पीलीभीत. वैसे तो देश दुनिया में पीलीभीत को यहां के भारी भरकम बाघों के लिए पहचाना जाता है. लेकिन बावजूद इसके पीलीभीत को बांसुरी नगरी कहा जाता है. क्योंकि पीलीभीत में बांसुरी कारीगरी सदियों पुराना परंपरागत कारोबार है. वहीं बांसुरी को एक जिला एक उत्पाद के तहत लिस्ट भी किया गया है. लेकिन पीलीभीत में बांसुरी कारीगरी की शुरुआत एक सूफी संत ने कराई थी. पीलीभीत में बांसुरी का उद्योग सदियों पुराना है. शहर के मोहल्ला शेर मोहम्मद और लाल रोड के आस-पास के तमाम परिवार आज भी अपने पुश्तैनी काम के रूप में बांसुरी उद्योग चला रहे हैं. जानकारों की मानें तो पुराने समय में बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की संख्या आज के मुकाबले बहुत अधिक थी, लेकिन लोगों की रुचि इस काम में कम होती गई. आज कारीगरों की संख्या महज 200-225 के बीच सिमट कर रह गई है.लंबे अरसे से पीलीभीत में पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि पीलीभीत में बांसुरी कारीगरी के इतिहास को लेकर तस्वीर साफ नहीं है. लेकिन पुराने कारीगरों के बीच किदवंती है कि सदियों पहले पीलीभीत में सुभान शाह नामक सूफी संत आए थे. उन्होंने पाया कि शहर के वाशिंदों के पास कोई विशेष कारोबार नहीं है. ऐसे में उन्होंने किसी अन्य जगह से बांसुरी कारीगरों को पीलीभीत में लाकर बसाया. जिनके ज़रिए यह हुनर पीलीभीत के अन्य लोगों तक पहुंचा.समय के साथ बढ़ी बांसुरी उद्योग की समस्याअमिताभ अग्निहोत्री ने बताया कि इसके बाद से धीरे-धीरे बांसुरी उद्योग ने शहर में फलना-फूलना शुरू कर दिया था.एक समय में बांसुरी का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात पीलीभीत पर निर्भर था,लेकिन समय बीतने के साथ कई समस्याएं बढ़ीं और लोग इस कारोबार से अपने हाथ खींचने लगे. लेकिन आज भी पीलीभीत शहर के सैकड़ों परिवार अपने परम्परागत कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं.तत्कालीन जिलाधिकारी ने भी किए थे प्रयासअमिताभ अग्निहोत्री ने बताया कि 2011 बैच के आईएएस अफसर पुलकित खरे की गिनती सख्त व ईमानदार अधिकारियों में होती है. पीलीभीत में बतौर जिलाधिकारी अपनी तैनाती के दौरान पुलकित खरे ने पीलीभीत में कई नए पहल किए. उन्होंने एक तरफ जहां गोमती उद्गम स्थल व उस की धारा को अविरल बनाने के लिए कई प्रयास किए तो वहीं बांसुरी कारीगरी पर भी पुलकित खरे ने विशेष ज़ोर दिया. उनके कार्यकाल के दौरान ही बांसुरी चौराहे का निर्माण किया गया. वहीं बांसुरी कारीगरों के उत्थान के लिए भी कई अभियान चलाए गए. इसके साथ ही पुलकित खरे के प्रयासों से ही विश्व की सबसे बड़ी बांसुरी का खिताब पीलीभीत ने हासिल किया.FIRST PUBLISHED : October 19, 2024, 20:39 IST