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हाइलाइट्सज्ञानवापी श्रृंगार गौरी विवाद मामले में वाराणसी कोर्ट ने 12 सितंबर तक के लिए फैसला सुरक्षित रखा था. ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मामले में वाराणसी जिला जज ऐके विश्वेश सोमवार को फैसला सुनाएंगे.लखनऊ/वारणसी. काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ लगी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद को लेकर अब सबकी नजरें बनारस में कोर्ट से 12 सितम्बर को आने वाले फैसले पर टिकी हुई है. 12 सितंबर को आने वाले फैसले के बाद ही ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद विवाद का भविष्य तय होगा. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई दावे किए गए, जिसमें कहा गया कि 16वीं सदी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को गिराकर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी.
काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ लगी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सदियों पुराना विवाद है तो इसकी परतें भी कई हैं. चलिए जानते हैं यह विवाद कितना पुराना है और असल में यह पूरी कंट्रोवर्सी क्या है; और मामले में कब क्या हुआ?
वर्ष 1991 में याचिकाकर्ता स्थानीय पुजारियों ने वाराणसी कोर्ट में एक याचिका दायर की. इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद एरिया में पूजा करने की इजाजत मांगी थी. इस याचिका में कहा गया कि 16वीं सदी में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई थी. दरअसल, काशी विश्वानाथ मंदिर का निर्माण मालवा राजघराने की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. याचिकाकर्ताओं का दावा था कि औरंगजेब के आदेश पर मंदिर के एक हिस्से को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई गई. उन्होंने दावा किया कि मस्जिद परिसर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं और उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा की इजाजत दी जाए. हालांकि, 1991 के बाद से यह मुद्दा समय-समय पर उठता रहा, लेकिन कभी भी इसने इतना बड़ा रूप नहीं लिया, जितना इस समय है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी थी.
वहीं मामले में इसके बाद वाराणसी के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने निचली अदालत में एक याचिका दायर की और कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण अवैध तरीके से हुआ था. इसके साथ ही उन्होंने मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की. यह याचिका अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिसंबर 2019 में दायर की गई थी. अप्रैल 2021 में वाराणसी कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग को मस्जिद का सर्वे करके रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया. हालांकि, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने शंकर रस्तोगी की याचिका का वाराणसी कोर्ट में विरोध किया. बाद में उन्होंने कोर्ट के आदेश पर मस्जिद में हो रहे सर्वे का भी विरोध किया.
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का कहना है कि नंदी भगवान की प्रतिमा आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है, नंदी का मुंह मस्जिद की ओर है. नंदी का मुंह हमेशा शिवमंदिर की ओर होता है, इससे साफ है कि मंदिर मस्जिद के भीतर ही है. मस्जिद के भीतर ज्ञानकूप और मंडप है. मस्जिद के ऊपर जो गुंबद हैं वो पश्चिमी दीवार पर खड़े हैं और पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का हिस्सा है. मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर ब्रह्म कमल है, पश्चिमी दीवार पर बना गुंबद हिंदू कलाकृति की दीवार है और इसके ऊपर मस्जिद बना है जोकि साफ दिखता है.
यूं तो काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आधा दर्जन से ज्यादा मुकदमे अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं. लेकिन, यह मामला बेहद खास है क्योंकि तत्कालीन सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने इसी मामले पर कमीशन के आदेश जारी किए थे. इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे परिसर की कमीशन की कार्यवाही की गई थी. इसी कमीशन की कार्यवाही के दौरान मस्जिद के बजूखाने में शिवलिंग के होने का दावा किया गया. हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक 1993 से पहले तक मस्जिद के कुछ हिस्सों में हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक पूजा होती थी और इस ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया है.
हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था. विवाद इतना बढ़ा कि इस कमीशन की कार्यवाही के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया कमेटी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. मुस्लिम पक्ष लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल के चरित्र को बदला नहीं जा सकता. साथ ही साथ 1991 के विशेष उपासना स्थल कानून के तहत कमीशन की कार्यवाही भी गलत है.
बता दें कि श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन पूजन मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निचली अदालत मुकदमे की मेटेंनबिल्टी पर सुनवाई हो रही थी. आसान भाषा में कहा जाए तो रुल 7/11 यानी की ज्ञानवापी मुकदमे की मेटेंनबिल्टी का मतलब यह हुआ कि क्या ज्ञानवापी मामले में जो मुकदमा दायर किया गया है उस आगे सुनवाई की जाए या फिर नहीं, वाराणसी कोर्ट इस मसले पर अपना बड़ा फैसला सुनाएगा.
जून के आखिरी हफ्ते से लगातार इस मामले पर हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के वकीलों द्वारा दलीलें पेश की जा रही थीं. सुनवाई पूरी होने के बाद ज्ञानवापी मुकदमा सुनने योग्य है या नहीं, इस मसले पर फैसले को जिला जज ने रिजर्व कर लिया. मामले पर जिला जज ऐके विश्वेश अब 12 सितंबर को फैसला सुनाएंगे. ज्ञानवापी मामले में अदालत का फैसला मंदिर में पूजा अर्चना की मांग के मुद्दे को अदालती मामलों में एक नही दिशा देगी. देखना बेहद अहम है कि पूजा के अधिकार की लड़ाई का भविष्य क्या होता है?
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |FIRST PUBLISHED : September 10, 2022, 14:29 IST

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