Why BHU could not become University of India Know the Reason Mohan Singh Bhojpuri

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Why BHU could not become University of India Know the Reason Mohan Singh Bhojpuri



एह विश्वविद्यालय के स्थापना के श्रेय अपना समय के तीन गो विभूतियन के दिहल जाला- महामना मदन मोहन मालवीय, सर सुंदरलाल अउर एनी बेसेंट. दरभंगा नरेश कामेश्वर प्रसाद सिंह काशी में शारदा संस्कृत विश्वविद्यालय बनावें के कल्पना कइलें रहनीं. सन् 1907 में एनी बेसेंट काशी में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया’ के नाम से विश्वविद्यालय खोलें के बाबत ब्रिटेन के सम्राट के पास आवेदन भेंजले रहलिन. एह आवेदन में -सैयद हुसैन इमाम, मजरुल हक़, मामून सुहरावर्दी के नाम शामिल रहल.
बाद में ई तीनों जन ‘यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया’ के आवेदन से आपन नाम वापस ले लिहलन. ई घोषणा कर के कि हम लोग अलीगढ़ में आपन विश्वविद्यालय खोलें जात बानीं. सन् 1911 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्थापना भईल. एकरा पहिले सन् 1890 मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कालेज के स्थापना हो चुकल रहें. मोहम्मडन ऐंग्लो कालेज आ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्थापना के बादे हिन्दू लोगन में अलग विश्वविद्यालय खोलें के भावना जागृत भईल. एनी बेसेंट एह बात के ऐलान कइलीं कि- उनकर आ मालवीय जी के एक राय बा कि नया विश्वविद्यालय ‘यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया’ के नाम से विख्यात हो और एक आवासीय शिक्षण संस्थान हो, और उसे उन सब संस्थाओं को जहां धर्म और नैतिकता की शिक्षा दी जाती हो अपने से सम्बद्ध करने का अधिकार हो. विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन, इतिहास और साहित्य की शिक्षा द्वारा हिन्दू संस्कृति का विकास इसकी विशेषता होगी.
हिस्ट्री ऑफ बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में एह बात के जिक्र मिलेला कि – ऐनी बेसेंट के एह बात के जानकारी मिल गईल रहें कि मुस्लिम विश्वविद्यालय के समिति के अंग्रेज शासन से निर्देशन मिलत बा. एह वजह से मालवीय जी आ ऐनी बेसेंट के अपना योजना में संशोधन करें के परल. ताकि ब्रिटिश शासन के पास दुगो केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रस्ताव भेंजल जा सकें. एक में हिन्दू संस्कृति अउर दूसरा में मुस्लिम संस्कृति के भावना प्रधान हो. मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रस्ताव के कारण “यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया” के सार्थकता कम हो गईल. एह से मालवीय जी अउर ऐनी बेसेंट के ‘यूनिवर्सिटी ऑफ बनारस’ या काशी विश्वविद्यालय के नाम पर सहमत होवें के पड़ल. सेंट्रल हिन्दू स्कूल के काशी विश्वविद्यालय के केंद्र के रूप में मान्यता मिलल.
सेन्ट्रल हिन्दू विद्यालय के बनावें खतिर जमीन तत्कालीन काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह जी उपलब्ध करववलें रहनीं. ठीक वइसे ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय खातिर जमीन भी काशी नरेश के ही देन रहल. सुबह गंगा में स्नान के बाद काशी नरेश जी महामना मालवीय जी से कहनीं कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पैदल चलकर जवन जमीन आप नाप लेबि, ऊँ जमीन विश्वविद्यालय के हो जाई. एह तरह से लगभग 1300 एकड़ जमीन काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हासिल भईल. विश्वविद्यालय के निर्माण खतिर एक करोड़ रुपया के जरूरत रहल. एह लक्ष्य खातिर मालवीय जी 1906 में प्रयाग कुम्भ के समय से प्रयास शुरू कई देले रहनीं. आर्थिक सहयोग हासिल करें के गरज से मालवीय जी हैदराबाद के निजाम के पास भ पहुँचली.हैदराबाद के निजाम मालवीय जी के बेइज्जती करें के मकसद से आपन जूती दान कइलन. मालवीय जी निजाम के जूती लेकर ही चली देहनी. अब मालवीय जी -जब निजाम के जूती के नीलाम करें खातिर शहर में घोषणा करके घूमे लगनीं, तब ई बात निजाम के मालूम भईल.
