बतौर वनजीवन पत्रकार कार्यरत केशव अग्रवाल ने LOCAL 18 से बातचीत के दौरान बताया कि अमरिया इलाके में बाघों के कुनबे के पनपने का सिलसिला 2012 में शुरू हुआ था. नवंबर 2012 में एक बाघिन अपने 3 शावकों के साथ जंगल से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर अमरिया इलाके के गन्ने के खेतों में आ पहुंची थी. समय के साथ ही साथ यह कुनबा बढ़कर 10 तक पहुंच गया था. इन बाघों ने इलाके में स्थित शुक्ला फार्म, पैरी फार्म समेत तकरीबन 400 स्क्वायर किलोमीटर में फैले तमाम गन्ने के खेतों में अपना प्राकृतिक वास स्थल तलाश लिया था. जिसके बाद इन बाघों को “शुगर केन टाइगर ” नाम दिया गया.

2021 में आखिरी बार देखें गए बाघकेशव अग्रवाल ने बताया कि जितने बाघ अमरिया इलाके के गन्ने के खेतों में मौजूद थे उतने तो देश के कई टाइगर रिज़र्व में भी नहीं पाए जाते थे. इस पर जिम्मेदारों ने अपनी पीठ जमकर थपथपायी थी. लेकिन जंगल से बाहर इतने बाघों की मौजूदगी आबादी के साथ ही साथ बाघों की सुरक्षा के लिहाज़ से भी चिंताजनक थी. ऐसे में मेरी ओर से भी तमाम उच्चाधिकारियों को इन “शुगर केन टाइगर्स” के ट्रांसलोकेशन पर विचार करने की सलाह दी गई थी. लेकिन समय बीतने के साथ यह बाघ कम नज़र आने लगे. 2021 में आखिरी बार इस इलाके में बाघ देखा गया था.

क्या शुगर केन टाइगर्स का हुआ शिकार?केशव अग्रवाल ने बताया कि 2021 के बाद इलाके में तेंदुए अचानक बढ़ने लगे. यहां गौर करने वाली बात है कि सन 2016 में पीलीभीत के अमरिया इलाके से ही वन्यजीवों की खाल, फंदे समेत शिकारियों का गिरोह पकड़ा गया था. वहीं इलाके के एक फार्म किनारे तालाब पर कई जंगली सूअरों की लाशें मिली थीं. मृत पशुओं में जहर मिलाकर रखना शिकारियों द्वारा प्वाइजनिंग का एक सामान्य तरीका होता है. ये सभी कड़ियां किसी न किसी अनहोनी की ओर इशारा करती हैं.

पीएम मोदी को लिख चुके हैं पत्रआपको बता दें कि पीलीभीत से एकाएक 10 बाघों के गायब हो जाने का मामला वन्यजीव प्रेमियों के बीच काफी चर्चा का विषय रहा था. वन्यजीव विशेषज्ञ व उत्तराखंड स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के पूर्व सदस्य कौशलेंद्र सिंह इस पूरे मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिख चुके हैं. उन्होंने अपने पत्र में आशंका जताई है कि इन बाघों का शिकार हो गया है. वहीं उन्होंने इस पूरे मामले में उच्च स्तरीय जांच की सिफ़ारिश भी पीएम से की है.
.Tags: Local18, Pilibhit news, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : April 11, 2024, 19:41 IST



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