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हाइलाइट्सइंदिरा गांधी की बुआ कृष्णा ने अपनी किताब में इसका विस्तार से खुलासा किया है कि फिरोज कैसे गांधी थेकिस तरह मुंबई से इलाहाबाद आए फिरोज और डॉक्टर सर्जन मौसी ने किया लालन पालन शादी किस तरह हुई और किस तरह हुआ अंतिम संस्कार, इलाहाबाद में क्यों है फिरोज की कब्र भीये चर्चा अक्सर चलती है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी तो गांधी थे नहीं फिर ये उपनाम उन्हें कैसे मिल गया. हालांकि सोशल मीडिया से लेकर इंटरनेट पर फिरोज की पैदाइश, धर्म और अंतिम संस्कार को लेकर बहुत अलग अलग बातें लिखी हुई हैं. सच्चाई क्या है. खुद फिरोज के आधिकारिक जीवनी “ Feroze the Forgotten Gandhi” लेकर स्वीडन के बर्टिल फाक इस बारे में क्या लिखते हैं.

अब सबसे फिरोज के परिवार की बात. वह मुंबई में 12 सिंतबर 1912 में पारसी परिवार में पैदा हुए. उनके पिता का नाम जहांगीर फरदून घांडी था. मां का नाम रतिमाई कमिसारियत था. ये लोग मुंबई के खेतवाड़ी में नौरोजी नाटकवाला भवन में रहते थे. पिता मैरीन इंजीनियर थे. उनके 05 बच्चे थे. फिरोज सबसे छोटे थे. फिरोज के दो भाई और दो बहन थे.

उनके जीवनीकार बर्टिल फाक लिखते हैं, वह ऊंचे मंसूबों वाले थे. कालेज छोड़कर कांग्रेस के कार्यकर्ता बन गए. नेहरू के अन्य सहायकों की तरह उन्हें अपना आदर्श मानते हुए आनंद भवन में आने जाने लगे. उन्हें इलाहाबाद में उनकी अविवाहित मौसी डॉक्टर शीरीं कमिसारियत ने गोद में लेकर इलाहाबाद में उनकी परवरिश की थी.

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पिता के निधन के बाद फिरोज का पालन-पोषण इलाहाबाद मेंइसकी वजह ये थी कि फिरोज के पिता के निधन के बाद उनकी मां अपनी बहन के पास इलाहाबाद आ गईं थीं. फिर यहीं फिरोज का लालन पालन हुआ. बर्टिल फाक साफ लिखते हैं, डॉ. कमिसारियत इलाहाबाद की जानी मानी सर्जन थीं लेकिन उनके परिवार की सामाजिक हैसियत नेहरू खानदान से कम ही थी. इसी वजह से नेहरू परिवार और इंदिरा से परवान चढ़ रहे अपने रिश्तों में फिरोज को आजीवन हीन भावना से ग्रस्त ही रहना पड़ा.

फिरोज के पिता के निधन के बाद उनकी मां अपनी बहन के पास इलाहाबाद आ गईं थीं. फिर यहीं फिरोज का लालन पालन हुआ. (file photo)

कैसे मिला गांधी कुलनामहालांकि किताबें कहती हैं कि घांडी फिरोज का कुलनाम या पारसी धर्म में जाति का नाम था. जिसे उन्होंने आजादी की लड़ाई में कूदने के बाद गांधीजी से प्रभावित होने के कारण बदलकर गांधी कर लिया. लेकिन इंदिरा गांधी की बुआ कृष्णा हठीसिंग ने अपनी किताब इंदू से प्रधानमंत्री में इसे बहुत हद तक साफ किया है.

उन्होंने अपनी किताब के 09वें अध्याय में फिरोज के कुलनाम और शादी और इसमें आ रही अड़चनों पर भी रोशनी डाली है. उन्होंने लिखा फिरोज का कुलनाम गांधी ही था, इसे अपभ्रंश के तौर पर घांडी भी कहा जाता था. वह लिखती हैं, गांधी कुलनाम या उपनाम है. इसका संबंध भी अन्य भारतीय उपनामों की तरह परिवार के पेशे या व्यवसाय से है. जो लोग मोदी, पंसारी या गंधी का काम करते थे, वो गांधी कहलाते थे.

