Agency:News18 Uttar PradeshLast Updated:January 26, 2025, 23:57 ISTTawaif art Basuka Ghazipur : वर्तमान में ये परंपरा केवल इनकी 10% आबादी तक सीमित है. ये कला कभी भारतीय संस्कृति का हिस्सा थी, लेकिन वक्त के साथ ये लगभग खत्म हो चुकी है.X
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“बसुका गांव जहां 300 साल पुरानी कला अब संघर्ष और बदनामी में बदल गई”गाजीपुर. करीब 300 साल पुरानी कला इस गांव के लिए सिर दर्द बन गई है. ये मुसीबत है गाजीपुर के बसुका गांव की, जिसका नाम जगदंब ऋषि के बेटे ‘बसु’ के नाम पर पड़ा. लेकिन ये गांव किसी दूसरी वजह से यहां कुख्यात है. बसुका गांव तवायफों की 300 साल पुरानी परंपरा के लिए जाना जाता है. कभी बसुका गांव का हर कोना मुजरे और गीत-संगीत से गूंजता था. यहां की तवायफें कला के जरिये अपनी आजीविका चलाती थीं, लेकिन अब बदले हुए सामाजिक और आर्थिक हालातों ने इस कला को लगभग खत्म कर दिया है.
गांव के निवासी विश्वनाथ यादव बताते हैं कि करीब तीन सदी पहले यहां की भैंस चराने वाली घुमंतू जातियां धीरे-धीरे नृत्य और गायन कला में लग गईं. धीरे-धीरे उनकी जनसंख्या बढ़ी और वे ‘नट’ जाति के रूप में पहचानी जाने लगीं. हालांकि वर्तमान में ये परंपरा केवल इनकी 10% आबादी तक सीमित है. विश्वनाथ यादव बताते हैं कि तवायफों की कला कभी भारतीय संस्कृति का हिस्सा थी, लेकिन वक्त के साथ ये लगभग खत्म हो चुकी है. इस कला की जगह अब वेश्यावृत्ति ने ले ली है, जिससे गांव की बदनामी हो रही है.
छवि धूमिल
बसुका गांव में भूमिहारों और राजभरों की संख्या अधिक है, जबकि तवायफों का पेशा मुख्य रूप से निचली मुस्लिम जातियों से जुड़ा है. ग्रामीणों का कहना है कि उनकी परंपरा को बचाना जरूरी है, लेकिन वेश्यावृत्ति ने इस कला की छवि को धूमिल कर दिया है.
तवायफों की नई पीढ़ी का कहना है कि ये कला अब उनके लिए आजीविका का जरिया नहीं रही. एक तवायफ कहती हैं कि पहले हमारी कला की कद्र थी, लेकिन अब हमें पेट पालने के लिए जिस्मफरोशी करनी पड़ रही है. लोकल 18 से बातचीत में नाम न बताने की शर्त पर एक तवायफ ने कहा कि हमारी कला अब लुप्त हो रही है. लोग हमें केवल जिस्मफरोशी से जोड़ते हैं, जबकि हमारा काम नृत्य और गायन है. पेट पालने के लिए मजबूरी में हमें ये सब करना पड़ता है.
हालांकि बसुका के कई लोग इस बात से दुखी हैं कि गांव का नाम सुनते ही लोग यहां शादी तक करने से कतराते हैं. बसुका गांव के रहने वाले कैलाश यादव बताते हैं कि कई तवायफें गांव छोड़ चुकी हैं. जो तवायफें यहां हैं वे समाज के साथ घुल-मिलकर रह रही हैं. उनके बच्चे स्कूल जाते हैं और अन्य बच्चों के साथ पढ़ाई करते हैं.
Location :Ghazipur,Uttar PradeshFirst Published :January 26, 2025, 23:57 ISThomeuttar-pradeshयूपी के इस गांव में 300 साल पुरानी ये कला बनी गांव वालों का सिरदर्द