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इटावा. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से नाराज़ चल रहे उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के भाजपा (BJP) में शामिल होने की अटकलों के बीच एक नई खबर फिर से चर्चा के केंद्र में आ गई है. राजनीतिक हल्कों में शिवपाल यादव को लेकर ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा उन्हें विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बना सकती है. हालांकि क्या शिवपाल इस पद को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, इस पर भी बड़ा सवाल बना हुआ है.
तो अखिलेश के बगल में बैठेंगे शिवपालयूपी के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव की भाजपा से बढ़ती नजदीकी उन्हें यूपी विधानसभा में विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा सकती है. अगर वाकई में ऐसा हुआ तो शिवपाल सदन में अपने भतीजे व नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के नजदीक ही बैठेंगे. विधानसभा उपाध्यक्ष की सीट सदन में नेता प्रतिपक्ष के ठीक बगल में ही होती है.
अखिलेश और शिवपाल के बीच बढ़ती दूरियांपीएसपी प्रमुख शिवपाल यादव इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट से लगातार छठी बार विधायक निर्वाचित हुए हैं. हमेशा की ही तरह इस बार भी शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी के सिंबल साइकिल के चुनाव चिह्न से निर्वाचित हुए हैं. 10 मार्च को मतगणना में जब समाजवादी गठबंधन सत्ता के करीब नहीं पहुंचा तो शिवपाल यादव ने अपने भतीजे अखिलेश यादव की कार्यशैली पर सवाल उठाना शुरू कर दिया, जिससे अखिलेश यादव से उनकी दूरियां बढ़ती जा रही हैं. सपा उन्हें अपना विधायक से ज्यादा सहयोगी दल प्रसपा का अध्यक्ष मानती है.
शिवपाल दे रहे बीजेपी से करीबी के संकेतहोली के अवसर पर मुलायम, रामगोपाल और अखिलेश यादव के साथ सैफई में होली खेलने वाले शिवपाल 26 मार्च के बाद यह कहकर विफर गए कि उन्हें सपा की बैठक में नहीं बुलाया गया. लेकिन जब 29 मार्च को बुलाया गया तो शिवपाल ने बैठक में शामिल होने की जगह भर्थना में भागवत सुनना पसंद किया. इसी बीच 30 मार्च को शिवपाल ने शपथ ग्रहण के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और फिर नवरात्रि के पहले दिन सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फॉलो करना शुरू कर दिया.
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शिवपाल के इन सब कदमों से उनके भाजपा के साथ जाने के संकेत मिल रहे हैं. उन्हें राज्यसभा में भेजे जाने और उनकी सीट जसवंत नगर पर उपचुनाव में बेटे आदित्य यादव को उतारने की भी चर्चा है. राजनीतिक पंडित ऐसा बता रहे हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों के पास राज्यसभा के अलावा उपाध्यक्ष बनाने का भी विकल्प है. विधानसभा में इस बार अखिलेश यादव ने बतौर नेता प्रतिपक्ष आक्रामक तेवर के संकेत दे दिए हैं. ऐसे में विधानसभा उपाध्यक्ष के तौर पर शिवपाल को बिठाकर भाजपा सपा प्रमुख पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर बढ़त हासिल करने की कोशिश करेगी.
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बीजेपी पहले भी चल चुकी है ऐसी ही चालसपा विधायक शिवपाल यादव के लिए भाजपा उसी तरह की रणनीति अपना सकती है, जैसी उसने तत्कालीन सपा विधायक नितिन अग्रवाल को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाने के लिए अपनाई थी और उसमें वह कामयाब भी हुई थी. नितिन अग्रवाल सपा विधायक थे और राजनीतिक मतभेद के चलते भाजपा के साथ चले गए थे. जानकार बताते हैं कि संसदीय परंपरा के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष का व उपाध्यक्ष विपक्ष का होता है. इसलिए तकनीकी तौर पर सपा विधायक नितिन अग्रवाल को भाजपा ने विपक्ष का प्रत्याशी मानते हुए उन्हें निर्विरोध विधानसभा उपाध्यक्ष निर्वाचित करवा दिया था. इसके लिए सपा की इच्छा नहीं थी. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाई. अब नितिन अग्रवाल भाजपा से चुनाव जीत कर योगी सरकार में आबकारी मंत्री हैं. ऐसे में अब इतिहास अगर जल्द खुद को दोहराए तो हैरत नहीं होगी.

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