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अंजली शर्मा, कन्नौज. संयोगिता के पिता कन्नौज के राजा जयचंद थे. भारत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में संयोगिता के अपहरण को भी गिना जाता है. पृथ्वीराज की 13 रानियों में से संयोगिता अत्यधिक रूपवान थी. इतिहासकार सुशील राकेश ने बताया की पृथ्वीराज रासो में 12वीं सदी के राजा, पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर एक महाकाव्य है. इसे पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि, चंद बरदाई ने लिखा था. पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता के बीच प्रेम की कहानी, साहस की एक आकर्षक गाथा है. पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश के राजा थे, जिनका शासन वर्तमान हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था.

पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिमोx द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप की विजय से पहले दिल्ली पर शासन करने वाले अंतिम राजपूत राजा के रूप में भी जाना जाता है. पृथ्वीराज की वीरता की कहानियां कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता के कानों में पहुंची और इसी कारण संयोगिता पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करने लगी. किवदंती के अनुसार पृथ्वीराज के दरबार में पन्ना रे नाम के चित्रकार थे. जिन्होंने कन्नौज का दौरा किया. इसी दौरान पन्ना रे ने राजा जयचंद और राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर दिखाई थी.

इसी चित्रकार ने वापस लौटने पर संयोगिता के चित्र को चित्रित किया और उसे पृथ्वीराज चौहान को दिखाया. कहने की जरूरत नहीं है कि पृथ्वीराज चौहान भी संयोगिता की खूबसूरती से विस्मित हो गए.

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जयचंद द्वारा संयोगिता के लिए स्वयंवर का आयोजनजयचंद ने अपनी बेटी के लिए एक स्वयंवर की व्यवस्था करने का फैसला किया. जयचंद ने पृथ्वीराज को छोड़कर सभी राजाओं को निमंत्रण भेजा. पृथ्वीराज चौहान का और अधिक अपमान करने के लिए उन्होंने पृथ्वीराज की एक मूर्ति बनवाई और इसे द्वार रक्षक के रूप में स्थापित किया. लेकिन संयोगिता ने पहले ही पृथ्वीराज चौहान को अपना दिल दे दिया था. जब राजकुमारी संयोगिता को पता चला कि उन्हें स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया गया है, तो वह अंदर से टूट गई और पृथ्वीराज चौहान को एक पत्र लिखकर उनसे शादी करने की इच्छा व्यक्त की.

संयोगिता स्वयंवर के दिन क्या हुआ?स्वयंवर के दिन संयोगिता ने सभी राजाओं और राजकुमारों को पीछे छोड़ दिया और प्रत्येक को अस्वीकार करते गई. और अंत में द्वार रक्षक के रूप में पृथ्वीराज चौहान की जो प्रतिमा जयचंद ने बनवाई थी. उस प्रतिमा तक संयोगिता पहुंच गई. उस समय पृथ्वीराज़ चौहान प्रतिमा के पीछे छुपे हुए थे. संयोगिता के पहुंचने पर तुरंत बाहर आये और जैसे ही पृथ्वीराज चौहान सामने आए वैसे ही संयोगिता ने उनके गले में वरमाला डाल दी. जिसके बाद पृथ्वीराज संयोगिता को भरे दरबार से अपने साथ लेकर निकल गए.
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