फिरोज गांधी अपने दोनों बेटों के राजीव और संजय के साथ. (twitter)

पारसी और हिंदुओं दोनों अब भी गांधी कुलनामवो आगे लिखती हैं, महात्मा गांधी हिंदू थे और फिरोज गांधी पारसी, दोनों का आपस में कोई रिश्ता नहीं था. पारसी धर्म के लोग जोरोस्टरीय या जरथ्रुस्त्री धर्म को मानने वाले हैं. इस धर्म के प्रवर्तक पैगंबर जरथ्रुस्ट के अनुयायी हैं. इनकी मान्यता है कि पैगंबर जरथ्रुस्त्र ही स्वर्ग से पवित्र अग्नि को पृथ्वी पर लाए. इसलिए पारसी लोग अग्नि की पूजा करते हैं. उनके मंदिर अग्नि मंदिर कहलाते हैं.

पारसी 1200 साल पहले फारस से भारत आएअब भी लोगों को गलतफहमी है कि पारसी लोग मुसलमान होते हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं है. ये एकदम अलग धर्म है. दरअसल करीब 1200 साल पहले ये फारस या ईरान में रहते थे. मुस्लिम विजेताओं के धार्मिक अत्याचारों से त्रस्त होकर शरण की खोज में भारत आए.

पहली बार कब फिरोज ने शादी का प्रस्ताव रखासागरिक घोष की किताब इंदिरा कहती है, फिरोज ने जब पहली बार इंदिरा से शादी का अनुरोध किया तब वह महज 16 साल की थीं. तब कमला जिंदा थीं. उन्होंने मना कर दिया कि शादी के लिए उनकी बेटी की उम्र बहुत कम थी.

फिरोज गांधी और इंदिरा का विवाह मार्च 1942 में आनंद भवन में वैदिक तरीके से हुआ. (file photo)

फिरोज भी लंदन पढ़ने गएइसके बाद फिरोज और इंदिरा दोनों पढ़ाई के लिए यूरोप चले गए. फिरोज की बुआ डॉ. कमिसारियत ने ये सोचकर फिरोज को लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में पढ़ाई का खर्च उठाने की हामी भरी तो उनके दिमाग में यही था कि इसी के चलते वह नेहरू खानदान से दूर तो रहेंगे. इंदिरा के लगाव से उन्हें छुटकारा तो मिल जाएगा. लेकिन हुआ उल्टा. इसी दौरान दोनों लंदन में रहते हुए एक दूसरे के करीब आए.

नेहरू थे शादी के खिलाफजब भारत लौटकर इंदिरा गांधी ने पिता जवाहरलाल नेहरू से फिरोज से शादी की इ्च्छा जाहिर की तो वह बिगड़ गए. वह इस शादी के एकदम खिलाफ थे. नेहरू खानदान के अन्य पुरुष भी नहीं चाहते थे कि ये शादी हो. इंदिरा गांधी ने अपनी जीवनी की लेखिका कैथरीन फ्रैंक से कहा, फिरोज से शादी करके मैं सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ रही थी. इससे तूफान खड़ा हो गया था. निसंदेह मेरे ही परिवार के कई लोग बहुत उखड़े हुए थे.

नेहरू परिवार में दूसरी जाति और धर्मों में शादी हुई हैइंदिरा की बुआ कृष्णा की किताब लिखती है, ये जानकर कि इंदिरा की शादी की इच्छा फिरोज से करने की बात पर जवाहर थोड़ा परेशान हो गए. परेशानी का कारण ये नहीं था कि फिरोज की जाति या धर्म भिन्न था.हमारे परिवार में जाति, धर्म या राष्ट्रीयता को कभी बाधक नहीं समझा गया. हम दोनों ही बहनों ने गैर कश्मीरियों से शादी की. मेरी दो चचेरी बहनों ने मुसलमानों और एक चचेरे भाई ने हंगेरियन से शादी की.

जवाहर के विरोध के कारण कुछ और थे.वो आगे लिखती हैं, एक तो जवाहर का मानना था कि फिरोज की पारिवारिक पृष्ठभूमि और लालन – पालन हमसे एकदम अलग था. जवाहर की दूसरी आपत्ति ये थी कि बहुत कम समय विदेश में रहने के कारण इंदिरा को भारत में दूसरे युवकों से मिलने और उन्हें समझने का समय नहीं मिल पाया. लेकिन दोनों की शादी की इच्छा जोर पकड़ती गई.

