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मानसिक रोग एक गंभीर समस्या है जो लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि मानसिक रोगियों में घातक बीमारियों का खतरा अधिक होता है. ब्रिटेन के एंजीला रस्किन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 76,60,590 मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों और 1,94,123 मनोरोगियों के स्वास्थ्य डेटा की तुलना की. अध्ययन में पाया गया कि मानसिक रूप से स्वस्थ लोगों की तुलना में मनोरोगियों में हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, मिर्गी, किडनी, दिल और श्वसन संबंधी रोगों जैसी घातक बीमारियों का खतरा 1.84 गुना अधिक था.
शोधकर्ताओं ने कहा कि यह निष्कर्ष चिंताजनक है क्योंकि दुनिया भर में मानसिक रोग से पीड़ित 71% लोगों को आवश्यक इलाज नहीं मिल पाता है. निम्न और कम आय वाले देशों में मानोरोगियों के लिए हालात और भी खराब हैं. शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि मानसिक रोगियों को अपने शरीर में हो रही दिक्कतों के बारे में समय से पता नहीं चल पाता है. इससे वह कई बार गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसके अलावा, मानसिक रोगियों में जीवनशैली संबंधी कारक, जैसे कि धूम्रपान, शराब का सेवन और व्यायाम की कमी भी घातक बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकती है.
भारत में क्या है स्थितिदुनिया भर में मानसिक रोगियों की संख्या लगभग एक अरब है. भारत में मानसिक स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति की बात करें तो यहां की तकरीबन आठ प्रतिशत आबादी किसी ना किसी मनोरोग से पीड़ित है. इसका मतलब है कि भारत में लगभग 120 मिलियन लोग मानसिक रोग से पीड़ित हैं. वैश्विक परिदृश्य से तुलना करें तो आंकड़ा और भी भयावह नजर आता है, क्योंकि दुनिया में मानसिक और तंत्रिका (न्यूरो) संबंधी बीमारी से पीड़ितों की कुल संख्या में भारत की हिस्सेदारी लगभग 15 फीसदी है. इसका मतलब है कि भारत में मानसिक रोगियों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है.
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमीगौर करने वाली बात है कि यह संख्या तब है जब, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भारत के आम जनमानस की स्थिति बेहद दयनीय है. देश की बहुत बड़ी आबादी आज भी गावों में रहती है, जो कि गरीबी और तंगहालीपूर्ण जीवन जीने को मजबूर है. इन लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का स्तर बहुत कम है.

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