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नई दिल्ली. बहुगुणा परिवार (Bahuguna Family), ये नाम सामने आते ही अविभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर विभाजन के बाद के उत्तर प्रदेश (UP) और उत्तराखंड का एक ‘पॉवर सेंटर’ सामने आता है. इस परिवार से यूपी और उत्तराखंड को मुख्यमंत्री मिला. सांसद, विधायक, मेयर मिले. केंद्र और प्रदेश में मंत्री मिले. प्रदेश अध्यक्ष मिले. लेकिन, आज इस परिवार का एक शख्स विधानसभा की एक अदद सीट के लिए संघर्ष करता दिख रहा है. और, स्थिति में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ तो टिकट की उम्मीद भी खत्म ही होती दिख रही है. यहां बात हो रही है मयंक जोशी की.
मयंक जोशी का शुरुआती परिचय एक बीजेपी कार्यकर्ता का है. उनका दावा है कि वह पिछले 12 साल से समाजिक कार्य में लगे हुए हैं. साल 2017 से बीजेपी के लिए प्रचार कर रहे हैं. लेकिन, एक पार्टी कार्यकर्ता को टिकट नहीं मिलना बड़ा मामला नहीं है, बल्कि वह पार्टी कार्यकर्ता इलाहाबाद से बीजेपी सांसद रीता बहुगुणा जोशी का बेटा है और उस स्थिति में भी टिकट मिलता नहीं दिख रहा है, जिसमें रीता बहुगुणा ने कह दिया कि एक परिवार से एक टिकट की व्यवस्था है तो वह अपनी लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे देंगी, लेकिन मयंक को टिकट मिल जाए. इसके बाद भी उन्हें निराशा मिलती दिख रही है.
रीता बहुगुणा जोशी के परिवार का एक समृद्ध राजनैतिक इतिहास रहा है. रीता बहुगुणा खुद कांग्रेस की यूपी अध्यक्ष रही हैं. महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रही हैं. इलाहाबाद की मेयर रही हैं और खास बात है कि उनका कार्यकाल इतना शानदार रहा था कि उन्हें दक्षिण एशिया के सबसे बेहतरीन मेयर चुना गया था. वह महिलाओं के मुद्दे पर काफी मुखर रही हैं. वह इलाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रही हैं और दो किताबें भी लिख चुकी हैं. रीता ने साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस से किनारा कर लिया था और बेजीपी ज्वाइन कर ली थीं.
बीजेपी में जाने के बाद भी रीता बहुगुणा जोशी का पॉलिटिकल ग्राफ बढ़ता ही गया. पहले उन्हें लखनऊ कैंट से टिकट मिला, जहां उन्होंने सपा की अपर्णा यादव को करारी शिकस्त दी. इसके बाद वह प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें इलाहाबाद से मैदान में उतारा और यहां भी उन्हें बड़ी जीत हासिल हुई. हालांकि, बेटे मयंक के टिकट को लेकर कई रिपोर्ट्स में ये कहा गया कि रीता नाराज हैं.
पिता थे कद्दावर नेतारीता बहुगुणा जोशी ने राजनीति बचपन से ही देखा और समझा था. उनके पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शामिल रहे. वह पहली बार साल 1952 में विधानसभा पहुंचे थे. इसके बाद वह लगातार 1977 तक विधानसभा चुनाव जीतते रहे. वह दो बार अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. वह केंद्र में भी पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्रवरक मंत्री रहे. इसके बाद वह केंद्रीय वित्त मंत्री भी बने.
मां भी रही हैं सांसदरीता की मां भी राजनीति में सक्रिय रहीं और इमरजेंसी के बाद बदले हालात में जनता पार्टी से फूलपुर लोकसभा से मैदान में उतरीं और सांसद के रूप में जीत कर संसद पहुंची. वह एक प्रखर वक्ता के रूप में जानी जाती थीं.
भाई उत्तराखंड के सीएम थे रीता के भाई विजय बहुगुणा भी राजनीति में काफी सक्रिय रहे. वह कांग्रेस के सदस्य रहे और उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने के बाद उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय हो गए. वह उत्तराखंड के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में 2012 से 2014 तक बागडोर संभाले.
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पार्टी से बगावत का रहा है इतिहासहेमवंती नंदन बहुगुणा ने इमरजेंसी के बाद बदले हालात में कांग्रेस से बगावत कर दी थी और बाबू जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बना ली थी. इस पार्टी का बाद में जनता दल में विलय हो गया था. इसके बा वह चौधरी चरण सिंह की सरकार में देश के वित्तमंत्री बने. इसके बाद एक बार फिर वह कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन एक बार फिर वह लोकदल में शामिल हुए. इसी से वह 1984 का लोकसभा लड़े थे, जिसमें अमिताभ बच्चन ने उन्हें शिकस्त दी थी.

ऐसे ही विजय बहुगुणा को भी कांग्रेस ने सीएम बनाया था. लेकिन, साल 2016 में उन्होंने भी बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. बाद में जोशी ने भी बीजेपी ज्वाइन कर ली. अब ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि रीता के बेटे मयंक समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं और विधानसभा की सीट के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. जो बहुगुणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए पूरे प्रदेश में टिकट बांटती थीं, आज वह अपने बेटे के लिए एक विधानसभा की सीट के लिए संघर्ष कर रही हैं. शायद यही राजनीति का चक्र है, जहां कुछ भी स्थायी नहीं है.

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