100 साल से ज्यादा समय का इंतजार उस वक्त खत्म हो गया है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया की पहली वैक्सीन के व्यापक इस्तेमाल को मंजूरी दे दी. 1880 में Alphonse Laveran ने पहली बार मलेरिया पैरासाइट की खोज की थी और तभी से इसकी वैक्सीन की खोज शुरू हो चुकी थी. डब्ल्यूएचओ ने RTS,S/AS01 (RTS,S) मलेरिया वैक्सीन के इस्तेमाल की सिफारिश की है, जिसका निर्माण GlaxoSmithKline (GSK) ने किया है. इस मलेरिया वैक्सीन का नाम Mosquirix रखा गया है. आपको बता दें कि दुनियाभर में हर साल मलेरिया संक्रमण के कारण करीब 4 लाख लोगों की जान जाती है और इसके कारण विश्व में हर दो मिनट में एक बच्चे की जान जा रही है.
इस महाद्वीप को मिलेगा सबसे बड़ा फायदा
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर साल आने वाले मलेरिया के मामलों में से सबसे ज्यादा केस सब-सहारन अफ्रीका (उप-सहारा अफ्रीका) में देखने को मिलते हैं. जो कि अफ्रीका महाद्वीप का हिस्सा है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इस क्षेत्र में मलेरिया के कारण हर साल 5 साल से कम उम्र के मरने वाले बच्चों की संख्या 2,60,000 से ज्यादा है. जिसका मतलब है कि, इस मलेरिया वैक्सीन के इस्तेमाल से कई हजार बच्चों की जान बचाई जा सकेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर-जनरल Dr. Tedros Adhanom Ghebreyesus ने कहा कि, यह एक ऐतिहासिक पल है, जो कि विज्ञान, बच्चों के स्वास्थ्य और मलेरिया रोकथाम की दिशा में एक बहुत बड़ी सफलता साबित होगा.
ये भी पढ़ें: How to walk: ये है चलने का सही तरीका, जो आपको रखता है फिट, क्या आप सही ढंग से चल रहे हैं?
Mosquirix की लेनी पड़ेगी इतनी डोज
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, RTS,S/AS01 मलेरिया वैक्सीन के द्वारा मध्यम से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में खासतौर से बच्चों में मलेरिया के कारण होने वाली मौतों को रोकने में सफलता प्राप्त होगी. इसलिए इस मलेरिया वैक्सीन के बच्चों को 4 डोज दिए जाएंगे, जिनकी उम्र 5 महीने से ज्यादा होगी. पहली तीन डोज 5 महीने से 17 महीने की उम्र के बीच दी जाएगी और चौथी डोज इसके लगभग 18 महीने बाद दी जा सकेगी. इससे इस उम्र वर्ग के बच्चों पर मलेरिया बीमारी का बोझ कम किया जा सकेगा और उन्हें स्वस्थ वयस्क के रूप में विकसित होने में मदद मिलेगी.
ये भी पढ़ें: Yoga for deep sleep: नींद ना आने के पीछे हो सकती है ये दिक्कत, बिस्तर पर ही करें ये योगा
मलेरिया के खिलाफ कितनी प्रभावशाली है ये वैक्सीनबच्चों में मलेरिया के खिलाफ इस वैक्सीन की प्रभावशीलता करीब 30 प्रतिशत है. जो कि P. falciparum के खिलाफ देखी गई है. यह पैरासाइट मलेरिया के पांच परजीवी प्रजातियों में से एक और सबसे घातक है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इस वैक्सीन की प्रभावशीलता बेशक कम है, लेकिन इसके जरिए हम मलेरिया रोकथाम मिशन में काफी सफल होंगे. साथ ही आने वाली वैक्सीन के लिए यह एक संभावना के रूप में देखा जाना चाहिए. आपको बता दें कि, यह ना सिर्फ मलेरिया के खिलाफ पहली वैक्सीन है, बल्कि ऐसा पहली बार हुआ है कि मानव परजीवी के खिलाफ किसी टीके को मंजूरी मिली हो. बैक्टीरिया या वायरस के मुकाबले परजीवियों की संरचना ज्यादा जटिल होती है.
डब्ल्यूएचओ ने घाना, केन्या और मलावी के स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर 2019 में इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. जिसके परिणामों का अध्ययन करने के बाद पहली मलेरिया वैक्सीन के बच्चों में व्यापक इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है. इस पायलट प्रोजेक्ट में इन क्षेत्रों से 8 लाख से ज्यादा बच्चों को अभी तक टीका लगाया जा चुका है. बता दें कि मलेरिया के लक्षणों (Malaria Symptoms) में सिरदर्द, बुखार, मांसपेशियों में दर्द, पसीना आना और ठंड लगना आदि शामिल हैं.
यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.