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यूपी में विधानसभा चुनाव अगले साल हैं लेकिन सियासी नफे-नुकसान का गुणा भाग शुरू हो चुका है. इस बार बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर यूपी के सभी बड़े दल कह रहे हैं कि इस बार वो छोटे दलों से ही गठजोड़ करेंगे. बड़ी पार्टियां के बीच आपसी मेल मिलाप की संभावना कम नजर आ रही है. रही छोटे दलों की बात तो कहना चाहिए उनके जीत के आंकड़े पिछले चुनावों में बेशक कम रहे हैं लेकिन खेल बनाने और बिगाड़ने की सूरत में वो बड़ी पार्टियों के लिए माकूल साबित होते रहे हैं.
इसी वजह से चाहे कांग्रेस हो या फिर समाजवादी पार्टी या फिर बीजेपी, सभी छोटे दलों के साथ गलबहियां करने के उत्सुक हैं. कुछ समय पहले समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कह दिया था कि उनकी पार्टी छोटे दलों के साथ मिलकर चुनावों में उतरेगी. उसके बाद कांग्रेस ने भी यही राग अलापा है. वैसे छोटे दलों के साथ चलने से फायदा का गणित सबसे पहले बीजेपी ने इस राज्य में बखूबी खेलकर देखा है.
आइए देखते हैं कि इस बार छोटे दलों की तस्वीर आने वाले चुनावों में क्या रहने वाली है. साथ सूबे में कितने छोटे दल हैं और उनकी सफलता का आंकड़ा क्या रहता है या फिर क्या उनका इतना आधार है कि वो जीत-हार को प्रभावित कर सकें.
सवाल – यूपी में कितने छोटे दल हैं?– देश में पिछले चुनावों तक 1786 छोटे ऐसे दल चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड थे, जिसमें से ज्यादातर का ना तो कोई नाम जानता है और ना ही वो चुनावों में उतरते हैं. इन्हें चुनाव आयोग की मान्यता भी नहीं हासिल है लेकिन ये सभी दल इसके बाद भी लगातार बढ़ भी रहे हैं और इसमें से बहुत से चुनाव मैदान में ताल भी ठोंकते हैं.
अब रही बात कि यूपी में कितने छोटे दल हैं तो उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों के समय तक ऐसे रजिस्टर्ड दलों की संख्या 474 थी, माना जा सकता है कि ये संख्या अब और बढ़ गई होगी, क्योंकि चुनाव आयोग में राजनीतिक दल के तौर पर रजिस्टर्ड कराने की प्रक्रिया बहुत आसान होती है, लिहाजा बहुत से ऐसे दल उस पर लगातार रजिस्टर्ड होते रहते हैं, जिन्हें सही मायनों में जेबी संगठन कहना चाहिए.

उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20 के पास ऐसे छोटे दल हैं, जिनका असर स्थानीय स्तर से लेकर जातीय स्तर तक प्रदेश में है. बड़े दल इसी वजह से उन्हें अपने साथ लेना चाहते हैं.

सवाल – उत्तर प्रदेश के पिछले चुनावों में तकरीबन कितने छोटे दलों में चुनाव में शिरकत की थी?– उत्तर प्रदेश के पिछले चुनावों में 289 पार्टियों ने शिरकत की थी, जिसमें अगर 04 बड़े दलों बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को निकाल दें तो बाकी सभी दलों की स्थिति छोटे दलों की है. हालांकि उसमें लोकदल जैसी सियासी पार्टी भी है, जिसका पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हमेशा एक मजबूत जनाधार रहा है लेकिन वो पिछले कुछ सालों में सिमटता हुआ दिखा है.
सवाल – छोटे दलों में कितने ऐसे दल हैं, जो चुना्वों में असर डाल सकते हैं?– ऐसे दलों की संख्या मोटे तौर पर 12-15 के बीच या इससे कुछ ज्यादा हो सकती है, पिछले चुनावों में बीजेपी का गठजोड़ 13 से ज्यादा छोटे दलों के साथ था, जिसने उनकी जीत में बड़ी भूमिका भी अदा की. इससे पहले बीजेपी ने वर्ष 2012 के चुनावों में पहली बार इस तरह का प्रयोग शुरू किया था. इन दलों का आधार एक खास जातीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक होता है, लिहाजा ये सीमित स्तर पर निश्चित तौर पर असर डालते हैं.
सवाल – उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनावों के मद्देनजर शीर्ष 10 गैर मान्यता प्राप्त सियासी दल कौन से हैं?– अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस, इत्तेहाद ए मिल्लत कौंसिल, कौमी एकता दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल, महान दल, पीस पार्टी, राष्ट्रवाद कम्युनिस्ट पार्टी, स्वराज दल और प्रगतिशील मानवसमाज पार्टी. इसके अलावा जिन छोटे दलों का उभार पिछले कुछ सालों में मजबूती से नजर आया है, उसमें निषाद पार्टी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) और आजाद समाज पार्टी हैं.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन करके उनके असर को भुनाने का काम किया और इसमें उसे सफलता भी मिली है

