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राजधानी दिल्ली का कोई भी इलाका सांस लेने लायक नहीं है. दिल्ली के ज्यादातर हिस्सों का वायु गुणवत्ता सुचकांक (AQI) 400 से ऊपर यानी गंभीर श्रेणी में है. ऐसे में दिल्ली के लोगों को सबसे खराब हवा में सांस लेना पड़ रहा है. प्रदूषित हवा की वजह से गठिया और जोड़ों की बीमारियों से परेशान मरीजों में पीड़ा के साथ लक्षण बढ़ गए हैं.
हिन्दुस्तान में छपी एक खबर के अनुसार, एम्स की रूमेटोलोजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर उमा कुमार ने बताया पिछले कुछ समय में ऐसे करीब एक चौथाई मरीज बढ़े हैं, जो पहले दवा की वजह से ठीक थे, लेकिन अब प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर जोड़ों और पीठ में दर्द की समस्या को लेकर अस्पताल आ रहे हैं. डॉक्टर उमा ने बताया कि हर साल इस सीजन में प्रदूषण बढ़ने पर कुछ मरीजों के लक्षण बढ़ जाते हैं. हालांकि, प्रदूषण का स्तर कम होने पर वे पहले की तरह ठीक हो जाते हैं. ऐसे में उन्होंने ऐसे मरीजों से डॉक्टर से मिलकर उचित इलाज लेने की अपील की है. डॉ. उमा ने बताया कि एक अध्ययन में देखा गया है कि लगातार लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने वाले लोगों में गठिया जैसी ऑटोइम्यून बीमारी के तत्व बढ़े पाए गए. दरअसल, ऑटोइम्यून बीमारियां वे हैं, जिनमें शरीर का बीमारियों से रक्षा करने वाला प्रतिरोधी तंत्र खुद ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगता है.
ये लक्षण सामने आ रहे- जोड़ों में दर्द होना- जोड़ों में सूजन आना- पीठ में दर्द होना- जोड़ों का लाल हो जाना- बुखार आना- मुंह में छाले होना- त्वचा पर चकत्ते-  बाल झड़ना- आंखों की रोशनी प्रभावित होना
ऐसे गठिया का कारण बन रही है दूषित हवाडॉक्टर उमा के मुताबिक हमारी नाक पीएम 10 के आकार के प्रदूषण कणों को ही अंदर जाने से रोकने में सक्षम है. जब हवा में पीएम 2.5 और एक माइक्रोन जितने छोटे आकार के कणों की मात्रा बढ़ती है तो सांस लेते वक्त ये शरीर के अंदर जाकर खून में घुल जाते हैं और फिर दिल और सांसनली के प्रोटीन में जब ये पहुंचते हैं तो शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इन्हें बाहरी कण समझकर इनसे लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करने लगता है. हालांकि ये एंटीबॉडी घुटनों या दूसरे जोड़ों की कोशिकाओं पर भी हमला करने लगते हैं. इस वजह से जोड़ों में दर्द और गठिया का खतरा बढ़ जाता है. हालांकि, प्रदूषण का स्तर कम होने पर वे पहले की तरह ठीक हो जाते हैं. ऐसे मरीजों से डॉक्टर से मिलकर इलाज लेना चाहिए.

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