फिरोज की गोदी में राजीव और पीछे उनकी पत्नी इंदिरा और ससुर जवाहरलाल नेहरू. (wiki commons)

कट्टरपंथी इस शादी के खिलाफ थेकिताब में उन्होंने लिखा, देश की उस समय की स्थितियों के कारण, बहुत कुछ लोगों के विचारों और मान्यताओं के कारण वो दोनों चुपचाप शादी करने के पक्ष में थे. लेकिन जब ये बात बाहर पता लगी तो विरोध होने लगा. अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह के विरोध में कट्टरपंथी हिंदुओं और पारसियों के धमकियों से पत्र आने लगे.

गांधीजी ने शादी की सलाह दीजवाहर ने गांधीजी से परामर्श किया. गांधी का स्थान नेहरू परिवार में मोतीलाल के निधन के बाद पिता जैसा था. हम उन्हीं की सलाह पर चलते थे. गांधीजी को भी इस शादी को लेकर धमकी भरे पत्र मिले थे. उन्होंने सलाह दी कि शादी करो और बडे़ पैमाने पर करो ताकि लोग समझें कि नेहरू परिवार इस शादी पर पूरी तरह एकसाथ है.

आनंद भवन में वैदिक तरीके से शादी हुईशादी मार्च 1942 में आनंद भवन में ही हुई, विवाह वैदिक विधि से हुआ. ठीक समय और शुभ मुहूर्त में. पंडित जी द्वारा बोले हुए शादी के पवित्र मंत्रों और प्रतिज्ञाओं का उच्चारण करते हुए दोनों सप्तपदी की. अग्नि के सात फेरे करने की परंपरागत रस्म पूरी की.फिरोज और इंदिरा के दो बेटे हुए – राजीव और संजय. पिता के गांधी कुलनाम होने की वजह से उन्होंने अपने नाम से साथ गांधी कुलनाम धारण किया.

निधन के बाद फिरोज का किस तरह हुआ अंतिम संस्कारफिरोज गांधी ने 8 सितंबर 1960 का निधन दिल्ली के धन वेलिंगटन अस्पताल में सुबह के वक्त अंतिम सांस ली थी. इसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया, जिसे लेकर सोशल मीडिया पर कई दावे किए जाते हैं.

कृष्णा हठीसिंग की किताब कहती है, यद्यपि पारसी अपने मृतकों को या तो गाड़ते हैं या फिर टॉवर ऑफ साइलेंस में रख आते हैं. लेकिन फिरोज की आखिरी इच्छा थी कि उनका दाह संस्कार किया जाए. उनके पार्थिव शरीर को श्मशान ले जाया गया. वहां उनका उनका दाहसंस्कार हुआ. वहां राजीव ने अपने पिता को मुखाग्नि दी. हजारों की संख्या में लोग उनकी शवयात्रा में शामिल हुए.

तब राजीव 16 साल के थेबर्टिल फाक की किताब फ़िरोज़- द फॉरगॉटेन गांधी में कहा गया, उनके शव को तीन मूर्ति भवन में रखा गया. साथ ही उस समय वहां सभी धर्मग्रंथों का पाठ किया गया था जबकि अंतिम संस्कार हिंदू संस्कार किया गया था. उस वक्त राजीव गांधी 16 साल के थे. उन्होंने फिरोज गांधी के शव की चिता को मुखाग्नि दी थी.

कुछ पारसी परंपराओं का भी किया गया था पालनइस किताब में कहा गया है कि निधन के बाद कुछ पारसी परंपराओं को भी फॉलो किया गया था, लेकिन अंतिम संस्कार हिंदू तरीके से किया गया था. फिरोज गांधी के पार्थिव शरीर के मुंह पर कपड़े का टुकड़ा रख कर ‘अहनावेति’ का पूरा पहला अध्याय पढ़ा गया था.

फिरोज गांधी के अंतिम संस्कार के बाद उनकी अस्थियों को संगम में प्रवाहित भी की गई थी. हालांकि, कुछ अस्थियों को अंतिम संस्कार के बाद विसर्जित कर दिया गया, जबकि कुछ अस्थियों को दफना दिया गया. जहां इन अस्थियों को दफनाया गया, वहां ही एक कब्र भी बनाई गई.
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