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सर्वेश श्रीवास्तव/अयोध्या : सनातन धर्म के 16 संस्कारों में से एक विवाह का संस्कार भी होता है. मान्यताओं के अनुसार शादी एक पवित्र बंधन है, जो न सिर्फ दो लोगों का मिलन होता है, बल्कि ये जिम्मेदारी निभाना भी सिखाता है. विवाह के संस्कार में कई रीति- रिवाज निभाए जाते हैं जिसमें से 7 फेरे लेना भी एक महत्वपूर्ण रस्म माना जाता है. कहा जाता है सात फेरे के बिना विवाह अधूरा रहता है. विवाह में अग्नि देवता को साक्षी मानकर पति और पत्नी अपने रिश्ते को मजबूत करने के लिए 7 कसम खाते हैं और सात फेरे लेते हैं.

अयोध्या के ज्योतिष पंडित कल्कि राम बताते हैं कि सनातन धर्म में पति-पत्नी के संबंध को सात जन्मों का संबंध बताया गया है. जिस प्रकार भगवान अग्नि के सात रंग होते हैं. भगवान सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं. ठीक उसी प्रकार विवाह में सात वचन लिए जाते हैं. अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे भी लिए जाते हैं. शादी में पति-पत्नी सात फेरे लेते हैं जिसमें सात वचन पत्नी के होते हैं सात वचन पुरुष के होते हैं. इन सात वचनों को स्वीकार करने के बाद ही विवाह मान्य होता है. सात वचन का मतलब होता है सात जन्मों का संबंध होता है. यही वजह है की शादी में भगवान अग्नि को साक्षी मानकर सात वचन लिया जाता है.

शादी में क्यों लेते हैं 7 फेरे?सनातन धर्म में विवाह के दौरान सात वचन लिए जाते हैं. मान्यताओं के प्रत्येक फेरा एक ही होता है, जिसके माध्यम से वर-वधु जीवन भर साथ रहने का संकल्प लेते हैं. हिंदू धर्म में इन सात फेरों और वचनों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. 2 लोग हैं जो एक दूसरे का सम्मान करते हैं और आध्यात्मिक रूप से एक हैं. इसे विवाह का पवित्र बंधन कहा जाता है. मान्यताओं के अनुसार, मनुष्य सात जन्मों तक इन सात फेरे से गुजरता है, इस कारण वर-वधू को सात जन्मों का साथी भी कहा गया है.

(नोट: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष के मुताबिक है न्यूज़ 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता)
.Tags: Ayodhya News, Dharma Aastha, Local18, Religion 18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : December 4, 2023, 19:50 IST

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