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सहारनपुर. पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सहारनपुर (Saharanpur) जिला कभी दलित राजनीति का केंद्र बिंदु हुआ करता था. दलित सियासत के दबदबे के बीच जहां एक कोण काजी रशीद मसूद (Rashid Masood) बनाते थे, वहीं उनके सियासी विरोधी चौधरी यशपाल (Chaudhary Yashpal) भी समीकरणों को बनाने और बिगाड़ने में अहम रोल अदा करते थे. अब इनके वारिसों इमरान मसूद और चौधरी रुद्रसेन ने कड़ाके की ठंड के बीच सहारनपुर से लेकर लखनऊ तक का सियासी पारा बढ़ा रखा है. बताया जा रहा है कि रुद्रसेन के पेच की वजह से ही तामझाम के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हुए इमरान मसूद को जिले में टिकटों के बंटवारे में अपेक्षित भाव नहीं मिला. वह इससे नाराज बताए जा रहे हैं. इसके चलते गठबंधन के टिकटों की घोषणा तो फंसी ही है, इमरान भी दूसरा ठौर तलाश रहे हैं. इस चुनाव में भीम आर्मी का गठन कर चर्चाओं में आए आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की भी सियासी परीक्षा होगी. उनकी भी सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ बात बनते बनते बिगड़ चुकी है. वहीं, भाजपा ने अपने सभी पत्‍ते खोल दिए हैं. इन सियासी सरगर्मियों के बीच आइए समझते हैं सहारनपुर की सभी सातों सीटों के समीकरण को.
सहारनपुर शहर विधानसभा सीटसमाजवादी पार्टी के संजय गर्ग मौजूदा विधायक हैं. उन्‍होंने भाजपा प्रत्‍याशी और सिटिंग विधायक राजीव गुंबर को हराया था. इससे पहले इस सीट पर भाजपा नेता राघव लखनपाल शर्मा का कब्‍जा था. राघव के पिता निर्भयपाल शर्मा जिले में भाजपा के कद्दावर नेता थे. उनकी हत्‍या के बाद राघव ने कमान संभाली थी. एक बार सरसावा और दो बार सहारनपुर शहर सीट से विधायक रहे थे. 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतने पर हुए उपचुनाव में राजीव गुंबर जीते थे. सहारनपुर के सियासी जानकारों का कहना है कि 2017 में ही इस सीट पर अपने भाई के लिए टिकट चाह रहे थे. इस बार वह खुद भी दावेदारों में थे. सपा नेता संजय गर्ग की इस सीट पर मजबूत पकड़ है खासकर भाजपा के परंपरागत वोटर माने जाने वाले व्‍यापारी वर्ग में. उन्‍होंने भाजपा से ही सियासत शुरू की थी. बसपा होते हुए अब सपा में हैं. इस चुनाव में भी संजय गर्ग इस सीट पर मजबूत दावेदारों में से एक हैं. देखना होगा कि गुटबाजी और भितरघात से निपटकर राजीव गुंबर कितनी चुनौती पेश कर पाते हैं. सहारनपुर शहर सीट पर इस बार 3,49,364 मतदाता हैं. इनमें 1,90,567 पुरुष और 1,58,770 महिला हैं. पंजाबी और व्‍यापारी वर्ग इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाता है.
