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वाराणसी: आज हम बात काशी विश्वनाथ कॉरीडोर की करने जा रहे हैं. पूरे देश और दुनिया ने पीएम मोदी को गंगा से पानी भर कर लाते और सीधा बाबा महादेव का जलाभिषेक करते देखा है, लेकिन इस बात का अंदाजा न प्रशासन को रहा होगा और ना ही यहां के पंडों को कि इसे देखने अब पूरा देश उमड़ पड़ेगा. सोमवार शाम सात बजे अपना काम निपटा कर बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचे तो श्रद्धालुओं की लंबी कतार देख कर बड़ा आनंद आया. दिसंबर की ठंढ में लोग नंगे पांव अपने इष्ट महादेव के दर्शनों के लिए इंतजार कर रहे थे. जैसे-तैसे हम अंदर पहुंचे तो भोले बाबा के दर्शन के लिए गर्भ गृह के दरवाजे पर भारी भीड़ थी. सीआरपीएफ बाहर द्वारों की सुरक्षा में लगी तो थी लेकिन अंदर यूपी पुलिस के लिए एक बड़ा मुश्किल काम नजर आ रहा था श्रद्धआलुओं को रोक पाना. बाबा के दरबार के पंडे अपनी ताकत का इस्तेमाल कर भीड़ अंदर जाने से रोक तो रहे थे लेकिन कतारें हर दरवाजे पर खासी लंबी हो चुकी थीं. एक घंटे से ज्यादा हो चला था. पट बंद था. कोई पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था. भीड़ में हम भी भोले बाबा का नाम जप रहे थे. 8.30 बजे के आस पास एकाएक सामने दरवाजा खुल गया. बाबा के साक्षात दर्शन हो गए. सामने खड़े पुजारी ने हाथ से प्रसाद लिया और महादेव पर अर्पण किया. उस धक्का-मुक्की के बीच दरवाजे का यूं खुलना और हमारा प्रसाद महादेव पर चढ़ाया जाना एक चमत्कार से कम नहीं था.पीएम मोदी के काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के उद्घाटन ने जगायी देश भर में जनभावना
अपार भीड़ थी. इसी भीड़ में मेरे पीछे आंध्र प्रदेश से आया एक पूरा परिवार था, जिसमें 80 पार के बुजुर्ग और छोटे बच्चे, महिलाएं भी थे. बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, केरल और अपने उत्तर भारत के तमाम प्रांतों से आए लोग बेताबी से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. अब तक तो मैं पूरा देश और तमाम तीर्थ स्थलों को देख चुका हूं. हर जगह एक अनुशासन है. अद्धसैनिक बलों के हाथ में सुरक्षा भी है और लोगों को अनुशासित रखने की कमान भी. कई भक्त तो मानों इस धक्का मुक्की से ही परेशान नजर आ रहे थे लेकिन दर्शन तो करना ही था. जाहिर है पीएम मोदी का गंगा में स्नान कर, वहां का पानी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से सीधे मंदिर के गर्भ गृह तक आना और जलाभिषेक करना देशवासियों के मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड गया है. ये जनभावना ही है जो हजारों की संख्या में लोग इस ठंड के मौसम में भी काशी पहुंचने से नहीं घबरा रहे. कॉरीडोर के बाहर गंगा तट पर सीढ़ियों का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन रात दस बजे भी वहां पर्यटक और श्रद्धालु भारी संख्या में मौजुद थे. अब काशी विश्वनाथ कॉरीडोर जनभावना जगा गया है तो भीड बढ़ना स्वाभाविक ही है. स्थानीय प्रशासन को भी इस पवित्र स्थल को अनुशासित अंदाज में चलाना सुनिश्चित करना ही होगा.
इसी बदली हुई काशी को देखने की दिली इच्छा थी, जो काशी फिल्म उत्सव देखने के बहाने दो दिन इस पावन नगरी में बिताने का मौका मिला. मंगलवार यानी 28 दिसंबक की सुबह हमांरे लिए प्रोटोकॉल लगा. हम पत्रकार मित्र काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे. श्रद्धआलुओं के लिए कतार खासी लंबी थी जो सुबह से अपनी बारी के इंतजार में खड़ी थी. इस बारी मुश्किल नहीं आयी.  बाबा के दर्शन किए. अन्नपूर्णा देवी मंदिर गए. उस कॉरीडोर में भी घूमे जहां पीएम मोदी ने अद्घाटन किया था. कुल मिला कर दूसरे दर्शन में राह खासी आसान रही. फिर निकल पड़े काल भेरव मंदिर की ओर. सुबह में सड़कों पर भीड़ नदारद थी. तब पता चला मोदी इफ्केट. चौड़ी सड़कें, सड़कों के बीच में डिवाइडर, काल भैरव मंदिर तक पहुंचने के लिए भी गलियों का चौड़ीकरण हो चुका है. वहां पक्की सड़कों पर चल के जाने पर भीड़ का अंदाजा नहीं होता. फिर अस्सी घाट और दूसरे घाचों पर गए. अंत में संकट मोचन मंदिर पहुंचे और दर्शन के बाद पहलवान ढाबे पर कचौड़ी का जो लुत्फ उठाया उससे ये भी साबित हो गया का काशी का मिजाज भले ही बदलने लगा हो लेकिन स्वाद बरकरार है. चाय की दुकानों पर वैसी ही भीड़, चाट पकौड़ी की दुकानों पर भीड़, शाम को सड़कों पर पैर रखने की जगह नहीं, सब कुछ वैसे का वैसा ही है. बदली है तो सिर्फ गलियां और सड़कें जो खासी चौड़ी हो चुकी हैं.यह एक ऐसे बदलाव की शुरुआत है “जो हम नहीं बदलेंगे” की मानसिकता से बाहर निकाल कर वाराणसी को एक तीर्थ और सांस्कृतिक केन्द्र के रुप मे विकसित करने के लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ चुका है. ऐसा बदलाव हो रहा है जिसे आने वाली पीढियां प्रभावित हों और याद रखें. अब कोई काशीवासी ये मानने में संकोच भी नहीं करता कि ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन और उसे साकार करने में उनका पैशन ही था, जिसने वाराणसी का कायाकल्प कर दिया. 7 साल पहले पीएम मोदी ने कहा कि काशी को क्योटो बनाना है तो लोगों को यकीन नहीं हुआ था, लेकिन परत दर परत रास्ते खुलते गए. घाटों की सफाई और सीढ़ियों का निर्माण, गंगा में क्रूज का चलना, वाराणसी की सड़कों का चौड़ा होना और अंत में पीएम मोदी का काशी विश्वनाथ कॉरीडोर का उद्घाटन- वाकई काशी बदलाव को स्वीकार कर रहा है. साथ ही जन मानस ये भी स्वीकार कर रहा है कि इन सब बदलावों के पीछे पीएम मोदी का ही हाथ है.
