यूपी के इस जिले में लगता है धनुष यज्ञ मेला, जानिए कैसे हुआ नामकरण…क्या है महत्त्व

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सनन्दन उपाध्याय/बलिया: जिले के बैरिया थाना क्षेत्र अंतर्गत रानीगंज के कोटवा ग्राम पंचायत में लगने वाला 138 वर्ष प्राचीन मेला न केवल ऐतिहासिक है बल्कि पौराणिक भी है. इस मेले को धनुषयज्ञ मेला कहा जाता है. यह मेला खास तौर से संतों के लिए लगता है. इस संत शिरोमणि सुदिष्ट बाबा समाधि स्थल से न केवल संतो का आस्था जुड़ा है बल्कि लाखों लोगों के लिए यह समाधि स्थल आस्था का बड़ा केंद्र है.

यह मेला धार्मिक भावनाओं से भी जुड़ा है. कारणवश पहले दिन लोग बिना दर्शन किए मेला नहीं घूमते हैं. मेले में द्वाबा के कोने-कोने से लोग आते हैं और सुदिष्ट बाबा के समाधि पर पूजा-अर्चना करने के बाद हवन कुंड की राख को अपने घर ले जाते हैं. इस मेले का प्रारंभ बाबा ने ही किया था. इस मेले में रामलीला के दौरान सीताराम के विवाह के उपलक्ष में एकजोड़े का विवाह जरूर होता था.

धनुषयज्ञ मेले के नाम से भी जाना जाता हैइतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि सुदिष्ट बाबा समाधि स्थल पर लगने वाला मेला अगहन सुदी पंचमी से शुरू होता है. जिसका भूमि पूजन भी हो गया है. इसका इतिहास काफी प्राचीन है. इस मेले को धनुषयज्ञ मेले के नाम से भी जाना जाता है. एक महीने तक लगने वाले इस मेले में जन सैलाब देखने को मिलता है. इस बार का यह मेला 23 दिनों तक लगेगा. 17 दिसंबर से शुरू होकर 8 जनवरी 2024 तक यह मेल अपने भव्य रूप में चलेगा.

ऐसे शुरू हुआ यह पौराणिक मेलाश्री सुदिष्ट बाबा स्वामी महराज बाबा के सबसे छोटे शिष्य थे.इनका जन्म बैरिया तहसील के गोन्हिया छपरा गांव में हुआ था. इनका जन्म एक राजपूत परिवार में सन 1785 ई0 में हुआ था. गुरू सेवा से इन्होंने तमाम सिद्धियां प्राप्त कर सिद्ध सन्त हो गए. 1905 ई0 मे 120 वर्ष की उम्र में बाबा ब्रह्मलीन हो गए. प्रतिवर्ष बाबा के समाधि स्थल पर कोटवां में अगहन सुदी पंचमी को भव्य धनुषयज्ञ मेला लगता है. जिस समय महात्मा स्वादिष्ट बाबा जीवित थे उस समय से ही यहां रामलीला का भी आयोजन होता आ रहा है. उस समय यहां बालक बालिकाओं का विवाह भी कराया जाता था. जो सीताराम का रोल निभाते थे.

ऐसे पड़ा इस मेले का नामबक्सर, बिहार और जनकपुरी जैसा यहां माहौल होता है. बहुत प्राचीन परंपरा है. संतों का यह मिला है. इसका शुरुआत बाबा ने ही किया था. सबसे खास बात यह है कि इस धनुष यज्ञ मेले में सीताराम के विवाह के उपलक्ष में एक जोड़े का विवाह जरूर होता था. इसलिए इस मेले का नाम धनुषयज्ञ रखा गया. इस समाधि से न केवल संतों की आस्था जुड़ी है बल्कि लाखों लोगों की गहरी आस्था जुडी हुई है.
.Tags: Ballia news, Local18FIRST PUBLISHED : December 12, 2023, 20:37 IST



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