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Yashasvi Jaiswal: इंग्लैंड के खिलाफ विशाखापत्तनम में जारी दूसरे टेस्ट मैच में भारतीय टीम के युवा ओपनर यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) ने दोहरा शतक जड़कर सनसनी मचा दी. यशस्वी जायसवाल ने टीम इंडिया के लिए पहली पारी में 290 गेंदों पर 209 रन बनाए. यशस्वी जायसवाल की पारी में 19 चौके और 7 छक्के शामिल रहे. यशस्वी जायसवाल के 209 रनों के दम पर भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ पहली पारी में 396 रनों का स्कोर बनाया. यशस्वी जायसवाल को छोड़कर भारत का कोई भी बल्लेबाज अर्धशतक तक नहीं जड़ पाया.
टीम इंडिया के सुपर स्टार बने यशस्वी जायसवालयशस्वी जायसवाल की 209 रनों की पारी ने भारत को विशाखापत्तनम में जारी दूसरे टेस्ट मैच में एक सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया है. यशस्वी जायसवाल का 73 रनों के निजी स्कोर पर इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने टॉम हार्टले की गेंद पर कैच टपका दिया था. अगर यशस्वी जायसवाल तब आउट हो जाते तो भारत 250 रनों के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाता. यशस्वी जायसवाल ने 209 रनों की पारी खेलकर भारतीय टीम को बड़ी मुसीबत से बचा लिया है. सोशल मीडिया पर यशस्वी जायसवाल स्टार बन गए हैं.
कभी पॉकेट मनी के लिए पानी पूरी बेचते थे यशस्वी जायसवाल  
यशस्वी जायसवाल के संघर्ष की कहानी बहुत कम लोगों को पता है. यशस्वी जायसवाल मुंबई के आजाद मैदान के बाहर गोलगप्पे बेचा करते थे. यशस्वी ने अपने ट्रेनिंग के दौर में टेंट में जीवनयापन किया था, लेकिन उनमें सफलता हासिल करने का जज्बा कूट-कूटकर भरा था. यशस्वी जायसवाल ने अंडर-19 वर्ल्ड कप 2020 में 400 रन बनाए थे, जिसमें एक शतक और 4 अर्धशतक शामिल थे.  
विजय हजारे ट्रॉफी में चमका नाम
यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) को अपने इस खेल के लिए ‘मैन ऑफ द टूर्नामेंट’ भी चुना गया. साल 2020 की IPL नीलामी के दौरान राजस्थान रॉयल्स ने जायसवाल को 2.4 करोड़ की भारी भरकम रकम में खरीदा था. यशस्वी जायसवाल का नाम तब चर्चा में आया, जब उन्होंने 16 अक्टूबर 2019 को विजय हजारे ट्रॉफी के एक मैच में झारखंड के खिलाफ 154 गेंदों में 203 रनों की तूफानी पारी खेली थी. बता दें कि उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले यशस्वी का बचपन बेहद ही गरीबी में बिता है. केवल 11 साल की उम्र में  क्रिकेटर बनने का सपना लेकर जायसवाल मुंबई आए.
यशस्वी को खाली पेट सोना पड़ता था
यशस्वी अपना पेट पालने के लिए आजाद मैदान में राम लीला के दौरान पानी-पूरी (गोलगप्पे) और फल बेचते थे. ऐसे भी दिन थे, जब उन्हें खाली पेट सोना पड़ता था. यशस्वी एक डेयरी में काम करने लगे. डेयरी वाले ने एक दिन उन्हें निकाल दिया. एक क्लब जायसवाल की मदद के लिए आगे आया, लेकिन शर्त रखी कि अच्छा खेलोगे तभी टेंट में रहने देंगे. टेंट में रहते हुए यशस्वी का काम रोटी बनाने का था. यहीं उन्हें दोपहर और रात का खाना भी मिल जाता था. रुपये कमाने के लिए यशस्वी ने बॉल खोजकर लाने का काम भी किया.
कोच ने बदली यशस्वी की जिंदगी
आजाद मैदान में होने वाले मैचों में अक्सर बॉल खो जाती हैं. बॉल खोजकर लाने पर भी यशस्वी को कुछ रुपये मिल जाते थे. आजाद मैदान में जब एक दिन यशस्वी खेल रहे थे, तो उन पर कोच ज्वाला सिंह की नजरें पड़ीं. ज्वाला भी खुद उत्तर प्रदेश से हैं. ज्वाला सिंह की कोचिंग में यशस्वी के टैलेंट में ऐसा निखार आया कि वह बेहतर क्रिकेटर बन गए. यशस्वी भी ज्वाला सिंह के योगदान का बखान करते नहीं थकते और कहते हैं, ‘मैं तो उनका अडॉप्टेड सन (गोद लिया हुआ बेटा) हूं. मुझे आज इस मुकाम तक लाने में उनका अहम रोल है.’

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