काशी फिल्म उत्सव
अब बात काशी फिल्म महोत्सव की. काशी फिल्म उत्सव, एक अनुठा प्रयोग है काशी की पावन धरती पर उत्तर प्रदेश को फिल्म उद्योग  के मानस पटल पर लाने का. कार्यक्रम रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर पर हुए. पीएम मोदी का ये सपना था एक विश्व स्तर का कन्वेंशन सेंटर बनाना जिसे उन्होने पूरा भी कर दिखाया.  जानकारी के लिए बता दें कि यूपी सरकार ने इस महोत्सव में 22 भोजपुरी और 20 हिंदी फिल्म निर्माताओं को लगभग 22 करोड़ रुपये सब्सिडी के रुप में बांटे गए. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी अपनी नयी फिल्म नीति की घोषणा की है और दिल्ली से सटे नौएडा में एक भव्य फिल्म सीटी बनाने को मंजूरी भी दे दी है. इस नीति का उद्देश्य ही यही है कि प्रदेश की सांस्कृतिक, पौराणिक औऱ ऐतिहासिक विरासत और गौरवशाली परंपरा को दुनिया भऱ में प्रचारित किया जाए. सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक एक ऐसी शुरुआत हुई है जो चंद दशक बाद भी लोगों को ये याद दिलाता रहेगा कि काशी सिर्फ एक पावन तीर्थ स्थल नहीं बल्कि एक बड़ा सांस्कृतिक केन्द्र भी है. उत्तर प्रदेश में तो फिल्मों की शूटिंग के लिए भी तमाम सुविधाएं दी जाने लगी हैं. कहानियों की थीम भी विविधताओं से भरे प्रदेश से आती हैं और प्रतिभाशाली कलाकार भी. इसलिए काशी का फिल्म उत्सव एक शुरुआत है वाराणसी को सिनेमा के मानचित्र पर ले जाने का.
कितनी बदली काशी
काशी में पहली बार 2002 के विधानसभा चुनवों के दौरान गया था. तब की तंग गलियों में बनारसी साड़ी पर काम करने वाले कारीगरों से मुलाकात की थी. तंग गलियों और वहां लटकी मोदी बिजली की तारों के बीच लोगों की जिंदादिली भी देखी थी. मानव, पशु, रिक्शे, चाय की दुकान, कचौड़ी-जलेबी जैसी यादें लेकर वापस दिल्ली लौटा था, लेकिन बदलाव नजर आना शुरु हुआ 2014 में पीएम मोदी के सत्ता सभालने के बाद. 2019 के लोकसभा चुनावों में मैने पीएम मोदी का रोड शो और उनके नामांकन की कवरेज के लिए गया था. तब एयरपोर्ट से वाराणसी पहुचने के रास्ते का कायाकल्प हो चुका था, लेकिन बाकी थी वाराणसी की तंग गलियां जिनसे गुजर कर काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर दूसरे मंदिरों और घाटों तक पहुंचना होता था. कहा जाता था कि न तंग गलियां चौड़ी होंगी और ना ही घाटों का कायाकल्प होगा. इसके लिए काशी वासियों की मानसिकता में भी परिवर्तन लाना था. पीएम मोदी ने शुरुआत की काशी के घाटों से. पहले 80 घाट का कायाकल्प हुआ. फिर धीरे धीरे बाकी घाट बदले. अब नाव की सवारी करो तो सभी घाट साफ ही नजर आते हैं, लेकिन पीएम मोदी के इस दूसरे कार्यकाल में काशी में बदलाव नजर आने लगे हैं.
शायद ऐसा पहली बार हो रहा होगा कि किसी भी प्रधानमंत्री का लोकसभा क्षेत्र विकास की राह पर यूं सरपट आगे निकल जाएगा. आपने पहले पीएम नेहरु के फुलपुर को देखा है, इंदिरा जी की रायबरेली-अमेठी को देखा है, देवगौड़ा की हासन को देखा, वीपी सिंह की फतेहपुर, चंद्रेशेखर की बलिया को भी देखा, ऐसा ध्यान पहले किसी पीएम ने अपने लोकसभा क्षेत्र को नहीं दिया होगा. कोरोन से जंग हो तो वाराणसी रोल मॉडल बना, अब काशी विश्वनाथ का कायाकल्प. पीएम मोदी ने एक ऐसी मिसाल कायम कर दी है जिसके बाद तो यही कह जा सकता है कि काशी की विरासत भी जिंदा रहेगी और आधुनिकता की राह पर चल चुकी काशी अब पीछे मुड़ कर भी नहीं देखेगी.

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