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हाइलाइट्सवह अपने जमाने के देश के टॉप वकील थे, जिनकी फीस काफी मोटी होती थीमुकदमों के सिलसिले में उनका यूरोप जाना आमबात थीअपने जमाने में देश के सबसे धनी लोगों में गिने जाने लगे थे मोतलाल नेहरू 06 फरवरी को मोतीलाल नेहरू की पुण्यतिथि होती है. वह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू थे. उनकी गिनती देश के बड़े नेताओं में होती थी. वैसे वो अपने जमाने के देश के टॉप वकील थे. जिनकी फीस काफी मोटी होती थी. उनकी धनदौलत को लेकर अक्सर कहानियां प्रचलित हैं. 1900 की शुरुआत में उनका बार-बार यूरोप जाना सामान्य बात थी. उनके ठाठबाट के कई किस्से हैं. हालांकि बाद में जब वो आजादी की लड़ाई में कूदे तो उन्होंने अपनी लग्जरी जिंदगी छोड़कर ना केवल सादगी भरी जिंदगी अपनाई बल्कि अपनी बहुत सी संपत्ति भी कांग्रेस को समर्पित कर दी.

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सद्शिवम ने उनके बारे में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट के एक जर्नल में लिखा, “वो विलक्षण वकील थे. अपने जमाने के सबसे धनी लोगों में एक. अंग्रेज जज उनकी वाकपटुता और मुकदमों को पेश करने की उनकी खास शैली से प्रभावित रहते थे. शायद यही वजह थी कि उन्हें जल्दी और असरदार तरीके से सफलता मिली. उन दिनों भारत के किसी वकील को ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग दुर्लभ था. लेकिन मोतीलाल ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल किए गए.”

विकीपीडिया उनके जीवन के बारे में कहती है, उन्होंने बचपन में अपने पिता को खो दिया. उनके बड़े नंदलाल नेहरू ने उन्हें पाला. नंदलाल आगरा हाईकोर्ट में वकील थे.

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जब अंग्रेज हाईकोर्ट को आगरा से इलाहाबाद ले आए तो परिवार इलाहाबाद में आ गया. फिर यहीं का होकर रह गया. नंदलाल की गिनती उन दिनों बड़े वकीलों में होती थी. उन्होंने छोटे भाई को बढिया कॉलेजों में पढाया और फिर कानून की पढाई के लिए कैंब्रिज भेजा.

मोतीलाल नेहरू (फाइल फोटो)

लंबे और असरदार व्यक्तित्व वाले मोतीलाल बोलने की कला से सहज आकर्षण का केंद्र बन जाते थे. कैंब्रिज में वकालत की परीक्षा में उन्होंने टॉप किया. फिर भारत लौटकर कानपुर में ट्रेनी वकील के रूप में प्रैक्टिस शुरू की. उन दिनों ब्रिटेन से पढ़कर आए बैरिस्टरों का खास रुतबा होता था. देश में बैरिस्टर भी गिने चुने ही होते थे.

फिर एक केस के हजारों मिलने लगेजब तीन साल बाद मोतीलाल ने इलाहाबाद आकर 1988 में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की, तो सबकुछ आसान नहीं था. बड़े भाई नंदलाल के निधन के बाद बड़े परिवार का बोझ भी उनपर था. अंग्रेज जज भारतीय वकीलों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे. मोतीलाल ने तकरीबन सभी अंग्रेज जजों को प्रभावित किया. पी. सदाशिवम लिखते हैं, ‘उन्हें हाईकोर्ट में पहले केस के लिए पांच रुपए मिले. फिर वो तरक्की की सीढियां चढ़ते गए. कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.” बाद में उन्हें एक केस के लिए बहुत मोटी रकम मिलने लगी, जो हजारों में थी.

