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रिपोर्ट- अभिषेक जायसवाल
वाराणसी. देश की आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ बनारस (Banaras) के मिठाइयों का भी अहम योगदान रहा है. बनारस की तिरंगा बर्फी देश के आजादी से पहले वीर सपूतों में देशभक्ति की भावना जगाती थी. इतना ही नहीं बनारस में जब पहली बार तिरंगा बर्फी बनाई गई तो इस देख अंग्रेजी हुकूमतों के होश उड़ गए थे. 1940 में बनारस के ठठेरी बाजार में स्थित मिठाई की मशहूर दुकान ‘श्री राम भंडार’ के संचालक रघुनाथ दास ने इस बर्फी को तैयार किया था.
तिरंगा बर्फी (Tiranga Barfi) जिस वक्त तैयार हुई थी उस वक्त अंग्रेजी हुकूमतों ने देश मे तिरंगा लेकर चलने ओर रोक लगा रखी थी. ऐसे में स्वतंत्रता सेनानी इस बर्फी को हाथ में लेकर चलते थे. अंग्रेजी हुकूमतों को परेशान करने के लिए इस मिठाई को फ्री में बांटा जाता था.
1850 करीब शुरू हुई थी दुकानवर्तमान में दुकान के संचालक अरुण गुप्ता ने बताया कि 1850 के करीब उनके दादा जी ने इस दुकान की शुरुआत की थी. स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त इस दुकान में 1940 के आसपास जब उनके दादा जी ने इस तिरंगा बर्फी को बनाया तो वो देशभक्ति की भावना जगाने के लिए जिस तरह आज हर ‘घर तिरंगा अभियान’ के जरिए तिरंगा पहुंचाने की मुहिम चल रही है, उसी तरह उनके दादा ने भी इस मुहिम को चलाया था जिससे अंग्रेजी हुकूमतों में बेचैनी बढ़ गई थी.
हर घर तिरंगा पहुंचाने का लक्ष्यउस वक्त से ही हमारा परिवार तिरंगा पहुंचाने की मुहिम को आज तक अपने मिठाई के माध्यम से चला रहा है. बात यदि इस बर्फी की करें तो इस बर्फी में आज भी किसी तरह के रंग का प्रयोग नहीं होता है. केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और सफेद रंग के लिए बादाम का प्रयोग किया जाता है.
स्वतंत्रता दिवस पर इस तिरंगा बर्फी की खूब डिमांड होती है.इसके अलावा अन्य दिनों में भी देश के अलग अलग कोनो से इसके ऑर्डर आते है. 82 साल पहले बने इस बर्फी का स्वाद आज भी वैसा ही है जैसा पहले हुआ करता था. बात यदि इस तिरंगा बर्फी की करें तो इसकी कीमत 520 रुपये प्रति किलो है.
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