सहारनपुर देहात विधानसभा सीटइमरान मसूद के करीबी मसूद अख्‍तर 2017 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. हाल ही में उन्‍होंने भी इमरान मसूद के साथ कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी ज्‍वाइन कर ली थी. वहां तवज्‍जो न मिलने पर इमरान के साथ मसूद अख्‍तर भी नया ठौर तलाश कर रहे हैं. इन सबके बीच मुख्‍य पेच मसूद अख्‍तर के टिकट लेकर ही है. दरअसल, सहारनपुर की राजनीति में कभी काजी रशीद मसूद और चौधरी यशपाल का दबदबा होता था. दोनों ही विपरीत ध्रुव थे. कभी एक साथ किसी पार्टी में नहीं रहे. मसूद अगर मुलायम के साथ रहे तो यशपाल कांग्रेसी हो जाते थे. जब यशपाल मुलायम के करीब आते थे तो मसूद कांग्रेसी हो जाते थे. अब काजी रशीद मसूद के सियासी उत्‍तराधिकार इमरान मसूद के पास है तो चौधरी यशपाल के उत्‍तराधिकारी उनके बेटे चौधरी रुद्रसेन हैं. वर्तमान में वह सपा के जिलाध्‍यक्ष हैं. सहारनपुर देहात सीट से टिकट के मुख्‍य दावेदार हैं. उन्‍हें दरकिनार कर मसूद अख्‍तर को टिकट देना सपा के लिए थोड़ी मुश्‍किल वाली बात होगी. इमरान मसूद को अपने से अधिक मसूद अख्‍तर के टिकट की चिंता है. वह किसी भी सूरत में इससे समझौता नहीं करना चाहते हैं. इस सीट पर दलित और मुस्‍लिम वोटर निर्णायक स्‍थिति में हैं. बसपा भी यहां मजबूत रही है. पिछले चुनाव में उसके प्रत्‍याशी जगपाल को मसूद अख्‍तर ने 12,324 मतों से हराया था. अब जगपाल भाजपा का दामन थाम चुके हैं. भाजपा ने उन्‍हें टिकट से भी नवाज दिया है, उनके सामने इस सीट पर कमल खिलाने की चुनौती होगी. बसपा ने इस बार अजब सिंह यहां से टिकट दिया है.
बेहट विधानसभा सीट2017 के चुनाव में नरेश सैनी ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की थी. सहारनपुर में नरेश की गिनती भी इमरान मसूद के करीबी नेताओं में होती थी. हालांकि अब नरेश ने अपनी राहें इमरान से जुदा कर ली हैं. उन्‍होंने भाजपा का दामन थाम लिया है. भाजपा ने उन्‍हें टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया है. बसपा ने हाजी इकबाल की जगह रईस मलिक को उतारा है. इस सीट पर दलित, मुस्‍लिम, सैनी और राजपूत वोटर निर्णायक स्‍थिति में हैं. पिछले चुनाव में नरेश सैनी को 97,035 वोट मिले थे,  उन्होंने भाजपा प्रत्याशी महावीर राणा को 25,856 वोट से हराया था. महावीर राणा को 71,449 वोट मिले थे. बसपा प्रत्याशी हाजी मो. इकबाल तीसरे नंबर थे, उन्हें 71,019 वोट मिले थे.
नकुड़ विधानसभा सीटइस सीट पर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे धर्म सिंह सैनी और इमरान मसूद में सालों से वर्चस्‍व की लड़ाई चल रही है. दोनों कांटे की टक्‍कर देखने को मिलती है. एक बार इमरान मसूद निर्दलीय यहां से चुने गए थे. पिछले तीन बार से धर्म सिंह सैनी इमरान पर भारी पड़ते रहे हैं. पिछला चुनाव उन्‍होंने भाजपा से लड़ा था. उससे पहले वह हाथी की सवारी कर रहे थे. परस्‍पर विरोधी दोनों नेता अब एक ही मंच पर आ गए थे. इमरान मसूद की सपा से बात बिगड़ने की एक वजह यह भी है. अगर सपा इमरान को नकुड़ के सियासी मैदान से उतारती है तो फिर धर्म सिंह सैनी के लिए मुश्‍किल हो जाती. 2017 के चुनाव में धर्म सिंह सैनी को 94375 वोट मिले थे. कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को 90318 वोट मिले थे. इस सीट पर भी मुस्‍लिम, दलित, गुर्जर और सैनी वोटर निर्णायक स्‍थिति में हैं. धर्म सिंह के पार्टी छोड़ने पर भाजपा ने मुकेश चौधरी को यहां से उम्‍मीदवार बनाया है. गुर्जर नेता मुकेश भी कभी इमरान ब्रिगेड के अहम सदस्‍य हुआ करते थे.