एकरा बाद मालवीय जी के बुलावा कर निजाम अली खां ओह समय 10 लाख रुपये के मदद कइलें. अइसहीं एगो वाकया विदेश में घटित भईल. महात्मा गांधी के सहपाठी रहलन गुजरात के लिमडी रियासत के राजकुमार सरदार सिंह रेवा भाई राना(एस आर राना). राना जी फ्रांस के नागरिकता प्राप्त कर चुकल रहनीं. पेरिस में मोती के व्यवसाय में लागल रहनीं. पेरिस में श्याम कृष्ण वर्मा अउर भीका जी कामा के भी सरदार जी से संपर्क रहल. अंग्रेज सरकार गुजरात में लिमडी रियासत जब्त कर चुकल रहें. सरदार सिंह भारत के इंग्लैंड अउर यूरोप में शिक्षा प्राप्त करें वाला छात्रन के कई तरह से छात्रवृत्ति के जरिये मदद करत रहनीं. रूस के क्रांतिकारियन से भी एस आर राना के गहिरा संबंध रहल. एक तरह से ओह समय ऊहां के भारत आ रूस के क्रांतिकारियन के बीच सेतु के काम करत रहनीं.
महात्मा गांधी जी के सलाह पर मालवीय जी एस आर राना के पास विश्वविद्यालय के अर्थिक मदद के वास्ते गइनीं. मालवीय जी ई देखि के हैरान हो गइनीं कि जवन आदमी एक सिगरेट के दुगो टुकड़ा करिके पियें के आदी बा- ऊँ विश्वविद्यालय के कतना आर्थिक मदद करीं सकेला. मालवीय जी के संकल्प अतना बड़हन रहल कि कभी निराश ना होत रहनीं. एस आर राना मालवीय जी से वादा कइनीं कि विश्वविद्यालय के आर्थिक सहयोग देबे खातिर एगो रात्रि भोज के आयोजन होई. ओह भोज में सब धनी-रईस लोग जुटल. ओह भोज में एस आर राना के सहयोग से मालवीय जी के अतना आर्थिक मिलल- जतना के उम्मीद मालवीय जी के भी ना रहल.
विश्वविद्यालय चार्टर के मुताबिक तब विश्वविद्यालय के मान्यता खातिर एक विद्यालय के जरूरत रहल. ऊँ जरूरत ऐनी बेसेंट के उदार सहयोग से पूरा भईल. सेन्ट्रल हिन्दू विद्यालय के पूरा आबाद परिसर ऐनी बेसेंट महामना मालवीय जी के हवाले करीं दिहलीन. ऐनी बेसेंट 1893 में थियोसोफिकल सोसाइटी के काम आगे बढ़ावें खातिर भारत आइल रहलिन. सन् 1917 में कांग्रेस के पहिला महिला अध्यक्ष चुनल गइलीं. 46 के उम्र में भारत अइलीं. लगभग 40 साल तक भारत में भारतीय नारी की तरह रहीं भारत के लोगन के शैक्षिक-आधात्मिक अउर सुप्त सांस्कृतिक चेतना के जगवलिन.
ओहि समय महात्मा गांधी 1893 में दक्षिण अफ्रीका पहुंच कर भारतीय अउर एशियाई मूल के लोगन के बीच पहुँचकर अंग्रेजन के रंगभेद नीति के विरोध शुरू कइनीं. बाद में भारत के आजादी के लड़ाई खातिर एक अस्त्र के रूप में दक्षिण अफ्रीका में ही ‘सत्याग्रह’ के खोज कइनीं.सन् 1893 में ही अमेरिका के शिकागो शहर में स्वामी विवेकानंद भारतीय वेदांत के धर्म- ध्वजा फहरवनीं. सन् 1893 में ही महर्षि अरविंद इंग्लैंड से भारत लौटकर बड़ौदा राज के सेवा में अइनीं. ई सब महापुरुष अपना-अपना तरह से देश के आजादी में अउर देश के क्रांतिकारी आंदोलन-असहयोग-सत्याग्रह आंदोलन-सामाजिक सुधार अउर थियोसोफिकल आंदोलन के आगे बढ़ावें में महत्वपूर्ण भूमिका निभावल.
