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कयाम रज़ापीलीभीत. उत्तर प्रदेश में पीलीभीत जिले का पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र (Puranpur Assembly Seat) अपने आप में एक नया इतिहास गढ़ रहा है. यहां पिछले तीन बार के विधानसभा चुनाव (UP Chunav) से यह देखा गया है कि पूरनपुर की जनता जिस पार्टी का विधायक चुनती है, सूबे में उसी की सरकार बनती है. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में यहां से बसपा के विधायक अरशद खां जीते तब यूपी में बहुजन समाज पार्टी की पहली बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. वर्ष 2012 में ये सीट आरक्षित हो गई तो यहां से सपा प्रत्याशी पीतमराम विजयी हुए और इस अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा सरकार आई. इसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में बीजेपी के विधायक बाबूराम बने और तब बीजेपी ने सरकार बनाई. अब 2022 के आगामी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में जनता किस पार्टी के साथ जाती ये देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि यहां किसी को जल्दी दोबारा मौका नहीं मिलता.
यह विधानसभा क्षेत्र भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है और यूपी के लखीमपुर और शाहजहांपुर जिले की सीमा जुड़ा है. लखनऊ से दिल्ली जाने वाला नेशनल हाइवे 730 इसका मुख्य मार्ग है. पहाड़ों से निकलने वाली शारदा नदी के किनारे बसा पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र गोमती नदी के उद्गम स्थल के लिए जाना जाता है. यहां से निकलने वाली गोमती नदी के किनारे प्रदेश की राजधानी लखनऊ जगमगा रही है. लखनऊ से यह लगभग 250 किलोमीटर दूर है, वहीं जनपद मुख्यालय पीलीभीत से इसकी दूरी 40 किलोमीटर है. यहां एशिया का सबसे बड़ा कच्चा शारदा सागर डांम है, जिससे दर्जन भर जिलों को खेतों की सिंचाई के लिए पानी मिलता है. प्रसिद्ध चूका स्पॉट, जिसे स्थानीय लोग मिनी गोवा भी कहते हैं और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व भी यहीं है.
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पूरनपुर सीट का इतिहास1962 में पूरनपुर को पहला विधायक कांग्रेस पार्टी से मिला, जिनका नाम था मोहन लाल आचार्य.1967 में भी आचार्य दोबारा विधायक बने. इनके बाद 1969 से 1974 तक में भारतीय क्रांति दल से हरनारायण सक्सेना विधायक रहे. 1974 में BJS (भारतीय जन संघ ) से हरीश चंद्र (हरिबाबू), 1977 में JNP से बाबू राम ,1980 और 1985 में में डॉ. विनोद तिवारी कांग्रेस पार्टी से विधायक बने. इसके बाद 1989 जनता दल से हरनारायण दूसरी बार विधायक बने. फिर 1991 में राम लहर में प्रमोद कुमार (मुन्नू) बीजेपी से जीते. वहीं 1993 के चुनाव में जनता दल ने मेनका गांधी के भाई वीएम सिंह को इस सीट पर उतारा, जो इस चुनाव में विजयी रहे. इसके बाद 1996 में सपा के गोपाल कृष्ण जीत कर आए. 2002 में डॉ. विनोद तिवारी तीसरी बार जीते. हालांकि इस बार वह बीजेपी से चुनाव लड़े और जीते के साथ ही सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री मंत्री भी बने. वर्ष में 2007 में अरशद खान बसपा से जीत कर आए. 2012 में यह सीट आरक्षित हो गई और इस बार सपा से पीतमराम जीते वहीं 2017 में बीजेपी से फिर बाबूराम पासवान आए और पूरनपुर के विधयाक बने. ऐसा माना जा रहा है कि इस बार यहां बाबूराम और पीतमराम के बीच ही टक्कर देखने को मिलेगी.
पूरनपुर विधानसभा का सामाजिक तानाबानाआंकड़ों के अनुसार, पूरनपुर विधानसभा में कुल मतदाता 3 लाख 77 हज़ार 810 हैं, जिसमें पुरुष 2 लाख 2 हजार 277 और महिला मतदाता 1 लाख 75 हज़ार 513 हैं. इसके अलावा 20 मतदाता अन्य श्रेणी के हैं. वोटरों में पिछड़े समाज और अनुसूचित जाति की संख्या बल ज्यादा है. जातिगत आकड़े पर नजर डालें तो यहां पासी वोट लगभग 40 हजार है, ब्राह्मण लगभग 40 हजार, किसान लोध 55 हजार के आस-पास, मुस्लिम 70 हजार के आस-पास, वहीं सिख वोटर 22 हजार, जाटव 28 हजार, यादव 7000 लगभग हैं. इसके अलावा बंगाली और थारू लोग भी यहां बसते हैं.
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कैसा था पिछला चुनाववर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित पूरनपुर सीट पर किस्मत आजमाने के लिए 8 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, लेकिन मुकाबला बीजेपी और सपा में था. कुल मतदाता 3 लाख 77 हजार के आस-पास थे. इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी बाबूराम पासवान ने 1,28,593 यानी 52.54% वोट हासिल कर मजबूत जीत दर्ज की. माना जाता है कि बाबूराम की अपने पासी समाज पर अच्छी पकड़ है और इसी का लाभ उन्हें विधानसभा चुनाव में मिला. वहीं दूसरे नंबर पर रहे सपा उम्मीदवार पीतम राम को 36.49% यानी 89251 वोट ही मिल पाए.

पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो एक बात साफ है कि यहां वोटर किसी एक पार्टी की तरफ टिक कर नहीं रहता है. हालांकि पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र में मेनका गांधी और वरुण गांधी का खासा प्रभाव माना जाता है. ऐसे में देखना होगा कि पुरनपुर सीट से इस बार किस पार्टी का विधायक जीतता है और सूबे में किसकी सरकार बनती है.

आपके शहर से (पीलीभीत)

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