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ऋषभ चौरसिया/लखनऊः सतखंडा लखनऊ का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है जो अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. अवध की एक अधूरी इमारत, जिसका निर्माण अवध के तीसरे बादशाह मोहम्मद अली शाह बहादुर ने शुरू किया था.आज भी अपनी अधूरी कहानी के साथ खड़ी है.सतखंडा का शाब्दिक अर्थ होता है. ‘सात मंजिला’.यह भवन मूल रूप से सात मंजिलों का होने की योजना के साथ बनाया जा रहा था.

इतिहासकार मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि बादशाह मोहम्मद अली शाह ने सतखंडा बनवाने की शुरुआत चांद देखने के लिए की थी और उसकी खास वजह ये थी कि वह अपनी बेगम के साथ वहां से चांद देख सके.एक तरह से सतखंडा को किंग मोहम्मद अली शाह के मोहब्बत का नमूना कहा जा सकता है.सतखंडा बनने की वजह बेगम और अपने घर के लोगों के साथ चांद देखना भी था.

मोहम्मद अली शाह सतखंडा का निरीक्षण करने गए थेमसूद अब्दुल्ला ने बताया कि जब सतखंडा की चार मंजिलें बन गई थीं, तो बादशाह मोहम्मद अली शाह सतखंडा का निरीक्षण करने गए थे.वहां सीढ़ी से फिसल कर उन्हें चोट लग गई थी. जिससे उनकी तबियत बिगड़ गई और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई. फिर उनके साहबजादे, जो अगले बादशाह बने थे, किंग अमजद अली शाह ने सोचा कि सतखंडा का निर्माण नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो इसका निर्माण करवा रहे थे, वे अब नहीं रहे. इसलिए उन्होंने सात मंजिला नहीं बनाया और यह चार मंजिल पर ही रह गया.

बादशाह की मृत्यु इमारत के निर्माण के दौरान हुई थीमसूद अब्दुल्ला कहते हैं कि बादशाह की मृत्यु इमारत के निर्माण के दौरान हुई थी, जिसके कारण बादशाह की बेगम और घर की महिलाएं इस इमारत को मनहूस मानकर उसे पूरा नहीं करने दी.लेकिन उनका मानना है कि इस इमारत में कोई मनहूसियत नहीं है, यह सिर्फ़ एक मान्यता है जो लोगों ने बनाई है.उनका कहना है कि अगर यह सच होता, तो आज भी लोग सतखंडा के ऊपर से ईद या मोहर्रम का चांद क्यों देखते.
.Tags: History, Local18FIRST PUBLISHED : February 13, 2024, 12:18 IST

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