उनकी छोटी बेटी कृष्णा हथीसिंग ने अपनी किताब इन्दु से प्रधानमंत्री में अपने पिता के बारे में लिखा, पिताजी की कानून पर पकड़ बहुत अच्छी थी. वो मेहनत भी डटकर करते थे. इसलिए आमदनी भी खूब होने लगी. विरासत संबंधी हिंदू कानून का उनका ज्ञान अद्भुत था. लाखन रियासत के उत्तराधिकार वाले ए मुकदमे में ही उन्हें बहुत सा रुपया मिला था.

देश के सबसे महंगे वकील बन गएउनके पास बड़े जमींदारों, तालुकदारों और राजे-महाराजों के जमीन से जुड़े मामलों के केस आने लगे. वो देश के सबसे महंगे वकीलों में शुमार हो गए. उनका रहन सहन यूरोपियन था. कोट पैंट, घड़ी, शानोशौकत और घर में वैसी ही नफासत. 1889 के बाद वो लगातार मुकदमों के लिए इंग्लैंड जाते थे. वहां महंगे होटलों में ठहरते थे.

मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी दो साल की वकालत में ही 20 हजार रुपए में स्वराज भवन खरीद लिया

तब 20 हजार रुपयों में खरीदा स्वराज भवन 1900 में मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में महमूद मंजिल नाम का लंबा चौड़ा भवन और इससे जुड़ी जमीन खरीदी. उस जमाने में उन्होंने इसे 20 हजार रुपयों में खरीदा. फिर सजाया संवारा. स्वराज भवन में 42 कमरे थे. बाद में करोड़ों की ये प्रापर्टी को उन्होंने 1920 के दशक में भारतीय कांग्रेस को दान दे दी.

आनंद भवन के फर्नीचर यूरोप और चीन से आए1930 के दशक में उन्होंने सिविल लाइंस के पास एक और बड़ी संपत्ति खरीदी. इसे उन्होंने आनंद भवन नाम दिया. बताया जाता है कि इस भवन को सजाने संवारने में कई साल लग गए. इसमें एक से एक बेमिसाल और कीमती सामान और फर्नीचर थे.

बताया जाता है कि इसके फर्नीचर और सजावट के सामान खरीदने के लिए मोतीलाल ने कई बार यूरोप और चीन की यात्राएं कीं. 1970 के दशक में इंदिरा गांधी ने इसे देश को समर्पित कर दिया.

अपने परिवार के साथ मोतीलाल नेहरू (फाइल फोटो)

कपड़े लंदन से सिलकर आते थे, यूरोप में धुलने जाते थेमोतीलाल नेहरू के बारे में कहा जाता है कि उनके कपड़े लंदन से सिलकर आते थे. यही नहीं ये कपड़े ऐसे होते थे, जिनकी खास धुलाई होती थी, जो यूरोप में ही होती थी, लिहाजा उन्हें इलाहाबाद से वहां भेजा जाता था. हालांकि बाद में उनके बेटे जवाहर लाल नेहरू ने इसका खंडन किया कि उनके कपड़े धुलने के लिए विदेश जाते थे. बल्कि उन्होंने यहां तक कहा कि ये एकदम बेतुकी बात है.

मोतीलाल नेहरू की छोटी बेटी कृष्णा ने अपनी आत्मकथा में लिखा, “उनका परिवार तब पाश्चात्य तरीके से रहता था, जब भारत में इसके बारे में सोचा भी नहीं जाता था. डायनिंग टेबल पर एक से एक महंगी क्राकरीज और छूरी-कांटे होते थे.”

अंग्रेज आया काम करती थींकृष्णा ने ये भी लिखा, “उन दिनों उनके परिवार में उन दिनों एक या दो अंग्रेज आया काम करती थीं. परिवार में बच्चों को पढाने के लिए अंग्रेज ट्वयूटर आते थे.”

जवाहर को लंदन में कैसे रखाजवाहरलाल नेहरू जब हैरो और ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ने के लिए गए तो शानोशौकत से रहते थे. कहा जाता है कि पिता मोतीलाल ने उनकी सुविधा के लिए पूरे स्टाफ के साथ कार और शौफर की व्यवस्था की हुई थी. जब जवाहरलाल का दाखिला लंदन में होना था तो मोतीलाल अपने पूरे परिवार के साथ चार-पांच महीने के लिए लंदन चले गए. वहां पूरा परिवार शानोशौकत से रहा.

