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चित्रकूट. बुंदेलखंड (Bundelkhand) के प्राचीन कामतानाथ मंदिर (Kamtanath Temple) से सटे कामदगिरी पर्वत से हजारों साल पुरानी जलधारा मिली है. यह जलधारा कोई साधारण जलधारा नहीं है, बल्कि यह भगवान राम की आस्था से जुड़ी मंदाकिनी नदी की लाइफलाइन रही है. यूपी और एमपी की सीमा पर सतना जिले के चित्रकूट की दो पवित्र नदियां पयस्विनी और सरयू के अवैध अतिक्रमण से लुप्त होने पर एनजीटी ने भी सख्ती की है. इन्हें बचाने के लिए लगाई गई याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने कलेक्टर सतना को निर्देश दिए हैं कि इन नदियों के किनारों का सीमांकन किया जाए. राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार जो भी जमीन सरकारी या नदी के नाम से दर्ज हो उस पर से सभी अवैध कब्जे हटाए जाएं. अतिक्रमण की जद में 18 मकान आ रहे हैं, जिन्हें हटाना प्रशासन के लिए अब चुनौती जैसा है.
पूरे देश में ही गंगा की तरह मंदाकिनी को पावन माना गया है, लेकिन यह नदी सूख गई है. मंदाकिनी नदी में सती अनुसुइया के पहाड़ों के साथ कामदगिरी पर्वत के प्राकृतिक स्रोत भी जलधारा पहुंचती रही है, लेकिन प्राकृतिक दोहन और अतिक्रमण ने नदी के ही प्राचीन स्रोतों को सुखा दिया था. इसे एक बार फिर खोज निकाला गया है और इसे मंदाकिनी में मिलाने की कवायद शुरू कर दी गई है, लेकिन रास्ते में किए गए अतिक्रमण को लेकर प्रशासन कोशिशों में जुटा है.
बुंदेलखंड में जल संरक्षण पर काम करने वाले लोगों का मानना है कि कामदगिरी पर्वत पयस्विनी नदी का उद्गम स्थल रहा है. यह विलुप्त हो गई थी. अब इस प्राचीन नदी की जलधारा को खोज निकाला गया है. पयस्विनी नदी के प्राकृतिक स्रोत से यहां नीचे बने ब्रह्मकुंड का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है. इस नदी के संरक्षण के लिए प्रशासन ने भी मुहिम शुरू की है. यहां स्टॉप डैम की खुदाई का कार्य तेजी से चल रहा है. जलधारा आने के बाद दूर-दूर से पहुंचने वाले श्रद्धालु ब्रह्मकुंड के दर्शन को पहुंचने लगे हैं.
मझगवां सतना के उपजिलाधिकारी पीसी त्रिपाठी ने इस जलधारा को वापस मंदाकिनी नदी से जोड़ने को लेकर पहल शुरू कर दी है. चित्रकूट कामदगिरि प्रमुख द्वार के महाराज स्वामी मदन गोपाल दास ने इसको लेकर संतों के साथ बैठक की है. कई समाजसेवी भी पयस्विनी को फिर से प्राचीन रूप देने के अभियान में जुट गए हैं. बुंदेलखंड में पानी कार्यकर्ता और शोध छात्र रामबाबू तिवारी का कहना है कि यदि मंदाकिनी को बचाना है तो पयस्विनी को जीवन देना होगा. इस दौरान संपूर्ण पयस्विनी की खुदाई एवं गहरीकरण के लिए प्रयास बहुत ही जरूरी हैं. इस नदी को पुराने रूप में लौटाने के लिए कुछ निःशुल्क जेसीबी मशीनें अरेंज की गईं हैं. इसमें सरकार और प्रशासन से भी सहयोग मांगा जा रहा है.

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