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लखनऊ. उत्तर प्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव की रस्साकशी शुरू हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी के चुनाव अभियान को धार देने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आधा दर्जन से अधिक बार यूपी का दौरा कर चुके हैं. सत्ताधारी पार्टी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए लगातार अभियान चला रही है. वहीं दूसरी ओर मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी भी ‘बाइस में बाइसिकिल’ के नारे के साथ एक बार फिर से यूपी पर शासन करने का दावा कर रही है. इसके नेता अखिलेश यादव पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. प्रदेश की तीसरी प्रमुख पार्टी मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी भले औपचारिक चुनाव अभियान पर न दिख रही हों, लेकिन तैयारियां पूरी हैं. इसके अलावा यूपी में अपनी पहचान बनाने के लिए देश की सबसे पुराना पार्टी कांग्रेस भी दमखम दिखा रही है.
इन सभी सियासी दलों के बीच इस बार के चुनाव में कुछ चेहरे हैं, जो राजनीतिक परिदृश्य से गुम हैं. ये वो चेहरे हैं, जिन्हें यूपी की राजनीति से जोड़कर देखा जाता रहा है. उत्तर प्रदेश की सियासत के इन दिग्गजों को इस बार आम जनता भी ‘मिस’ करेगी. चाहे वह राष्ट्रीय लोकदल के चौधरी अजीत सिंह हों या बीजेपी के दिग्गज कल्याण सिंह. सपा नेता और पार्टी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे के तौर पर जाने-पहचाने जाने वाले आजम खान हों या लखनऊ की पॉलिटिक्स से पहचान बनाने वाले लालजी टंडन, 2022 के सियासी संग्राम में ये चेहरे नजर नहीं आएंगे. इन चारों नेताओं में से 3 की पिछले कुछ सालों में मृत्यु हो चुकी है, वहीं आजम खान फिलहाल अलग-अलग मामलों को लेकर जेल में बंद हैं.
कल्याण सिंह

बीजेपी के लिए कल्याण सिंह की कमी कोई छोटी कमी नहीं है. कल्याण सिंह को उनके समर्थक ‘बाबू जी’ भी कहा करते थे. वे बीजेपी के लिए यूपी में पिछड़ा वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं. वह यूपी में बीजेपी के सबसे पहले सीएम रहे हैं. कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन के एक अहम योद्धा भी रहे हैं, जिसके बाद उनकी पिछड़ा वर्ग से आगे जाकर एक व्यापक स्वीकार्यता भी रही है. पिछले साल ही कल्याण सिंह का निधन हो गया.
चौधरी अजीत सिंह

यूपी विधानसभा चुनाव में चौधरी अजीत सिंह की कमी भी खलेगी. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह पश्चिमी यूपी के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक रहे हैं. उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल बनाकर इसका विस्तार किया और केंद्र में मंत्री भी रहे. वह जाटों के बड़े नेताओं में से एक रहे हैं. पिछले साल ही उनका निधन हो गया, जिसके बाद अब उनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे जयंत के हाथ में है, लेकिन उनका चुनावी रैलियों में न होना पाटी के लिए एक कमजोर पक्ष है.
आजम खान

आजम खान उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के लिए सबसे प्रमुख चेहरा रहे हैं. समाजवादी पार्टी में रहते उन्होंने सूबे के मुस्लिमों को मुलायम सिंह के साथ जोड़ दिया था. इसके बाद सपा मुस्लिम वोटों के बूते सत्ता में आई. इस बार सपा की कमान अखिलेश यादव के हाथ में है, लेकिन आजम खान इस समय जेल में हैं. आजम खान अब किसी भी राजनीतिक रैली में नजर नहीं आएंगे. अब जब ओवैसी मुस्लिमों को अपनी ओर खींचने की कोशिश में रैलियां कर रहे हैं तो समाजवादी पार्टी को आजम खान की कमी निश्चत तौर पर खल रही होगी.
लालजी टंडन

 उत्तर प्रदेश में लालजी टंडन भी बीजेपी के बड़े नेता रहे हैं. वह अब इस दुनिया में नहीं हैं. इस बार बीजेपी की चुनावी रैलियों में उनकी कमी भी देखने को मिलेगी. खत्री समाज से आने वाले लालजी टंडन का सूबे में बड़ा जातीय जनाधार भले ही नहीं रहा, लेकिन उन्होंने पूरे यूपी में अपनी गहरी पहचान बनाई. उनकी रैलियों में भी भारी भीड़ देखने को मिलती थी. वह कल्याण सिंह सरकार में सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक थे. पिछले साल ही उनका निधन हो गया और बीजेपी की रैलियों में उनकी कमी भी देखने को मिलेगी.

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