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University Of Allahabad: ‘मेरी उम्र का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मैं देश का चौथा सबसे पुराना इलाहाबाद विश्वविद्यालय (Allahabad University) हूं, मेरी उम्र अब 135 साल हो चुकी है लेकिन हर साल आने वाली नई पौध और उनकी खिलखिलाहट इसका एहसास नहीं होने देती.

अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक मेरी स्थापना 23 सितंबर 1887 को हुई थी, उस समय ब्रिटिश हुकूमत थी. शुरू में ही मुझे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ, हालांकि बाद के वर्षों में यह तमगा मुझसे छीन लिया गया. लेकिन 14 जुलाई, 2005 को मुझे फिर से सेंट्रल यूनिवर्सिटी बना दिया गया.

University of Allahabad: देश का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय.

पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड (Allahabad University)मेरी स्थापना के पीछे एल्फ्रेड लायर की प्रेरणा थी. ब्रिटिश हुकूमत के समय भारत में कलकत्ता (कोलकाता), बॉम्बे (मुंबई) और मद्रास यूनिवर्सिटी के बाद मेरी स्थापना की गई. पूरब में होने के कारण मुझे ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ दी ईस्ट यानि ‘पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड’ भी कहा गया. मेरे परिसर में पढ़ने के लिए पहली प्रवेश परीक्षा 1889 में हुई. मुझे स्थापित होने के लिए सरकार की ओर से 5240 रुपए का लोन दिया गया, जिसे दो वर्षों में चुका दिया गया.

Allahabad University: ऐसे शुरू हुआ था पहला सेशन.

इसके बाद 1892-93 में मेरी कमाई से सरकारी फंड में निवेश किया गया, जो 1899-1900 तक बढ़कर 34000 रुपए हो गए, जिसके बाद सीनेट हॉल, लॉ कॉलेज, लाइब्रेरी का निर्माण कार्य 1910 में शुरू हुआ, जो 1915 में जाकर पूरा हुआ. बताते हैं कि इसका निर्माण कार्य पूरा करने में 11 लाख 67 हजार 275 रुपए लागत आई. वर्ष 1923 में सरकार ने मेरा दायरा बढ़ाने का फैसला किया और 7 लाख रुपए में इंडियन प्रेस की संपत्ति भी मेरी हो गई.

और ऐसे संवरता गया मैं  (History of Allahabad University)मेरे परिसर की साज सज्जा अचानक से नहीं हुई, इसमें काफी समय लगा. अमरनाथ झा हॉस्टल, जो पहले म्यूर हॉस्टल के नाम से जाना जाता था, 1910-11 में बनकर तैयार हुआ. इसी तरह लॉ हॉस्टल, जो अब सर सुंदर लाल हॉस्टल है, वह 1914-15 में बना. वर्तमान का न्यू हॉस्टल जिसे पंडित गंगा नाथ झा हॉस्टल कहते हैं वर्ष 1928 में बना. इसी तरह हिंदू हॉस्टल जिसका पूरा नाम हिंदू बोर्डिंग हाउस है, वह 1922 में बना. मेरे परिसर में बने हॉलैंड हॉल, पीसी बनर्जी हॉस्टल, मुस्लिम हॉस्टल के बनने की भी अपनी अपनी कहानियां हैं.

इलाहाबादी शैली की छाप मेरे परिसर में कई ऐसी कलाकृतियां और बनावटें हैं, जो ठेठ इलाहाबादी अंदाज में गढ़ी गई हैं, जिसकी छाप आज भी दिखाई देती है. मेरे परिसर का गणित विभाग मेरे अस्तित्व में आने से भी पहले का है. यह विभाग दो मंजिला गॉथिक शैली में बनाया गया है. इसकी वास्तुकला में ठेठ इलाहाबादी मेहराब व छाया-आकृति दिखती है. इतना ही नहीं, इसकी कक्षाओं में ऊँची गुबंद भी दिखाई देती है. कभी देश के राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा व प्रधानमंत्री रहे वीपी सिंह की शिक्षा-दीक्षा भी मेरे ही परिसर की छांव में हुई.‘
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