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अंजलि सिंह राजपूत/लखनऊ. लड़कियां अब आसमान में हवाई जहाज चला रही हैं ऐसे में यह तो सिर्फ मेट्रो है, इसे चलाना तो बहुत आसान है. एक बार ट्रेनिंग मिल गई फिर आपको कोई भी दिक्कत नहीं होती है. यह कहना है पहली महिला ट्रेन ऑपरेटर एकता केसरवानी का जिन्होंने हाल ही में 70 हजार किलोमीटर मेट्रो को दौड़ाकर ‘एंप्लॉय ऑफ द मंथ’ का पुरस्कार जीता है.

मूल रूप से प्रयागराज की रहने वाली एकता केसरवानी ने बताया कि रेलवे की लोको पायलट की नौकरी से ट्रेन ऑपरेटर और स्टेशन कंट्रोलर की नौकरी एकदम अलग है. मेट्रो को शहर में ही चलाना होता है. छोटे-छोटे स्टेशन होते हैं, ऐसे में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती है. यूपीएमआरसी की ओर से लड़कियों को खासतौर पर कैब दी जाती है आने और जाने के लिए इसके साथ ही हर तरह की सुविधाएं दी जाती हैं.

बिना छुट्टी लिए किया काम

एकता ने बताया कि उन्होंने 70 हजार किलोमीटर मेट्रो को दौड़ाकर यह रिकॉर्ड बनाया उन्होंने इस दौरान छुट्टियां बिल्कुल भी नहीं ली थी और अपनी सभी ड्यूटी को पूरी ईमानदारी से किया था. यही वजह है कि वह इस मुकाम को हासिल कर पाईं. वह आगे बताती हैं कि उनके पिता भरत लाल केसरवानी और मां माधुरी केसरवानी को उनके ऊपर काफी गर्व महसूस हुआ जब उन्हें यह पुरस्कार मिला.

मेट्रो के साथ नजरें भी दौड़ानी पड़ती हैं

एकता केसरवानी ने बताया कि ट्रेन ऑपरेटर की गद्दी पर जब वह बैठती हैं तो एक वक्त में चारों ओर अपनी नजरें दौरानी पड़ती है, जैसे ट्रैक देखना पड़ता है, ट्रेन की स्पीड पर नजर रखनी होती है और साथ ही यह भी देखना होता है कि कोई पैसेंजर पीली लाइन के आगे तो नहीं खड़ा है. वहीं स्टेशन कंट्रोलर की गद्दी पर जब वह होती हैं तो इसमें ज्यादा सतर्क तब होना पड़ता है जब मेट्रो स्टेशन पर बहुत भीड़ होती है या फिर कोई स्टेशन पर किसी भी तरह की टेक्निकल दिक्कत होती है. उन्होंने बताया कि आठ घंटे की ड्यूटी होती है.

लोग प्रोत्साहित करते हैं

एकता केसरवानी ने बताया कि जब लोग उन्हें देखते हैं स्टेशन पर तो उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें गर्व भी महसूस होता है. कई लोग होते हैं जो यह भी कह कर जाते हैं कि वे उनके जैसा ही बनना चाहते हैं. खासतौर पर लड़कियों को उनके ऊपर बहुत गर्व होता है.
.FIRST PUBLISHED : June 28, 2023, 17:44 IST

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