रिपोर्ट- निखिल त्यागी
सहारनपुर: सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उत्तराखंड से बीटेक की पढ़ाई छोड़कर तुषार स्वामी स्वरूपानंद यति बन गए. अभी वे सहारनपुर के जूना अखाड़ा में शरण लिए हुए हैं. स्वामी स्वरूपानंद यतियह गुरु का दिया हुआ नाम है. स्वामी स्वरूपानंद यति में अध्यात्म की चेष्टा बचपन से ही थी. बचपन से ही स्वरूपानंद अध्यात्म की ओर अग्रसर रहे और शुरू से ही भगवान के प्रति समर्पित थे. स्वरूपानंद के नाना बहुत ही अध्यात्मिक थे. जब वह अपने नाना के घर गए वहीं से अध्यात्म की एक लौ उनके मन में जग गई थी.
स्वरूपानंद ने बताया, वो श्री गोविंद बल्लभ पंत कॉलेज पौड़ी गढ़वाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. इंजीनियरिंग करते करते ही मन में वैराग्य आ गया था.
सपने में जब आने लगे साधु के भेषस्वरूपानंद ने बताया जब वह कहीं भी देवताओं के दर्शन करने जाते थे तब यह नहीं सोचते थे कि वह संन्यास जगत में जाएंगे. लेकिन कई बार स्वप्न में दिखता था कि वह संन्यासी वस्त्रों को धारण करे हुए साधू संन्यासियों के बीच में बैठे हैं. तभी से उनकी यह जानने की इच्छा होने लगी कि ऐसा क्यों हो रहा है. उन्हें ऐसे स्वप्न क्यों दिखाई दे रहे हैं, क्यों उनको साधु महात्मा दिख रहे हैं और क्यों वह खुद को भी साधु के भेष में देख रहे हैं, कई बार तो स्वरूपानंद इतनी गहराई में चले जाते थे कि वह पूर्व जन्म की भी अपनी कुछ झलकियां देख लेते थे.
साधु संन्यासियों को देख हुई हलचलस्वरूपानंद ने बताया कि जब वह केदारनाथ गये और फिर उसके बाद में बद्रीनाथ धाम गये. तब वहां जाकर उन्होंने बहुत साधु संन्यासियों को देखा और मन में एक हलचल सी हुई. जब स्वरूपानंद वहां से वापस अपने घर आये तब उन्होंने अपने माता-पिता को कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं और संन्यासी जीवन जीना चाहता हूं. घरवाले उनकी बात सुनकर एकदम अचंभित हो गए कि स्वरूपानंद आखिर ऐसा क्यों कह रहा है.
माता का मिला सहयोगस्वरूपानंद के पिताजी का नाम हेमवंत कुमार जोशी है. जो आर्मी में नौकरी करके रिटायर हो चुके थे. स्वरूपानंद की बात सुनकर उनके पिताजी को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने स्वरूपानंद की बात को मानने से बिल्कुल इनकार कर दिया. स्वरूपानंद के बार-बार समझाने पर उनकी माता हेमा जोशी ने इस मार्ग पर चलने के लिए उनका पूरा साथ दिया. उनको पहला संन्यासी वस्त्र भी उनकी माता जी ने दिया था. कोई भी माता अपने पुत्र को इतनी आसानी से संन्यासी नहीं बनने देती है. लेकिन उनकी मां ने ऐसा खुद किया.
कई साधुओं ने गुमराह कियास्वरूपानंद ने बताया कि उनकी मां ही उनकी पहली गुरु है. उन्हीं के आशीर्वाद से वह इस मार्ग में आगे की ओर बढ़े हैं. स्वरूपानंद कई अलग-अलग आश्रमों में गए. कई साधुओं ने उनको मूर्ख भी बनाया. जब उनको संतुष्टि नहीं मिली तब वह श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा चोदामणि पहुंचे. महामंडलेश्वर परेश यति जी महाराज के चरणों में संन्यास ग्रहण किया और उन्होंने वेदांत की ओर स्वरूपानंद को अग्रसर किया.
उत्तराखंड के चांदनी गांव से थे तुषारस्वरूपानंद ने बताया की पूर्व में उनका नाम तुषार जोशी था और वह उत्तराखंड के जिला चम्पावत के एक गांव में रहते थे. जिसका नाम चंदानी था. उन्होंने श्री पूर्णगिरी इंटर कॉलेज भजनपुर से अपनी इंटर की पढ़ाई की. उसके बाद श्री गोविंद बल्लभ पंत कॉलेज पौड़ी गढ़वाल में B.Tech में दाखिला लिया और बीच में ही सब कुछ छोड़ कर अध्यात्म की राह पर चल दिए.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Saharanpur news, UP newsFIRST PUBLISHED : November 04, 2022, 16:41 IST
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