रिपोर्ट – रंगेश सिंह
सोनभद्र. उत्तर प्रदेश की आखिरी विधानसभा सीट दुद्धी के 11 गांव इस चुनाव में आखिरी बार वोट डालेंगे. यह सभी गांव 45 साल पहले शुरू हुई कनहर सिंचाई परियोजना के डूब क्षेत्र में आ रहे हैं. साल 2022 में परियोजना के पूर्ण होने का समय है. ढाई हजार परिवार साढ़े चार दशक से टिहरी जैसे विस्थापन के दर्द के बारे में कल्पना करके ही परेशान हो उठते हैं. अब वह वक्त आ चुका है, जब उस दर्द को झेलना और उससे मुकाबला करना पड़ेगा. 2022 का विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) इन गांव वालों के लिए लोकतंत्र का आखिरी पर्व होगा, जब यह मिलकर इसे मनाएंगे. अगले चुनाव तक सब अलग-अलग जगहों में बिखर चुके होंगे.
कनहर सिंचाई परियोजना 1976 से अटकी पड़ी थी. समाजवादी पार्टी की 2012 में सरकार बनने पर दोबारा से इसका निर्माण कार्य शुरू कराया गया था. जब कनहर सिंचाई परियोजना की आधारशिला रखी गई थी, तब इससे प्रभावित हर परिवार को उनकी जमीन के बदले 7.11 लाख रुपये मुआवजा निर्धारित किया गया था. कुछ परिवारों की तो तीसरी पीढ़ी को मुआवजा मिला. कुछ परिवारों को अभी तक मुआवजे का इंतजार है. 2022 में कनहर परियोजना का काम पूरा होना है. जैसे ही यह सिंचाई परियोजना शुरू होगी सुंदरी, भिसुर, अमवार, सुगवामन, मसलन, कोरची सहित 11 गांव पूरी तरह से पानी में समा जाएंगे. पानी में समा रहे इन गावों में 2,500 परिवार फिलहाल रह रहे हैं. आबादी लगभग 50,000 की है. इन गांवों में कुल 25,000 वोटर हैं.
मुआवजे से संतुष्ट नहीं
मुन्ना बैगा, कामेश्वर प्रसाद यादव, मुजाहिद हुसैन का तो विस्थापन के बारे में सोचकर दिल बैठा जा रहा है. वह कहते हैं कि हमारे बाप दादाओं ने इन बस्तियों को आबाद किया था. अपना घर, जमीन और जायदाद छोड़कर हटना अच्छा नहीं लग रहा है. कोरची गांव निवासी राजमतिया का सवाल मुआवजा को लेकर है. उनका कहना है कि सरकार जो मुआवजा दे रही है, उससे तो मकान तक नहीं बना सकते हैं, खेती की जमीन खरीदना तो दूर की कौड़ी है. अधिकतर गांवों के लोग मुआवजे से संतुष्ट नहीं हैं. वह तय राशि से दोगुना मुआवजा और हर विस्थापित होने वाले परिवार से कम से कम एक सदस्य को रोजगार, मकान और वैकल्पिक खेती लायक जमीन चाहते हैं.
तीन राज्यों, 108 गांवों को होगा फायदा
कनहर बांध परियोजना के चालू होने से यूपी, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कई हिस्सों को लाभ मिलने की उम्मीद है. जब इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी तो इसपर 27.75 करोड़ रुपये के लागत का अनुमान था, जो अब बढ़कर 2,000 करोड़ रुपये हो चुका है. हालांकि, इसके चलते 35,000 हेक्टेयर में सिंचाई का पानी पहुंचेगा और 108 गांवों का फायदा होगा.
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