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अंजलि सिंह राजपूत/लखनऊ. नवाबों के शहर लखनऊ में यूं तो कई ऐसी इमारतें है जो खुद में ही बेहद रोचक इतिहास रखती हैं, लेकिन आज जिस जगह की बात हम आपको बताने जा रहे हैं उसे सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे. असल में लखनऊ में एक मूसाबाग है, जो देखने में एक वक्त पर बेहद खूबसूरत हुआ करता था. इसे मोसियो मार्टिन ने नवाब आसफुद्दौला के लिए बनवाया था. वर्तमान में यह खंडहर हो चुका है. इसी मूसाबाग के पास है एक चूहे की मजार है. जिसके नाम पर ही इस पूरे इलाके का नाम मूसाबाग पड़ा है. इस मजार पर गुरुवार के दिन हिंदू और मुस्लिम दोनों मत्था टेकने के लिए पहुंचते हैं. इे मूसा बाबा की मजार भी कहा जाता है.

इस मजार की देखरेख करने वाला शख्स गूंगा है. इस मजार तक पहुंचना भी बहुत कठिन है, क्योंकि मूसाबाग से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर मिट्टी भरे रास्ते से थोड़ी ऊपर यह मजार बनी हुई है. इसके अंदर चढ़ाने का सारा सामान रखा होता है, जैसे चादर, चुनरी और अगरबत्ती के साथ माचिस सब कुछ अंदर ही रखा होता है. भक्त यहीं से सारा सामान लेकर यहीं पर चढ़ाते हैं और चले जाते हैं.चूहे की मजार की कहानीइसको लेकर इतिहासकार और स्थानीय लोग दो अलग-अलग कहानियां बताते हैं. स्वर्गीय इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण कहते थे कि एक बार नवाब आसफुद्दौला के घोड़े के पैरों के नीचे चूहा आ गया था, जिससे दबकर उसकी मौत हो गई थी, जिसके बाद ही इसका नाम मूसाबाग रखा गया. वहीं स्थानीय लोग बताते हैं कि मूसा बाग नवाब आसफुद्दौला का सबसे प्रिय बाग था. मूसाबाग को वह जश्न मनाने के लिए इस्तेमाल करते थे. जब 1780 में जनरल क्लाउड मार्टिन लखनऊ आए तो नवाब ने यहां पर बड़े जश्न की तैयारी की थी और जश्न ऐसा हुआ था कि जिस में 500 बटेर पक्षी आग में भून दिए गए थे और बुलबुलों की जबान डालकर मीठा शोरबा बनाया गया था.

पैर के नीचे चूहा आ गयाइसी जश्न में नवाब आसफुद्दौला को मारने के लिए उनके शरबत में जहर मिला दिया गया था. इस बात से अनजान नवाब ने जैसे ही शरबत का गिलास उठाया पीने के लिए तभी उनके पैर के नीचे चूहा आ गया. जिससे घबराकर उनके हाथ से गिलास छूट गया और उस गिलास के शरबत को जब चूहे ने पिया तो उसकी मौत हो गई. शरबत को पीते ही चूहे की मौत को देखकर नवाब दंग रह गए. उन्होंने जब शरबत की जांच कराई तो पता चला उनके इस जश्न में आए हुए किसी व्यक्ति ने ही शरबत में जहर मिलाया था.

चूहे की बहादुरी को देखकर नवाब ने बनवाई मजारजब नवाब आसफुद्दौला को पता चला कि उनके शरबत में जहर था और अगर चूहा न आता तो उनकी जान चली जाती. इसको सोचकर वह बेहद भावुक हो गए थे. उन्होंने चूहे को उठाया और आज जहां पर चूहे की मजार है वहां पर उसे रीति-रिवाज के साथ दफना दिया. उन्होंने कहा कि आज से इसे चूहे की मजार के नाम से जाना जाएगा. यही वजह है कि आज भी चूहे की मजार के नाम से जाना जाता है.

अकाल मृत्यु से बचाते हैं चूहे बाबा यह पूरा इलाका मुस्लिम इलाका है, लेकिन इस मजार पर हिंदू भी जाते हैं. पास में ही दुकान चला रहे गणेश प्रसाद और कुछ मुस्लिम युवकों से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने बताया कि यह सच है कि इसे चूहे वाली मजार कहते हैं. कुछ लोग इसे मूसा बाबा की मजार कहते हैं, जो भी यहां पर आकर मत्था टेकता है वह अकाल मृत्यु से बच जाता है, जैसे कि नवाब बच गए थे.
.Tags: Latest hindi news, Local18, Lucknow news, UP newsFIRST PUBLISHED : August 01, 2023, 12:52 IST

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