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सर्वेश श्रीवास्तव/अयोध्या: सनातन धर्म में हर पर्व हर त्योहार का अपना अलग महत्व होता है. लेकिन जब करवा चौथ का व्रत हो तो उसका महत्व और अधिक होता है. सनातन धर्म को मानने वाली सुहागिन महिलाएं करवा चौथ के व्रत का इंतजार बेसब्री से करती है. हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए निराचल का व्रत रखती है. इस दिन 16 श्रृंगार कर अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए मां करवा की पूजा आराधना करती है. इस दिन विशेष रूप से चांद को छलनी से देखने के भी परंपरा है. करवा चौथ की पूजा में चंद्र देवता को अर्घ दिया जाता है.अयोध्या की ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि करवा चौथ को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें कहा जाता है करवा नाम की एक स्त्री जो भद्रा नदी के पास रहती थी तो एक बार उसके पति भद्रा नदी में स्नान कर रहे थे और उसके पति को मगरमच्छ ने खींच रहा था. तो उस दौरान करवा अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से प्रार्थना की. जिसके बाद यमराज प्रसन्न हुए और कहा इस दिन जो महिलाएं तुम्हारे नाम का व्रत रखेंगी . उन्हे अपने पति की लंबी आयु का वरदान मिलेगा. साथ ही सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इतना ही नहीं धार्मिक ग्रंथो के अनुसार करवा चौथ में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा है. इस दिन माता पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय की पूजा आराधना की जाती है और शाम के समय में चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ दिया जाता है. छलनी को चंद्रमा का देखने से आशय है कि तमाम विसंगतियों से मुक्ति मिलती है.क्यों मनाया जाता है करवा चौथ?धार्मिक ग्रंथो के अनुसार करवा चौथ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है. जिसमें कहा जाता है एक बार प्राचीन काल में एक साहूकार के आठ बच्चे थे. जिसमें सात बेटे और एक बेटी थी. एक बार ऐसा हुआ जब साहूकार की बेटी में अपने पति की लंबी देर का आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा. इसके बाद उसकी हालत बिगड़ती गई और उसे भूख लग गई. हालत खराब होते थे उसके भाइयों ने भूख से तड़पनता देखकर उसे खाना खाने को कहा लेकिन साहूकार की बेटी ने खाना खाने से मना कर दिया. कहा जाता है कि भाइयों ने ऐसी योजना बनाई की चांद निकलने से पूर्व ही एक पेड़ पर चढ़कर छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रखा. इसके बाद बहन से कहा कि चांद निकल आया है और बहन भी भाइयों की बात मान ली और अपना व्रत खोल दिया. लेकिन जैसे ही व्रत खोला वैसे ही ससुराल में उसके पति की मृत्यु हो जाती है. इसके बाद इंद्राणी ने उन्हें चौथ की पूजा और व्रत करने को कहा इसके बाद छलनी से पहले चांद देखने के बाद पति को देखा. ऐसी मान्यता है कि तभी से हाथ में छलनी लेकर बिना छल कपट के चांद को देखने के बाद पति की दीदार की परंपरा शुरू हुई.(नोट: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष के मुताबिक है न्यूज़ 18 इसकी पुष्टि नहीं करता है.).FIRST PUBLISHED : October 26, 2023, 20:24 IST

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