यूपी के इस गांव में देखी गई गिद्ध की 6 विलुप्त प्रजाति, आखिर कैसे कम हो गई इनकी संख्या?

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यूपी के इस गांव में देखी गई गिद्ध की 6 विलुप्त प्रजाति, आखिर कैसे कम हो गई इनकी संख्या?

वसीम अहमद /अलीगढ़: गिद्ध, जिसे अंग्रेजी में वल्चर कहा जाता है. शिकारी पक्षियों की एक महत्वपूर्ण प्रजाति है, जो मुख्य रूप से मृत जानवरों के शवों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होती है. गिद्धों की कई प्रजातियां होती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं. भारतीय सफेद पीठ वाला गिद्ध, हिमालयन गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध और पतला चोंच वाला गिद्ध. ये पक्षी आमतौर पर ऊंचे पेड़ों या चट्टानों पर घोंसला बनाते हैं और ऊंचाई से उड़ान भरते हुए शिकार को देखते हैं.

गिद्धों की संख्याओं में तेजी से गिरावट आ रही है. जहां डाईक्लोफेनाक जैसी दवाओं और प्लांटेशन कटौती के कारण इनकी आबादी संकट में है. इस स्थिति के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है. गिद्ध संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य इस महत्वपूर्ण पक्षी की प्रजातियों को विलुप्ति से बचाना है. इसी कड़ी मे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वन्यजीव विभाग के स्टूडेंट अक्सा जसीम, सैयद बासित और दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड बायोलॉजिस्ट विपिन कपूर सैनी बारासिंघा पर शोध के लिए लखीमपुर पहुंचे तो गिद्धों की लुफ्त हुई छह प्रजातियां पहली बार एक साथ दुधवा टाइगर रिजर्व में देखी. गिद्धों की लुप्त हुई इन प्रजातियों की संख्या करीब 259 थी.

फरसाया गांव में देखी गईं गिद्ध की 6 प्रजातिजानकारी देते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वाइल्ड लाइफ डिपार्टमेंट की स्टूडेंट अक्स जसीम ने बताया कि हम लोग बारहसिंगा के फीडिंग कलऊजी पर काम कर रहे थे. और अपने डाटा कलेक्शन के लिए गए, तो रास्ते में दुधवा टाइगर रिजर्व के बफर जोन मे एक गांव है फरसाया. वहां पर यह गिद्धों की विलुप्त प्रजातियां देखी गई. गिद्धों की उन प्रजातियों में से 6 प्रजातियां देखी गईं, जो लगभग लुप्त हो चुके हैं. इनकी संख्या 250 से 260 के लगभग थी.

पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं गिद्धअक्स जसीम ने आगे कहा कि गिद्धों की इन प्रजातियों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जो कर्कस ( मरे हुए जानवरों के शव )पड़े होते हैं. उन्हें ये खाते हैं. इससे रीकम्पोजिंग में हेल्प होती है, जो पर्यावरण के लिए लाभदायक है. गिद्धों की इन प्रजातियों के खत्म होने का सबसे बड़ा कारण हैबिटेट लॉस होना. जैसे कि जिन पेड़ों पर यह घोसला बनाते हैं उन पेड़ों को काटे जाना और डाईक्लोफेनाक नामक ड्रग की वजह से भी उनकी प्रजाति खत्म हो रही है.

कई बीमारियों को फैलने नहीं देते गिद्धआगे उन्होंने कहा कि गिद्धों को बचाने के लिए हम लोगों को इस डाईक्लोफेनाक नाम के ड्रग का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए. और प्लांटेशन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए. गिद्धों की इन नायाब प्रजाति की एक सबसे बड़ी खासियत यह है भी है कि यह जो मरे, सड़े,गले हुए जानवरों को खाते हैं. इसकी वजह से कई तरह के बैक्टीरिया और कई तरह की घातक बीमारियां हवा में नहीं घुलती है.
Tags: Aligarh news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : August 12, 2024, 11:52 IST

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