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अद्भुत ह पितरपछ के अमवसा. एकरा के सर्वपितृ अमवसा भी कहल जाला. काहें? हमनी के पुरनिया लोग बहुते बिद्वान रहल ह. कुछ घटना अइसनो होली सन जौना में केहू के माता, पिता भा आत्मीय जन के मृत्यु के सही दिन मालूम ना हो पावेला. त पितरपछ के अमवसा माने पितरपछ के आखिरी दिन आदमी अपना मृत आत्मीय के सराध क सकेला. मृत्यु के तारीख भले कुछू होखो, पूर्वज के आत्मा एकरा से तृप्त हो जाई. एही से एकर महातम असीम बा. ईहो कहल बा कि ऊ आदमी जौन पूरा साल में कबो श्राद्ध-तर्पण नइखे कइले, जदि ऊहो सर्वपितृ अमवसा के श्राद्ध-तर्पण क लेता त ओकरा कुल तिथियन के श्राद्ध कर्म के बराबर पुण्य फल मिल जाई. ईहो कहल बा कि जे भी कौनो कारन भा मृत्यु के तिथि जानला का बावजूद भुला गइला के कारन पितृपक्ष के तेरह दिन के बीच सराध ना कर पावल, जदि ऊ पितरपछ के अमवसा के दिने तर्पन आ सराध क देता त ओकरा पिछला 14 दिन तर्पन के फल मिल जाला.

मान लीं कि केहू के पूर्वज के मृत्यु पितरपछ के अमवसा के दिनहीं भइल बा. तो ओकरा कुछ सोचहीं के नइखे. अब रउरा पूछ सकेनीं कि कौना विधि- विधान से पितर लोगन के अमवसा के सराध करे के चाहीं ताकि ऊ लोग अति प्रसन्न हो जाउ? एकरा खातिर कहल बा कि पितरपछ के अमवसा के दिने भोर में उठि के बिछवना से उतरे के पहिले भगवान विष्णु के एगारह बार जाप करे के चाहीं. ओकरा बाद नहा-धो के तर्पण करे के चाहीं. जल में काला तिल, जौ, कुशा आ सफेद फूल से तर्पण होला. एकरा बाद अंजुरी में जल लेके ओकरा में काला तिल, जौ, कुशा, अक्षत लेके मंत्र पढ़े के चाहीं- ऊं देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च. नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:. ऊं पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्.

मान लीं रउरा मंत्र नइखीं पढ़ि सकत. त अपना हृदय से भगवान से प्रार्थना करीं कि हे भगवान हमरा पितर लोगन के आशीर्वाद दीं ताकि ऊ लोग सदा खुश रहसु लोग. फेर पितर लोगन से कहीं- हे पितरगण रउरा सबके हम हृदय से प्रणाम करतानी. हमार तर्पण आ सराध स्वीकार करीं. एकरा बाद पिंडदान करीं. बहुत लोगन के मालूम ना रहेला कि पिंड कइसे बनेला. पिंड बनावल आसान बा- चाउर आ जौ के आटा, काला तिल आ घीव से गोल आकार के पिंड बनावल जाला. चाउर के शुद्ध माटी के बर्तन में पका लीं आ ओकरे में जौ के आटा, काला तिल आ घीव से पिंड बना लीं. कम से कम तीन गो पिंड पूर्वज लोगन खातिर बनेला- पिता, बाबा (दादा) आ बाबा के पिता. मान लीं राउर पिताजी जीवित बानीं. तबो तीन गो पिंड बनी- बाबा (दादा), उनका पिता आ उनका पिता के पिता खातिर. बारी- बारी से पिंड के अर्पण कके जल में विसर्जित क दिहल जाला. एकरा बाद कुछ जीव लोगन के अन्न- जल अर्पित कइल जाला- गाय, कौवा, कुकुर, चिउंटी, मछरी आ फेड़ (वृक्ष). एकरा बाद देवता लोगन के भी अन्न- जल अर्पित कइल जाला. एगो मान्यता बा कि गाय में सब देवता लोगन के वास होला. एसे पितृ पक्ष में गाय के आटा के लोई में गुड़ डालि के खियावे के चाहीं. ओकरा बाद गाय के कुछ चारा भी खिया देबे के चाहीं. एकरा से पितर लोग अति प्रसन्न होला लोग. त पितरपछ के अमवसा का दिने तर्पण आ पिंडदान से पूर्वज लोग अति प्रसन्न होला आ तृप्ति के अनुभव करेला.

पुराना जमाना में पितरपछ के अमवसा का दिने ब्राह्मण भोज करावल जात रहल ह. एकरा बाद दामाद, भांजा, मामा, नाती आ कुल खानदान के लोगन के खियावल जात रहल ह. पुराना जमाना में दस तरह के चीज पितपछ के अमवसा के दान देबे के परंपरा रहल ह- जूता- चप्पल, छाता, वस्त्र, काला तिल, घीव, गुड़, धान आ नमक, गाय  दान करेला. विधान में त भूमि देबे के भी कहल बा.

पितरपछ के दौरान बर (वट) आ पीपल के पेड़ के जड़ पर तांबा भा स्टील के लोटा में शुद्ध जल में दूध, पानी, काला तिल, शहद आ जल मिला के चढ़ावे के चाहीं. एगो अउरी महत्वपूर्ण बात- भगवद्गीता के दूसरा आ दसवां अध्याय के पाठ पितरपछ के अमवसा के कइला से पितर लोगन के अति तृप्ति मिलेला. एकरा से पितर लोग आनंद से भरि जाला. एगो अउरी बात से पितर लोग खुस होला लोग- पितृ सूक्तम के पाठ कइला से. चूंकि पितृ सूक्तम के सब केहू सही उच्चारण से पाठ ना क पावेला एसे जे सही जानकार होला ओकरे एकर पाठ करे के चाहीं.

त एही से पितरपछ के अमवसा के महातम अपरंपार बा. पितर लोग खुस रही त आसिरबाद दी आ हमनी के धन- धान्य आ प्रबल सुरक्षा दी. पितर लोगन खातिर एही से कुआर के पितरपछ बनावल बा कि धरती के लोग ओह लोगन के आसिरबाद पाओ आ जीवन के धन्य करो. कई लोग कहेला कि पितर लोग त कहीं जनम ले लेले होई लोग, ओह लोगन के आत्मा हमनी के तर्पण कइसे स्वीकार करी. जी ना. पितर लोगन के अंश सूक्ष्म लोक में हमनी के सराध, तर्पण आ प्रेम के प्रतीक्षा करेला. पितर लोगन के तर्पण आ सराध हमनी के समृद्धि के नींव मजबूत करी.

(डिसक्लेमर – लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)
.Tags: Bhojpuri Articles, Pitru PakshaFIRST PUBLISHED : October 14, 2023, 17:15 IST

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