सवाल – पिछले चुनावों में बीजेपी ने ऐसा क्या किया कि छोटे दलों की महत्ता ज्यादा साबित हुई.?– भारतीय जनता पार्टी ने 2017 में अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन का प्रयोग किया था, उन्हें इसके सकारात्मक नतीजे मिले. तब भाजपा ने विधानसभा चुनावों में सुहेलदेव पार्टी को 8 और अपना दल को 11 सीटें दीं और खुद 384 सीटों पर चुनाव लड़ा. बीजेपी को 312, सुभासपा को 4 और अपना दल एस को 9 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद सभी की समझ में आ गया कि किस तरह ये छोटे दल काफी काम के साबित हो सकते हैं.
सवाल – और कौन से छोटे दल हैं, जो बड़े दलों के साथ जा सकते हैं या आपसी मोर्चा बन सकते हैं?– इस बार भारतीय समाज पार्टी ने 08 छोटे दलों का भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है. भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर हैं, जो पिछले चुनावों में बीजेपी के साथ थे. इस बार वो जिन पार्टियों के साथ मिलकर मोर्चा बनाने का ऐलान कर चुके हैं, उसमें असुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, भारतीय वंचित पार्टी, जनता क्रांति प्राटी, राष्ट्र उदय पार्टी और अपना दल (के) शामिल है.
सवाल – राजभर के मोर्चे का समीकरण क्या है?उत्तर प्रदेश के 140 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां राजभर वोट तो असर डालेंगे ही साथ ही पिछड़ों के भी वोट असर डाल सकते हैं.

प्रियंका गांधी ने भी ये साफ कर दिया है कि कांग्रेस इस बार बड़े दल की बजाए छोटे दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना पसंद करेगी.

सवाल – और छोटे दल कौन से हैं, जो चुनाव में मोर्चा बनाते रहे हैं या कुछ असर डालते रहे हैं?– इन दलों का असर बहुत सीमित है लेकिन ये पिछले दो तीन विधानसभा चुनावों में लड़ते रहे हैं. मोर्चा बनाते रहे हैं. हालांकि इनके वोट शेयर बहुत कम हैं. इन दलों में इंडियन जस्टिस पार्टी. राष्ट्रीय परिवर्तन मोर्चा, आंबेडकर क्रांति दल, आदर्श लोकदल, आल इंडिया माइनारिटीज फ्रंट, भारतीय नागरिक पार्टी, बम पार्टी, जनसत्ता पार्टी, किसान पार्टी और माडरेट पार्टी जैसे दल शामिल हैं. यूपी में तमाम छोटी बड़ी जातियां या समुदाय हैं, ये सभी उस पर अपने असर का दावा करते रहे हैं.
सवाल – वो छोटे दल कौन से हैं, जो बीजेपी के साथ हैं, जिनका अच्छा प्रभाव है?– मोटे तौर पर अपना दल और निषाद पार्टी बीजेपी के साथ हैं और उनका प्रदेश में एक खास वोटबैंक पर असर भी है.
सवाल – समाजवादी पार्टी की ओर कौन से छोटे दल जा रहे हैं?– यूपी में महान दल के नाम से उभरी पार्टी मौर्या और कुछ पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उसके अध्यक्ष केशव देव मौर्या ने हाल में दावा किया कि हम जिस पार्टी में शामिल हो जाएंगे, उसके लिए विनिंग फैक्टर बन सकते हैं. ये दल प्रदेश की 100 सीटों पर अपने असर की बात करता है. पिछले दिनों दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्या ने पीलीभीत से पदयात्रा भी निकाली. इस दल का असर मौर्या, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जातियों पर बताया जाता है, जो पूरे प्रदेश में फैले हुए हैं. खबरें बता रही हैं कि फिलहाल महान दल का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर है.
सवाल – कांग्रेस किन छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ सकता है?– ये तो अभी साफ नहीं है लेकिन लगता है कि क्षेत्रीय आधार असर वाले और कुछ जातीय समूहों पर असर वाले दलों से कांग्रेस की बातचीत चल रही है, जो उसके सिंबल पर चुनाव लड़ सकते हैं.
सवाल – क्या बहुजन समाज पार्टी भी छोटे दलों के साथ जाएगी?– बहुजन समाज पार्टी ने पहले ही साफ कर दिया है कि वो यूपी में सभी 403 सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी, किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी.
सवाल – पिछले तीन विधानसभा चुनावों की बात करें तो छोटे दलों का वोट शेयर क्या है?– पिछले तीन विधानसभा चुनावों में छोटे दलों का कुल मिलाकर वोट शेयर 10-12 फीसदी रहा है. जिसमें अपना दल का वोट शेयर बहुत असरदार रहा.

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