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रिर्पोट- अभिषेक सिंह

गोरखपुर: गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध मेला और गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ इसकी देखरेख स्वयं करते हैं. पिछले लगभग 6 वर्षों से वह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री भी हैं और इसलिए उनके पास पूरे राज्य के लोगों की जिम्मेदारी है. लेकिन वह गोरक्षनाथ मंदिर परिसर में होने वाले आध्यात्मिक, दार्शनिक और मेले जैसे तमाम कार्यक्रमों पर खुद भी नजर बनाए रखते हैं. इसी वजह से पिछले 4 दिनों में दूसरी बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं रात्रि कालीन भ्रमण पर निकल कर तैयारियों का जायजा ले रहे हैं, जिससे आने वाले श्रद्धालुओं को कोई समस्या ना हो.

सीएम योगी ने किया मेला परिसर का भ्रमणगोरक्ष पीठाधीश्वर और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेला परिसर में स्थित खोया पाया केंद्र, चिकित्सा व्यवस्था और अन्य शिविरों की पड़ताल कर सभी सुविधाओं की बारीक जानकारी ली है. श्रद्धालुओं के ठहरने के उचित प्रबंध की भी जानकारी प्राप्त कर सभी को निर्देशित किया है .

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योगी ने बच्चों को भी दुलारामंदिर परिसर में रात्रिकालीन भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्रद्धालुओं से खुद मुलाकात कर उनका हाल चाल लिया. खिचड़ी चढ़ाने के लिए दूर दराज जिलों से आए श्रद्धालुओं से उन्होंने ठहरने की व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त किया. इस दौरान श्रद्धालुओं का जवाब सुनकर सीएम संतुष्ट हुए की सारी व्यवस्थाए ठीक है. इस दौरान मुख्यमंत्री ने कुछ श्रद्धालुओं के साथ आए उनके बच्चों को पास बुलाकर दुलारा और उन्हें आशीर्वाद दिया कि खूब अच्छे से पढ़ाई करके अपना और अपने माता-पिता का नाम रोशन करें.

त्रेतायुग से चली आ रही है खिचड़ी चढ़ाने की परंपराबता दें कि गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुगीन मानी जाती है. मान्यता है कि तत्समय आदि योगी गुरु गोरखनाथ एक बार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार मे पहुंचे. मां ने उनके भोजन का प्रबंध किया. कई प्रकार के व्यंजन देख बाबा ने कहा कि वह तो योगी हैं और भिक्षा में प्राप्त चीजों को ही भोजन रूप में ग्रहण करते हैं.

उन्होंने मां ज्वाला देवी से पानी गर्म करने का अनुरोध किया और स्वयं भिक्षाटन को निकल गए. भिक्षा मांगते हुए वह गोरखपुर आ पहुंचे और राप्ती और रोहिन के तट पर जंगलों में बसे इस स्थान पर धूनी रमाकर साधनालीन हो गए. उनका तेज देख तभी से लोग उनके खप्पर में अन्न (चावल, दाल) दान करते रहे. इस दौरान मकर संक्रांति का पर्व आने पर यह परंपरा खिचड़ी पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई. तब से बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने का क्रम हर मकर संक्रांति पर अहर्निश जारी है.

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