भारत में अंग्रेज जवना तरह के शिक्षा के प्रचार-प्रसार करत रहलन, ओह शिक्षा में भारतीय धर्म, दर्शन, जीवन मूल्य के कवनों स्थान ना रहल. ऐनी बेसेंट के ई मान्यता रहल कि “ भारत की आत्मा सुसुप्त है. उसका उन्नयन धर्म में निहित है. यह भी कि बदली हुई परिस्थिति में राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा होनी चाहिए. ऐनी बेसेंट स्त्री-दलित-वंचितों के शिक्षा की पक्षधर थी. उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के भौतिक, नैतिक, आधात्मिक उत्थान होना चाहिए. उनका करुणा-ममता के सीख देने वाली शिक्षा के प्रति भी आग्रह रहल.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा के उद्देश्य वाक्य ह- “विघयाsमृतमश्रुते” अर्थात वह विघा जो अमरता प्रदान करें. एह घोषित उदेश्य खातिर ही महामना मालवीय जी, ऐनी बेसेंट आ सर सुंदरलाल जी जइसन विभूतियन के विचार अउर काशी नरेश, दरभंगा नरेश अउर देश अनेकानेक लोगन के आर्थिक सहयोग से 4 फरवरी 1946 के बसन्त पंचमी के दिन गंगा के पश्चिम तट पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नींव पड़ल. ओह समय के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के मौजूदगी,दरभंगा महाराज के अध्यक्षता, ऐनी बेसेंट के संचालन अउर महात्मा गांधी यादगार ऐतिहासिक पहिला सार्वजनिक भाषण के जरिये विश्वविद्यालय अपना 106 वाँ वर्षगांठ एह साल बसन्त पंचमी के मनावल हा. विश्वविद्यालय उदघाटन समारोह में देश के मशहूर वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस भी उपस्थित रहलन. जगदीश चंद्र बोस के बारे में बतावल जाला कि मार्कोनी के पहिले ‘बेतार के तार’ यंत्र के खोज कइलें रहलन. एकर प्रदर्शन भी रॉयल सोसाइटी लंदन में कर चुकल रहलन. मार्कोनी बाकी ओकर पेटेंट ना करवले रहलन. बाद में स्वामी विवेकानंद जी के सुझाव पर आ ऊहां के एगो शिष्या के आर्थिक सहयोग से भारत में पहिला पेटेंट जगदीश चंद्र बोस के नामे दर्ज भईल.
महामना मालवीय जी के हमेशा ई प्रयास रहें कि देश- दुनिया के हर विधा के महान वैज्ञानिक-विद्वान बी एच् यू के शैक्षिक माहौल के दुनिया में ऊँचाई तक पहुँचावें में योगदान दें. एह योजना के मूर्त रूप देबे खातिर एक बार मदन मोहन मालवीय जी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आवें के आग्रह कइलें रहनीं. ओह समय यूरोप में अउर खासकर जर्मनी में युहूदियन के संगे बुरा व्यवहार होत रहल. आइंस्टीन मालवीय जी के प्रस्ताव स्वीकार भी कर लेले रहलन. पर मालवीय जी आ ओह समय के वाइसचांसलर राधाकृष्णन जी के पास आइंस्टीन के प्रस्ताव स्वीकार के सूचना देर से प्राप्त भईल. एकरा पहिले ही अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अल्बर्ट आइंस्टीन प्रस्ताव आ चुकल रहें. आइंस्टीन बी एच् यू के बजाय अमरीका के प्रिंसटन चलीं गइलें. कल्पना कईल जा सकेला कि आइंस्टीन अगर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आ गईल रहतन तब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ख्याति में चार चांद लग जाइत. के बजाय अमरीका चली गइलें. ओह स्थिति में देश -दुनिया में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के नाम कतना रोशन होत. यहां एगो अउर प्रसंग याद करें के चाहीं.
अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धान्त के जर्मन भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद करें वाला दूनों वैज्ञानिक- मेघनाथ साहा अउर सतेन्द्र बसु भारत के रहलन. फिर भी बी एच् यू में- बीरबल साहनी, शांति स्वरूप भटनागर, जयंत विष्णु नार्लीकर जइसन वैज्ञानिकन के उत्कृष्ट सेवा के अवसर प्राप्त भईल बा. हिंदी के साहित्यकार-रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी अउर हजारी प्रसाद जी के योग्य शिष्यन में- नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, शिवप्रसाद सिंह विश्वनाथ त्रिपाठी, अउर रामदरस मिश्र के हिंदी साहित्य में अलग-अलग विधा में योगदान से भी बी एच् यू के नाम हिंदी जगत में रोशन भईल बा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दूसरे सरसंघ सदाशिव राव गोलवलकर, भी बी एच् यू में अध्यापन कर चुकल बानी. विश्व हिंदू परिषद के चर्चित नेता अशोक सिंघल भी बी एच् यू के छात्र रह चुकल बाड़न.
एकरा अलावा देश के उपप्रधान मंत्री जगजीवन राम, आर्य समाजी नेता अउर सांसद प्रकाशबीर शास्त्री भी यहां के छात्र रहलन. मौजूदा समय मे जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा-यहां के छात्र अउर छात्र संघ के अध्यक्ष भी रह चुकल बाड़न. केन्द्रीय मंत्री महेन्द्र पांडे,यहां छात्र संघ के महामंत्री अउर भोजपुरी अभिनेता-राजनेता मनोज तिवारी भी यहीं के छात्र रहल बाड़न.एकरा अलावा पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपना काम से बी एच् यू के छात्र नाम रोशन कइलें बाड़न. आजु भी मालवीय मिशन अउर बी एच् यू के पुरातन छात्रन के सहयोग से कइगो परमार्थ के काम सम्पन्न होत बा. मालवीय परिवार के हर छात्र दल-पार्टी, जाति-जमात से अलग होकर चुनाव लड़े वाला प्रत्याशी के तन-मन-धन से सहयोग करें के परम्परा आजुओं कायम बा.
इहो एगो विशेषता बा कि बनारस के तालबद्ध कुलगीत- मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्वविघा की राजधानी……..की रचना कवनों साहित्यकार के बजाय मशहूर वैज्ञानिक शांतिस्वरूप भटनागर के कईल ह. हर साल शान्ति स्वरूप भटनागर के याद में विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करें वाला वैज्ञानिक के शांति स्वरूप भटनागर पुरुस्कार दिहल जाला. इहे ना भारत में पहिलका परमाणु पोखरन विस्फोटक के ‘इग्नाइट सिस्टम’ भी बी एच् यू के वैज्ञानिक तैयार कइलें रहलन. एह विश्वविद्यालय के पहिलका कुलपति सर सुंदरलाल जी भइलें. सरसुन्दर लाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भी पहिला गैर अंग्रेज कुलपति रहलन. उनका नाम पर बी एच् यू के सर सुंदरलाल अस्पताल समर्पित भईल बा. कर्ण सिंह जइसन विद्वान भी यहां के चांसलर रह चुकल बाड़न. सन् 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के नेता राजनारायण भी यहां के छात्र रहलन. कहल जाला कि जब सन् 1953 में आचार्य नरेन्द्र देव बी एच् यू के वाइसचांसलर रहलन-तब राजनारायण जी उनकरा शरीर के रोज मालिश करत रहलन. राजनारायण जी ओह समय बी एच् यू के पास अपना ममहर में रहत रहलन.
एह तरह के हर तरह के रंग से मालवीय जी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बगिया आजुओं गुलजार बा.कुछ साल पहिले यहां वैदिक विज्ञान केंद्र अउर हिन्दू अध्ययन केंद्र के तहत प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, परम्परा-संस्कृति-साहित्य अउर मौजूदा समय में ओकर उपयोगिता पर भी स्वतंत्र विभाग के तहत अध्ययन-अध्यापन के काम शुरू भईल हा. मौजूदा वाइसचांसलर प्रो सुधीर जैन मालवीय जी के विश्वविद्यालय गरीब छात्रन के आर्थिक मदद खातिर ‘प्रतिदान कोष’ के शुरुआत कइलें बानी. विश्वविद्यालय के पुरातन छात्रन की ओर भरपूर मदद भी आवें लागल बा. ई महामना मदन मोहन मालवीय जी के परम्परा के मेल में बा कि आजु भी बी एच् यू से शिक्षा प्राप्त हर छात्र बढ़चढ़कर अइसन हर काम में आपन सहयोग कईल आपन फर्ज समझेला.
(मोहन सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)

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