देवबंद विधानसभा सीटप्रसिद्ध इस्‍लामिक इदारे दारुल उलूम के चलते देवबंद की देश दुनिया में पहचान है. इस विधानसभा सीट पर राजपूत और मुस्‍लिम मतदाताओं की वर्चस्‍व है. 2017 में भाजपा से बृजेश सिंह विजयी हुए थे. उन्होंने बसपा के माजिद अली को हराया था. बृजेश को 102244 वोट, जबकि माजिद अली को 72844 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी के माविया अली थे. उन्‍हें 55385 वोट मिले थे. इसके पहले हुए उपचुनाव में माविया अली ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी. बृजेश को ध्रुवीकरण और सपा व बसपा के बीच मुस्‍लिम वोटों के बंटवारे का लाभ मिला था. बसपा ने इस बार चौधरी राजेंद्र सिंह को उतारा है. भाजपा से बृजेश सिंह फिर चुनावी मैदान में हैं, इस बार जीत को दोहराना उनके लिए चुनौती होगा.
रामपुर मनिहारान विधानसभा सीट यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. 2008 के परिसीमन के बाद अस्‍तित्‍व में आई थी. 2017 के चुनाव में इस सीट पर भाजपा और बसपा के बीच बहुत नजदीकी मुकाबला हुआ था. भाजपा प्रत्‍याशी देवेंद्र निम मात्र 595 वोट से बसपा के रविंद्र मोल्‍हू से जीते थे. इस बार भी भाजपा ने देवेंद्र पर ही भरोसा जताया है. बसपा से रविंद्र मोल्‍हू का ही उतरना तय है. इस सीट पर भी मुस्‍लिम, दलित, सैनी और गुर्जर विरादरी का वोटर जीत हार में अहम भूमिका निभाता है. यहां बसपा का वर्चस्‍व माना जाता है. भीम आर्मी के उभार के बाद यह 2022 का पहला चुनाव होगा, जिसके परिणाम से चंद्रशेखर और उनकी आजाद समाज पार्टी का कद तय होगा.
गंगोह विधानसभा सीट हमेशा से सहारनपुर की राजनीति के केंद्र बिंदु में रहने वाला मसूद परिवार गंगोह का ही रहने वाला है. इस सीट पर मसूद परिवार का गहरा प्रभाव है. हालांकि चाचा से बगावत कर इमरान मसूद के अलग राह पकड़ने से यह सीट इस परिवार से दूर हो गई है. इस बार भी परिवार के बीच आपस में ही भिड़ंत देखने को मिल सकती है. परिवार की इस लड़ाई का लाभ इस बार भी भाजपा को मिल सकता है. अब इमरान के जुड़वा भाई नोमान मसूद ने अलग राह पकड़ ली है. पहले वह कांग्रेस छोड़ सपा में गए थे. इमरान की सपा से नजदीकी बढ़ी तो वह बसपा में चले गए हैं. बसपा से ही वह चुनावी समर में उतरने की तैयारी कर चुके हैं. उधर इमरान ने भी अपने अस्‍तबल सजा लिए हैं. सपा से बात बिगड़ने की स्‍थिति में वह बसपा में ठौर तलाश रहे हैं. इस सीट पर मुस्‍लिम मतदाताओं के साथ गुर्जर मतदाताओं का भी दबदबा है. दोनों एक दूसरे को बराबरी की टक्‍कर देने की स्‍थिति में हैं. 2017 में यहां से भाजपा के प्रदीप चौधरी निर्वाचित हुए थे. प्रदीप चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी नौमान मसूद को 38028 मतों से हराया। 2019 में प्रदीप चौधरी कैराना से जीतकर लोकसभा पहुंच गए. इसके बाद उपचुनाव में बीजेपी के कीरत सिंह ने कांग्रेस के नोमान मसूद को छह हजार से अधिक वोट के अंतर से हराया था. इस बार भी भाजपा ने कीरत पर ही भरोसा जताया है.

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