मोतीलाल नेहरू पर डाकटिकट

इलाहाबाद में पहली विदेशी कार नेहरू परिवार में आईउन दिनों भारत में कारें नहीं बनती थीं, बल्कि विदेश से खरीदकर मंगाई जाती थीं. इलाहाबाद में उन दिनों शायद ही कोई कार थी. इलाहाबाद की सड़कों पर आई पहली विदेशी कार नेहरू परिवार की थी.

अंग्रेज चीफ जस्टिस खास तवज्जो देते थे भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सदशिवम ने अपने लेख में लिखा, “उन दिनों सर जॉन एज इलाहाबाद में चीफ जस्टिस थे. वो मोतीलाल को बेहद काबिल वकीलों में रखते थे. जब वो जिरह करने आते थे तो उन्हें सुनने के लिए भीड़ लग जाती थी. वो हमेशा अपने केस को ना केवल असरदार तरीके से पेश करते थे बल्कि खास तरीके से पूरे मामले को समझा पाने में सक्षम रहते थे.”

उन्हें पैसा कमाना पसंद थामोतीलाल 1900 के बाद कई दशकों तक भारत के सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले वकील बने रहे. उनकी गिनती तब देश के सबसे धनी लोगों में भी होती थी. उन्होंने अपने बेटे जवाहर को एक बार लिखा, “मेरे दिमाग में स्पष्ट है कि मैं धन कमाना चाहता हूं लेकिन इसके लिए मेहनत करता हूं और फिर धन अर्जित करता हूं. हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इससे कहीं ज्यादा पाने की इच्छा रखते हैं लेकिन मेहनत नहीं करते.”

मोतीलाल नेहरू (फाइल फोटो)

तब वो शीर्ष पर थे1920 के दशक में जब मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को सुना-समझा और उनके करीब आए तो वो वकालत छोड़कर देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. हालांकि तब वो टॉप पर थे और बहुत पैसा कमा रहे थे. अक्सर ये भी कहा जाता है कि उस समय जब भी कांग्रेस आर्थिक संकट से गुजरती थी तो मोतीलाल उसे धन देकर उबारते थे. वो दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. उनका निधन छह फरवरी 1931 को लखनऊ में हुआ.

लेकिन उनके परिवार ने सहा भी बहुतहालांकि ये बात भी सही है कि आजादी की लड़ाई में किसी परिवार ने सबसे ज्यादा सहा तो ये उन्हीं का परिवार था. एक समय ऐसा भी आया कि उनके परिवार के ज्यादातर लोग जेल में होते थे. अंग्रेज सरकार अक्सर उनके घर में छापा डालती थी. परिवार के ज्यादातर लोगों के जेल में रहने के कारण इंदिरा गांधी का ज्यादा बचपन अकेलेपन में बीता. कृष्णा हथीसिंह लिखती हैं, गांधीजी से मिलने के बाद हमारा जीवन एकदम बदल गया. हम लोग सादगी से रहने लगे. पिताजी ने वैभव का एकदम त्याग कर दिया. उन्होंने अपनी बहुत सी प्रापर्टी कांग्रेस को दे दी. यहां तक उन्होंने अपना एक मकान ही कांग्रेस को कार्यालय बनाने के दे दिया.

अच्छी खासी चलती वकालत छोड़ देशसेवा में आ गएवो धीरे धीरे गांधीजी से इतने प्रभावित हो गए कि अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर राजनीति में कूद पड़े. घर में होने वाली पार्टियां बंद हो गईं. घर में सादगीपूर्ण खाना परोसा जाने लगा. विदेशी कपड़े त्यागकर पूरा परिवार साधारण भारतीय कपड़ों में आ गया.
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