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सौरव पाल/मथुरा: गुरु पूर्णिमा का पर्व हिन्दू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है. यह परंपरा तब से चली आ रही है जब से भगवान कृष्ण भी गुरुकुल जा कर शिक्षा ग्रहण किया करते थे. हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है और इस दिन सभी शिष्य अपने गुरुओं की विधि विधान से पूजा करते है. लेकिन क्या आप जानते है इस परंपरा की शुरुआत आखिर हुई कैसे?

वृंदावन के भागवताचार्य बद्रीश जी ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन 18 पुराणों के रचयिता जिन्होंने वेदों का सम्पादन कर के चार विभागों में विभाजन किया ब्रह्मसूत्र के रचयिता और जिन्होंने महाभारत को लिखा, ऐसे महान महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. इसीलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. महर्षि वेदव्यास जी ने संसार को महाभारत और पुराणों के जरिए जो ज्ञान दिया उसके सम्मान में पूरे संसार ने उन्हे सर्वश्रेष्ठ गुरु का स्थान दिया और उनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाना शुरू किया. वेद व्यास का जन्म द्वापरयुग के अंत के दौर में हुआ था. व्यास जी भगवान ब्रह्मा जी का ज्ञानकला विशिष्ट अवतार माना जाता है. जिस प्रकार ब्रह्मा जी का काम निर्माण करना उसी प्रकार वेद व्यास जी ने कई पुराणों और ग्रंथो का निर्माण कर ब्रह्मा जी के कार्यों को आगे बढ़ाया.

ब्रज में कहते है मुड़िया पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा का पर्व ब्रज में भी बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मथुरा के गोवर्धन में राजकीय मुड़िया पूर्णिमा मेला भी आयोजित होता है और करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगते है. गुरु पूर्णिमा को ब्रज में मुड़िया पूर्णिमा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान कृष्ण के अवतार चैतन्य महाप्रभु के शिष्य और वृंदावन के छः प्रमुख गोस्वामियों में से एक श्री सनातन गोस्वामी ने अपना देह त्याग दिया था.

गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण है मुड़िया पूर्णिमा मेला

सनातन गोस्वामी जीवन के अंतिम समय तक गोवर्धन की नित्य परिक्रमा किया करते थे. सनातन गोस्वामी प्रभु के अनन्य भक्त थे. जिन्होंने वृंदावन के मदनमोहन मंदिर के विग्रहों को प्रकट कर उनकी स्थापन की थी. जब गोस्वामी जी का देहांत हुआ तो उनके शिष्यों समेत सभी ब्रजवासियों ने अपना सर मुड़वा कर गोस्वामी जी के पार्थिव शरीर के साथ गोवर्धन की प्ररिक्रमा और वृंदावन के पास मदन मोहन मंदिर के पास उन्हें समधी दी और करीब 500 वर्ष से भी अधिक समय से यही परंपरा ब्रज में चली आ रही है.
.Tags: Hindi news, Local18, Religion, Religion 18FIRST PUBLISHED : July 02, 2023, 14:35 IST

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