अंकुर सैनी/सहारनपुर: सहारनपुर जिले के ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध नगर देवबंद से आठ किलोमीटर दूर मंगलौर रोड पर काली नदी के तट पर बसा गांव मिरगपुर तामसिक व मादक पदार्थों से दूर है और अपने खास रहन-सहन और सात्विक खानपान के लिए विख्यात है. नशा मुक्ति और सात्विक खानपान के लिए विशेष पहचान रखने वाले मिरगपुर गांव का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के बाद अब एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है. इस गुर्जर बहुल गांव में किसी भी दुकान पर नशे का सामान नहीं बिकता है. यहां के लोग मांस, मदिरा का सेवन और बीड़ी, सिगरेट सहित धूम्रपान जैसा किसी भी नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करते हैं. यहां तक की खाने पीने की चीजों में भी प्याज-लहसुन तक से परहेज करते हैं और शुद्ध शाकाहारी हैं.
500 साल पहले गुरु बाबा फकीरा दास दे गए थे आशिर्वाद
सहारनपुर के देवबंद की सीमा में बसा मिरगपुर गांव के ग्रामीणों का कहना है कि यह सिद्ध सन्यासी गुरु बाबा फकीरा दास जी की पवित्र भूमि है, उन्हीं के प्रताप से पिछले 500 वर्ष से गांव पूरी तरह से सात्विक है. गांव का कोई भी व्यक्ति प्याज, लहसुन, बीड़ी, सिगरेट, अंडा, मांस, मछली, शराब जैसे व्यसनों का सेवन नहीं करता है, जिस कारण यह गांव अक्सर चर्चाओं में रहता है. यहां तक कि अगर किसी की शादी में अन्य गांव में जाना हो तो वहां पर भी लहसुन प्याज का खाना नहीं खाया जाता.
सहारनपुर के इस गांव की चर्चा प्रदेश में नहीं बल्कि पूरे देश में है. इसलिए इस गांव को देश का सबसे पवित्र गांव कहा जाता है. 2020 में इस गांव का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था. जिसके बाद 2022 में इस गांव का नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है. यहां के लोग हर वर्ष बाबा फकीरा दास जी के नाम से मेले का आयोजन करते हैं और पूरे गांव के हर घर में जश्न मनाया जाता है. अगर कोई गलती से मादक पदार्थ व मांस मदिरा का सेवन कर लेता है, तो बीमारी से घिर जाता है. साथ ही ग्रामीण उसको गांव से बेदखल भी कर देते हैं.
Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : August 19, 2024, 17:33 IST