Up vidhan sabha chunav 2022 know all things about chillupar assembly seat up assembly election 2022 bjp bsp sp congress

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गोरखपुर. चिल्‍लूपार विधानसभा सीट में कभी किसी पार्टी का दबदबा नहीं रहा. यहां का वोटर हमेशा से व्‍यक्‍तिवादी रहा है. फिलहाल जिस व्‍यक्‍ति की यहां चलती है, उसका नाम हरिशंकर तिवारी है. गोरखपुर में उन्‍हें पंडित जी भी कहा जाता है. वैसे तो पंडित जी से सभी परिचित होंगे, जो नहीं जानते यह सूचना उनके लिए है. दरअसल, गोरखपुर में सत्‍ता के दो केंद्र हैं, एक गोरखनाथ मंदिर. जिसके महंत वर्तमान मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ हैं. दूसरा हाता, जो कोई मठ या मंदिर नहीं है, हरिशंकर तिवारी का आवास है. यह दोनों जगहें ऐसी हैं, जिसका पता गोरखपुर का कोई भी शख्‍स आपको बिना सवाल किए बता देगा. हरिशंकर तिवारी 1985 से लेकर लगातार छह बार चिल्‍लूपार से विधायक रहे. वर्तमान में उनके बेटे विनय शंकर तिवारी विधायक हैं. हरिशंकर तिवारी से पहले इस सीट पर कल्‍पनाथ सिंह का दबदबा था. जो सोशलिस्‍ट पार्टी, कांग्रेस और जनता पार्टी से विधायक रहे. हरिशंकर तिवारी के उभार के बाद इतिहास बन गए.
हरिशंकर तिवारी 1985 में पहली बार विधायक बने थे. निर्दलीय. उनके नाम एक रिकॉर्ड भी है. भारत के राजनीतिक इतिहास में हरिशंकर तिवारी पहले बाहुबली हैं, जिन्‍होंने पहली बार जेल में रहते हुए चुनाव जीता था. यह वही समय था जब हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही का पूरे पूर्वांचल में बोलबाला था. एक ने खुद को ब्राह्मणों का स्‍वयंभू नेता घोषित कर रखा था, दूसरे ने ठाकुरों का. दोनों की अदावत भी चर्चा का विषय बनती थी. शाही ने अपनी सियासत का ठिकाना नवतनवा को बनाया था, जबकि पंडित जी ने चिल्‍लूपार को. हालांकि शाही को अमरमणि तिवारी से कड़ी टक्‍कर मिली, लेकिन हरिशंकर निर्बाध रूप से जीतते रहे. लखनऊ की सत्‍ता तक उनका दखल और दबदबा हो गया.
यूपी की वह ऐतिहासिक घटना

1997 की उस घटना को कौन भूल सकता है, जब कल्‍याण सिंह को रातोंरात मुख्‍यमंत्री की कुर्सी से हटाकर जगदंबिका पाल को मुख्‍यमंत्री बना दिया गया था. उसमें कांग्रेस से अलग होकर हरिशंकर तिवारी के साथ लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन करने वाले नरेश अग्रवाल और बच्‍चा पाठक का भी हाथ था. जगदंबिका पाल भी इसी समूह का हिस्‍सा थे. बाद में 24 घंटे में ही ये लोग जगदंबिका पाल को अकेला छोड़कर कल्‍याण सिंह से दोबारा मिल गए थे. जगदंबिका पाल न मंत्री रहे, न मुख्‍यमंत्री रहे, हाईकोर्ट ने उनसे पूर्व मुख्‍यमंत्री लिखने का भी अधिकार छीन लिया. उस दौर में जितनी भी सरकारें रहीं, चाहे वह कल्‍याण सिंह हों, मायावती, राजनाथ सिंह या मुलायम सिंह यादव. सभी की सरकारों में हरिशंकर तिवारी मंत्री रहे.
तिवारी को पहली बार चुनौती मिली

तिवारी को चुनौती 2007 में मिली. वो भी एक ब्राह्मण से. राजेश त्रिपाठी बसपा के टिकट से चिल्‍लूपार के चुनावी मैदान में उतरे. हरिशंकर तिवारी को लगभग सात हजार वोटों से हराकर इलाके में सनसनी बन गए थे. इसके बाद उन्‍होंने 2012 के चुनाव में भी चारों खाने चित कर दिया था. इसके बाद चिल्‍लूपार में यह चर्चा शुरू हो गई कि शेर अब बूढ़ा हो चला है. इधर हरिशंकर तिवारी को जब लगा कि राजेश त्रिपाठी से पार नहीं पाएंगे तो अपने कुनबे को बसपा में शामिल करा दिया. 2017 का चुनाव चिल्‍लूपार से हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी ने बसपा से लड़ा. उनके सामने फिर राजेश त्रिपाठी ही थे. इस बार भाजपा प्रत्‍याशी के रूप में. दोनों में कड़ी टक्‍कर हुई, लेकिन आखिरी बाजी विनय शंकर के हाथ लगी. महज 3359 वोट से वह जीत सके. विनय शंकर को 78177 वोट मिले थे, जबकि राजेश त्रिपाठी को 74818 मत प्राप्‍त हुए थे.
क्या है जातीय समीकरण

4.31 लाख वोटरों वाले चिल्‍लूपार विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटरों का वर्चस्‍व है. जिनकी संख्‍या लगभग 1.05 लाख है. दलित और निषाद वोटर भी निर्णायक स्‍थिति में हैं. फिलहाल हरिशंकर तिवारी का कुनबा बसपा छोड़ सपा में शामिल हो चुका है. 2022 के चुनाव में गोरखपुर की सभी सीटें योगी आदित्‍यनाथ की प्रतिष्‍ठा से जुड़ी हुई हैं. उनके मुख्‍यमंत्री बनते ही जिस तरह से पुलिस ने हाता में धावा बोला था, यह दर्शाता है कि चिल्‍लूपार को लेकर योगी की मंशा क्‍या है. गोरखपुर की यह अकेली विधानसभा सीट है, जहां भाजपा अब तक जीत नहीं पाई है.

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