अंजली शर्मा/कन्नौजः कन्नौज का इत्र उद्योग देश के साथ-साथ विदेश में भी बड़ी पहचान बन चुका है.लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इसीइत्र को बहुत कम लोग जानते और पहचानते थे.ऐसे में कन्नौज की यह प्राचीन धरोहर संभालने और इसको आगे बढ़ाने के लिए कन्नौज क्षेत्र के व्यापारियों ने कड़ी मेहनत की.
ऐसे ही एक इत्र व्यापारी ने कन्नौज में इत्र शोरूम की सोच का एक सपना देखा और उसको साकार करके दिखाया. पुराने समय मे घरों में गद्दियों से साइकिलों पर इत्र की सुगंध को बेचा जाता था.बहुत सारी चीज ऐसी थी जो इसके प्रचार प्रसार में आड़े आ रही थी.तभी एक सोच के साथ इस युवा ने यहां पर एक शोरूम खोल जहां पर सिर्फ और सिर्फ इत्र की बातें इत्र की दुकान और पूरा शोरूम खुशबू से भरा हुआ लोगों को दिखाई दिया.
इत्र शोरूम की कैसे और कब हुई शुरुआतकन्नौज में इत्र पहले गद्दियों में और फेरी लगाकर बेचा जाता था.निशिष तिवारी ने सन 2000 में करीब 23 साल पहले कन्नौज का पहला इत्र शोरूम खोला. जहां पर दर्जनों प्रकार की वैरायटी के इत्र और खुशबू मिलती थी. लोग दूर-दूर से यहां पर इत्र लेने आते थे.उसे वक्त इत्र की कीमतें भी बहुत साधारण हुआ करती थी,क्योंकि इत्र का प्रचलन सिर्फ और सिर्फ लगाने और कुछ चुनिंदा खाने की चीजों में किया जाता था.
20 साल पहले क्या हुआ करते थे रेटइत्र उद्योग ने बीते 20 सालों में काफी तरक्की की है.20 साल पहले अगर कन्नौज के प्रमुख इत्रों के रेट की बात की जाए तो गुलाब का इत्र 8 से ₹10,000 प्रति किलो में बहुत अच्छा मिल जाता था. वहीं संदल 12 से ₹15000 प्रति किलोग्राम बेला भी 7 से 8000 रुपए प्रति किलोग्राम के रेट से मिल जाता था.कुल मिलाकर सभी प्रकार के इत्र5 से ₹20,000 प्रति किलोग्राम के अंदर ही मिल जाते थे जो की सबसे अच्छी क्वालिटी क्षेत्र हुआ करते थे.
अब क्या है रेटअब इन सभी इत्रों के रेट की बात की जाए तो बहुत साधारणजो सबसे छोटी क्वालिटी का बनाया जाता है वह ₹5000 प्रति किलोग्राम मिलता है और गुलाब की रूह इत्र करीब 20 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकता है. ऐसे में संदल भी लाखों रुपए प्रति किलोग्राम कीमत में बिकता है. वही अच्छे बेला की कीमत भी ₹100000 प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है.
किस सोच से आगे बढ़ा व्यापारइत्र व्यापारी निशीष तिवारी बताते हैं की हमारे परिवार में ननिहाल में इत्र का कारोबार होता था, जबकि हमारे पिताजी के घर में सभी लोग रेलवे में थे क्योंकि इत्र के कारोबार में उनकी शुरू से रुची थी और यह रूचि इतनी बढ़ी की एक जुनून सा बन गई. पहलेतो उसकी भरपूर जानकारी ली. इसके बाद उन्होंने यह देखा और महसूस किया कि जो भी बाहरी व्यक्ति कन्नौज में इत्र लेने आता तो अन्य लोग अपनी इस प्रमुख पहचान को सही से नहीं बताते. किसी भी खुशबू को इत्र बता देना किसी भी चीज को भी इत्रसे कंपेयर कर देना. ऐसे में हमने इस पैटर्न को अलग किया और सबसे पहले एक शोरूम का निर्माण कराया. जिसमें लोग दूर-दूर से इत्रलेने आते थे. जिनको बताया जाता था कि कौन सा इत्र है और कौन सा साधारण खुशबू, ऐसा नहीं था कि हर खुशबू को इत्र का नाम दे दिया जाए.
क्या बोले इत्र व्यापारीइत्र व्यापारी निशीष बताते हैं कि आज देश-विदेश में खुशबू तो सब लोग बना लेते हैं.लेकिन कन्नौज के लिए यह बड़े ही गर्व की बात है कि इत्र उद्योग की शुरुआत कन्नौज से हुई. तो कोई भी कितना बड़ा व्यापार लगा ले. लेकिन कन्नौज में जो इत्र बनाने की पद्धति और कला है उसको कोई नहीं छीन सकता. ऐसे में जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक कन्नौज का इत्र उद्योग ऐसे ही चमकता रहेगा. आज हम सब इत्र व्यापारियों की ऐसी सोच होनी चाहिए कि हम लोगों को इस उद्योग को आगे कैसे बढ़ाना है.
.Tags: Kannauj news, Local18FIRST PUBLISHED : December 11, 2023, 20:52 IST
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