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धीरेंद्र शुक्ला/चित्रकूट : जनजीवन की सुरक्षा के लिए पर्यावरण को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जरूरत है. आधुनिकता की ओर बढ़ रहे विश्व में विकास की राह में कई ऐसी चीजों का उपयोग शुरू कर दिया है, जो धरती और पर्यावरण के लिए घातक है. इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है. प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं है. लेकिन इसी प्रकृति को इंसान नुकसान पहुंचा रहा है. लगातार पर्यावरण दूषित हो रहा है, जो जनजीवन को प्रभावित करने के साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रहा है.

चित्रकूट के पर्यवारणविद गुंजन मिश्रा कुछ खास बाते समाज से जुड़ी हुई बता रहे हैं. हम सभी लोग जानते है कि पूरी दुनिया सह अस्तित्व के कारण ही चल रही है और सह अस्तित्व के सिंद्धांत का पालन किसान किसानी के माध्यम से करता है. लेकिन आज के मॉडर्न विज्ञान ने लालच के कारण सह अस्तित्व के सिंद्धांत को नकार कर करेंसी को महत्वपूर्ण बना दिया.

धरती पर जीवन के लिए असली करेंसी जल, वायु, मिट्टी, आदि है.इसीलिए सरकारद्वारा नेचुरल फार्मिंग, अमृत सरोवर, सोलर ऊर्जा, आदि कुल मिलाकर लाइफ का जो मंत्र प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया है, पर्यावरण संरक्षण के लिए इसकी जरूरत है. यही कारण है कि किसान ही इस धरती को सजा और सवार सकता है, क्योंकि किसान का पूरा जीवन प्रकृति पर आधारित है. अब प्राकृतिक वसीयत के लिए प्रयास होने चाहिए. विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर आज जीवन से प्लास्टिक कम करने से काम नहीं चलेगा.हमको पंचमहाभूतों के संरक्षण का संकल्प लेना होगा.

पृथ्वी को फिर से सजाने का काम करना होगाचिंतन और मनन के साथ हम सबकोपृथ्वी को फिर से सजाने का काम करना होगा. अन्यथा हमारी मात्र आर्थिक वसीयत आने वाली पीढ़ी को और ज्यादा संकट में डाल देगी. अब समय आ चुका हैजब हमको प्राकृतिक वसीयत लिखनी चाहिए.

आज तक समाचार के माध्यम द्वारा जो चुनाव को लेकर या किसी प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के कार्यों का आंकलन किया गया. उसमे आमजन से कोई भी सवाल पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर नहीं किया जाता है, जबकि नरेन्द्र यानि स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि यह समस्त प्रकृति आत्मा के लिए है ना की आत्मा प्रकृति के लिए. यहां ध्यान देने वाली यह बात है कि स्वामी जी ने शरीर को लेकर प्रकृति का कोई सम्बन्ध नहीं बताया.

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वर्तमान समय में सबसे ज्यादा जहर खेती में डाला जा रहा हैपर्यवारणविद गुंजन मिश्रा बताते हैं कि कभी कृषि को इसीलिए सर्वोच्च जीवन का साधन माना गया था क्योंकि उस समय की कृषि में सहस्तित्व के सिद्धांत का पूर्णतः पालन होता था. लेकिन आज विश्व में सबसे अधिक जहरडाला जा रहा है. तो वो खेती के माध्यम सेसरकार द्वारा अगर भारतीय संस्कृति के हिसाब से देखा जाय किसानो को पुनः यह मौका दिया जा रहापालनहार बनिये विनाशक नही.
.Tags: Chitrakoot News, Up news in hindiFIRST PUBLISHED : June 05, 2023, 18:01 IST

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