What is Type-5 diabetes: दुनिया भर में मधुमेह के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, आपने अक्सर टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के बारे में सुना होगा, लेकिन कुपोषण से जुड़े मधुमेह का नाम टाइप-5 डायबिटीज रखा गया है. ये दशकों बाद दुनियाभर में अटेंशन पा रहा है. इसे पहली बार तकरीबन 70 साल पहले दर्ज किया गया था. जिस कंडीशन को पहले अनडिफाइन रखा गया था, उसे हाल ही में थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) की वर्ल्ड डायबिटीज कॉन्ग्रेस में टाइप-5 डायबिटीज के तौर पर नामित किया गया था.
पहली बार कब रिपोर्ट की गईये कंडीशन, जो अक्सर यंग और दुबले एडल्ट्स में होती है, पहली बार 1955 में जमैका में रिपोर्ट की गई थी, और फिर इसे जे-टाइप डायबिटीज (J-type diabetes) के रूप में डिफाइन किया गया था. 1960 के दशक में, ये स्थिति भारत, पाकिस्तान और सब-सहारा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कुपोषित आबादी में रिपोर्ट की गई थी. जबकि 1985 में, डब्ल्यूएचओ ने इस स्थिति को डायबिटीज के एक अलग रूप के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन 1999 में इसने पदनाम हटा दिया क्योंकि कोई प्रोपर फॉलोअप स्टोरी और सपोर्टिंग इविडेंस नहीं थे.
टाइप-5 डायबिटीज क्या है?ये कुपोषण से जुड़ा डायबिटीज है, जो आमतौर पर लो और मिडिल इनकम वाले देशों में दुबले और कुपोषित टीनएजर्स और यंग एडल्ट्स को प्रभावित करता है. अनुमान है कि टाइप 5 डायबिटीज दुनिया भर में 20 से 25 मिलियन (दो से ढाई करोड़) लोगों को प्रभावित करता है, खास तौर से एशिया और अफ्रीका में. पहले की फाइंडिग्स से पता चला था कि कुपोषण से जुड़ा डायबिटीज इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण होता है.
कैसे पहुंचाता है नुकसानहालांकि, इंसुलिन इंजेक्शन, जैसा कि टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों में होता है, इन पेशेंट्स को फायदा नहीं पहुंचाएगा. कुछ मामलों में, इससे खतरनाक रूप से लो ब्लड शुगर हो सकता है. न्यूयॉर्क, यूएस में अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन में ग्लोबल डायबिटीज इंस्टीट्यूट में मेडिसिन की प्रोफेसर मेरेडिथ हॉकिन्स ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह के डायबिटीज वाले लोगों में इंसुलिन सिक्रिट करने की क्षमता में एक गंभीर दोष होता है, जिसे पहले पहचाना नहीं गया था. इस खोज ने इस स्थिति के बारे में हमारी सोच और हमें इसका इलाज कैसे करना चाहिए, इसमें क्रांति ला दी है,”
हाल की स्टडी2022 के एक स्टडी में, जो डायबिटीज केयर जर्नल में छपा हुआ, हॉकिन्स और वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में उनके सहयोगियों ने प्रदर्शित किया कि कुपोषण से से जुड़ा टाइप-2 डायबिटीज से मौलिक रूप से अलग है, जो आमतौर पर मोटापे के कारण होता है, और टाइप 1 डायबिटीज, एक ऑटोइम्यून बीमारी है. हालांकि, एक्सपर्ट ने कहा कि “डॉक्टर अभी भी इन मरीजों के इलाज के बारे में श्योर नहीं हैं, जो अक्सर डायग्नोसिस के बाद एक साल से ज्यादा जिंदा नहीं रहते हैं.”
वर्किंग ग्रुप बनाया गयाइस कंडीशन को बेहतर ढंग से समझने और ट्रीटमेंट डेवलप करने के लिए, आईडीएफ ने एक वर्किंग ग्रुप बनाया है. हॉकिन्स के मुताबिक, इस स्थिति का “ऐतिहासिक रूप से बहुत कम डायग्नोसिस किया गया है और इसे खराब तरीके से समझा गया है”. उन्होंने कहा कि “कुपोषण से जुड़ा मधुमेह टीबी से ज्यादा है और तकरीबन एचआईवी/एड्स जितना ही कॉमन है”.
हॉकिन्स ने कहा, “एक ऑफिशियल नाम की कमी ने मरीजों का डायग्नोसिस करने या असरदार ट्रीटमेंट खोजने की कोशिशों में रुकावट डाली है.” वर्किंग ग्रुप को अगले 2 वर्षों में टाइप 5 डायबिटीज के लिए फॉर्मल डायग्नोस्टिक और थेरेपेटिक गाइडलाइंस डेवलप करने का काम सौंपा गया है.
ये डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया को डिफाइन करेगा और बीमारी को मैनेज करने के लिए गाइडलाइंस डेवलप करेगा. ये रिसर्च कोलैबोरेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक ग्लोबल रजिस्ट्री भी स्थापित करेगा, और दुनिया भर में हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को ट्रेन करने के लिए शिक्षा मॉड्यूल विकसित करेगा.
(इनपुट-आईएएनएस)
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