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शाश्वत सिंह/झांसी: रंगबिरंगे कपड़े, हाथों में बांस की लाठियां, ढोल मंजीरा की धुन, बुंदेली लोकगीत और परंपरा. यह सब रंग दिखाई देते हैं झांसी और बुंदेलखंड में दीवाली के एक दिन बाद. इस परंपरा को मौनिया के नाम से जाना जाता है. बुंदेलखंड का प्रसिद्ध मोनिया नृत्य दीपावली के बाद से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलता है. इसमें गांव के चरवाहे और ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे-छोटे बच्चों से लेकर युवा अपनी अपनी टोलियां बनाते है.मोनिया बुंदेलखंड कीसबसे प्राचीन नृत्य शैली है. इसे सेहरा और दीपावली नृत्य भी कहते हैं. मोनिया नृत्य करने के पहले सभी श्रृंगार करते हैं. इसके बाद गांव के मंदिर में जाकर व्रत धारण करते हैं. इसके बाद पूरे दिन किसी से बात नहीं करते हैं. उसके बाद वह हर घर जाकर मोनिया नृत्य करते हैं. दिनभर घूमने के बाद यह व्रत खोला जाता है. खास बात यह है कि जिस गांव की मोनिया नृत्य की टोली एक बार व्रत रख ले तो उन्हें 12 वर्ष तक लगातार यह करना पड़ता है.कब शुरू हुआ मोनिया नृत्य?मोनिया नृत्य के समूह में मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि पौराणिक मान्यता है कि द्वापर में गोवर्धन लीला के बाद श्री कृष्ण भगवान ने अपने ग्वालों की टोली के साथ इस नृत्य को किया था. तभी से इस नृत्य की शुरुआत हुई है. इसके बाद यह परंपरा चली आ रही है. एक टोली 11 गांव घूमती है. उसके बाद ही व्रत पूरा माना जाता है..FIRST PUBLISHED : November 13, 2023, 21:00 IST

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