Maternal And Newborn Health: भारत में हेल्थकेयर को लेकर काफी सुधार आया है, लेकिन अभी भी काफी बदलाव होना बाकी है. मां और नवजात बच्चे की हेल्थ को लेकर कई सीरियस चैलेंज मौजूद हैं जिन पर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए. एक्सपर्ट्स का मानना है कि मैटरनेल और न्यूबॉर्न चाल्ड को होने वाले कॉम्पलिकेशंस को रोका जा सकता है, बशर्ते सभी महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, न्यूट्रिशन और वक्त पर जांच की सुविधाएं मिल सके.
दिल्ली में चौंकाने वाले आंकड़े
कैग (CAG) की हाल की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल 2016 से सितंबर 2022 के बीच दिल्ली में हर महीने औसतन 50 माताओं की मौत हुई. इस दौरान कुल 3,777 मैटरनल डेथ दर्ज किया गया, जिनमें से सबसे ज्यादा 638 मौतें साल 2021-22 में हुईं. यह चौंकाने वाला आंकड़ा उस शहर से आया है, जो देश की राजधानी है और जहां बेहतर हेल्थकेयर फैसिलिटी का दावा किया जाता है.
अभी लंबी दूरी तय करना है
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक, पिछले 20 सालों में भारत में तकरीबन 13 लाख महिलाओं की मौत प्रेग्नेंसी और चाल्ड बर्थ के कारणों से हुई है. हालांकि, मैटरनल मॉर्टिलिटी रेट में सुधार हुआ है. यूनिसेफ, पीआईबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2014-16 में 1,00,000 जीवित जन्मों पर 130 से घटकर 2018-20 में यह 97 तक आ गया है), लेकिन भारत अब भी 2030 तक मातृ मृत्यु दर को 70 तक लाने के संयुक्त राष्ट्र के टारगेट से पीछे है.
मैटरनल हेल्थ का फ्यूचर
मशहूर पीडियाट्रिशियन डॉ. सुमित चक्रवर्ती (Dr. Sumit Chakravarty) के मुताबिक, “मातृ और शिशु स्वास्थ्य किसी भी सेहतमंद समाज की बुनियाद है. मां की सेहत सीधे उसके बच्चे की जिंदगी और विकास को प्रभावित करती है. अगर मां की सेहत ठीक नहीं हो, तो वक्त से पहले डिलिवर, कम वजन वाला बच्चा और मां-बच्चे दोनों के लिए लंबे समय तक चलने वाले हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकते हैं.”
मैटरनल डेथ की बड़ी वजह
भारत में डिलिवरी के वक्त हद से ज्यादा ब्लीडिंग, जिसे पोस्टपार्टम हेमरेज कहा जाता है, मैटरनल डेथ का सबसे बड़ा कारण है. इसके अलावा इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर और असुरक्षित गर्भपात भी प्रमुख वजहें हैं. आइए जानते हैं कि NIH की एक रिपोर्ट के मैटरनल डेथ की वजह कौन-कौन सी हैं
ब्लीडिंग से 47.2% मौतें
इंफेक्शन से 12% मौतें
हाई ब्लड प्रेशर से 6.7% मौतें
गर्भपात से 4.9% मौतें