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Soap Harmful For Skin: बाजार में आजकल तरह-तरह के बॉडीवॉश आ गए हैं. लोग फ्रेग्नेंस और अपनी पसंद के अनुसार इसे चुनते हैं. लेकिन काफी समय पहले से बाथरूम में साबुन ही देखने को मिलता आ रहा है. अब बॉडीवॉश ने इनकी जगह ले ली है. फिर भी हमारे घरों में आज भी सफेद, लाल साबुन देखने को मिल ही जाता है. नहाने के लिए भले ही लोग शॉवर जेल या बॉडीवॉश का इस्तेमाल करते हों लेकिन टॉयलेट के लिए कई घरों में आज भी लोग साबुन ही रखते हैं. आपको बता दें कि टॉयलेट सोप की कैटिगरी नहाने वाले साबुन से अलग होती है. आज जानेंगे इन दोनों में अंतर और इससे स्किन पर क्या प्रभाव पड़ता है. 
नहाने वाले और टॉयलेट साबुन में अंतरहम नहाने के लिए अलग और टॉयलेट के लिए अलग साबुन चुनते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि साबुन को उनके इंग्रीडिएंट के आधार पर कैटगराइज किया जाता है. साबुन में एक TFM वैल्यू होती है जिसे टोटल फैटी मैटर कहते हैं. ग्रेड 1 के साबुन में 76 से अधिक TFM होता है. अगर ग्रेडिंग के अनुसार देखें तो ग्रेड 1 को छोड़कर बाकी सभी ग्रेड के साबुन टॉयलेट साबुन की कैटगिरी में आते हैं. वहीं ग्रेड 1 की कैटगिरी वाले साबुन बादिंग यानी नहाने के लिए होते हैं. 
साबुन से बॉडी को नुकसान रोजाना साबुन से नहाने से स्किन के नैचुरल ऑयल्स निकल जाते हैं. इस तरह हमारी बॉडी का पीएच बैलेंस बिगड़ जाता है. क्योंकि नहाने वाले साबुनों में टोटल फैटी मैटर ज्यादा होता है. ये केमिकल्स शरीर को नुसाकन पहुंचाते हैं. इससे स्किन की नमी कम होने के चलते कई बार ड्राईनेस आ जाती है. साबुन के ज्यादा इस्तेमाल से आपकी स्किन खुरदुरी और फट जाती है. जिससे बैक्टीरिया को स्किन में प्रवेश करने का मौका मिल जाता है. साबुन में ट्राइक्लोसन और ट्राइक्लोकार्बन नामक केमिकल्स आपकी स्किन में एलर्जिस और बीमारियों का खतरा बढ़ा सकते हैं. 
Disclaimer: इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है. हालांकि इसकी नैतिक जिम्मेदारी ज़ी न्यूज़ हिन्दी की नहीं है. हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें. हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है.

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