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वसीम अहमद/अलीगढ़. देश-दुनिया के साथ-साथ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी मुहर्रम मनाया जाता है. यह भारत का ऐसा एकमात्र विश्वविद्यालय है, जहां छात्र मुहर्रम मानते हैं. इस विश्वविद्यालय में सुन्नी और शिया दोनों समुदाय के ही लोग बड़ी तादाद में मौजूद है. दरअसल, मुहर्रम का त्योहार मुसलमानों के लिए गम का माना जाता है. मुहर्रम के महीने की 10 तारीख को मुस्लिमों के नबी हजरत इमाम और हजरत हुसैन की शहादत हुई थी. इसी को लेकर मुस्लिम समाज इस पूरे महीने को गम के रूप मनाते हैं.

मुहर्रम की 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग मातम करते हैं. ताजिए बनाए जाते हैं, फिर उनको कब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किया जाता है. मुस्लिम समाज के शिया समुदाय के महिलाएं और पुरुष काले लिबास पहनते हैं. किसी परिवार में जब कोई मृत्यु हो जाती है, जिस तरह का माहौल उस परिवार में होता है, मुस्लिम समाज के लोग मुहर्रम की 10 तारीख को वही माहौल अपने घर में रखते हैं. चूल्हा नहीं जलाते हैं, झाड़ू नहीं लगाते हैं. खाना नहीं बनाते हैं. दूसरों के घर से खाना आता है तो खाते हैं.

इसलिए मनाया जाता है मुहर्रमशिया समुदाय के धर्मगुरु नादिर साहब बताते हैं कि लगभग 1400 साल पहले कर्बला की जंग हुई थी. यह जंग हजरत इमाम और हजरत हुसैन (यह दोनों भाई थे) ने साथ में मिलकर बादशाह यजीद की सेना के साथ लड़ी थी. बादशाह यजीद इस्लाम धर्म को खत्म करना चाहता था. इस्लाम धर्म को बचाने के लिए यह जंग लड़ी गई और इस जंग के अंत में हजरत इमाम और हजरत हुसैन की मृत्यु हो गई थी. जिस दिन इनकी मृत्यु हुई वह दिन मुहर्रम के महीने की 10 तारिख कही जाती है, इसलिए हर साल मुहर्रम की 10 तारीख को मातम किया जाता है.  मुस्लिम मुहर्रम के पूरे महीने को अपने लिए गम का महीना मानते हैं. इस महीने घर में कोई नया कपड़ा नहीं आता, कोई नई चीज़ नहीं आती, टीवी नहीं चलता, सिर्फ नमाज और कुरान की तिलावत की जाती है. मोहर्रम 10 तारीख को इमाम और हुसैन की शहादत वाले दिन शिया और सुन्नी मुस्लिम सभी मिलकर ताजिए निकालते हैं. फिर उनको कब्रिस्तान में जाकर सुपुर्द ए खाक किया जाता है.

शहर के लोग भी होते हैं शामिलजानकारी देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बैतूल सलात (धार्मिक स्थल) के मोजिम बताते हैं कि करीब 1965 से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बैतूल सलात में यहां अजादारी मनाई जाती है और यह अजादारी इमाम हुसैन की शहादत और उनके 72 साथियों की शहादत के गम में मनाई जाती है. जिनको कर्बला में यजीद की फौज ने 3 दिन की भूख और प्यास के बाद शहीद किया था. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मजलिस होती है और आशूरा ( मोहर्रम की 10 तारीख) के दिन यहां से जुलूस निकलता है. इस जुलूस में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अलावा बाहर शहर के लोग भी आकर शामिल होते हैं.
.Tags: Aligarh news, Local18, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : July 29, 2023, 16:43 IST

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