Sinhora is made here, women keep it for life – News18 हिंदी

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सनन्दन उपाध्याय/बलिया: उत्तर प्रदेश के भृगु नगरी यानी बलिया जिले में एक ऐसा भी क्षेत्र है, जिसकी पहचान सुहाग के प्रतीक से है. वह सुहाग का प्रतीक जिसको महिलाएं आजीवन बड़े हिफाजत और संभाल कर रखती हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं बलिया के हनुमानगंज के सिंहोरा की जिसकी डिमांड लगभग देश के कोने-कोने में है. यह इस क्षेत्र का प्रमुख व्यापार है. यहीं से इस सुहाग के प्रतीक का निर्माण होता है.  यहां  बने सिंहोरा का डंका देशभर में बजता है.

सिंहोरा सिंदूर रखने का पात्र मात्र नहीं है बल्कि हर सुहागिन का सौभाग्य है, बहुत प्रसिद्ध एक मांगलिक गीत है जो महिलाएं गाती गाती हैं. भाव विभोर कर देता है. ‘कहवां से आवेला सिन्होरवा-सिन्होरवा भरल सेनुर हो, ए ललना काहवां से आवेला पियरिया-पियरिया लागल झालर हो’. शायद महिलाओं को यह पता नहीं होता कि जो सुहाग का प्रतीक हमारे लिए इतना विशेष और महत्वपूर्ण है वह कैसे बनता होगा और कहां से आता होगा? आइए जानते हैं महिलाओं के इस सुहाग के प्रतीक के बारे में.

‘सिंहोरा’ में सिंदूर रखती हैं नवविवाहित महिलाएं

हिंदू वैवाहिक संस्कार में ‘सिंहोरा’ का बड़ा महत्व होता है. कहा जाता है कि सिंहोरा नवविवाहिता की डोली के साथ उसके मायके से आता है, और ससुराल में उसकी अर्थी के साथ ही विदा होता है. सिंहोरा थोक व्यापारी नंदू प्रसाद ने बताया कि यह हम लोगों का पुश्तैनी व्यापार है. इस व्यापार पर ही हम लोगों के परिवार का भरण पोषण आधारित है. इस व्यापार से बहुत अच्छा मुनाफा हो जाता है. हमारे यहां सुहाग का प्रतीक सिन्होरा यानि सिंदुरौटा बनाया जाता है और लगभग देश कोने-कोने में थोक के भाव में बिक्री की जाती है.

शादी विवाह के सीजन में होती है इसकी भारी डिमांड

हनुमानगंज निवासी व्यापारी नंदू प्रसाद ने बताया कि यह पूरा सिंहोरा का सिस्टम आम की लकड़ी का बनाया जाता है और आसपास के इलाकों में इसको बेचा जाता है. जैसे सिवान, बिहार, छपरा, गोरखपुर और मऊ आदि. हमारे यहां से कम से कम दो रेट में सिंहोरा थोक के भाव में बेचा जाता है. सबसे छोटा वाला सिंहोरा ₹80 का और सजा सजाया हुआ सिहोरा ₹100 का पड़ता है. यहां से थोक के भाव में सिंहोरा की बिक्री की जाती है. यह सिहोरा जैसे-जैसे साइज में बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे इसका ₹30 बढ़ता जाता है. इस क्षेत्र का यह एक प्रमुख उद्योग है. जो आज कई लोगों के जीविका का साधन बन गया है. इससे अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है. एक सिहोरा पर लगभग 55 रुपए की लागत आती है और ₹60 के हिसाब से इसको बेचा जाता है. साल भर में अगर शुद्ध बचत की बात करें तो लगभग 2 लाख के करीब शुद्ध मुनाफा हो जाता है.

ये हैं इसकी सबसे बड़ी खासियत

इस सिंहोरा का शादी विवाह में एक अपना अलग और विशेष महत्व होता है. औरतें इस सिंहोरा को अपने जान से भी ज्यादा कीमती समझ कर संजो कर रखती है. इस सिहोरा की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि यह आम की लकड़ी का बनता है अन्य किसी भी लकड़ी का बनाया ही नहीं जा सकता है. अन्य किसी लकड़ी का अगर बनाया जाता है तो यह टेढ़ा हो जाता है. सबसे कम रेट की बात करें तो एक सिहोरा ₹60 और सबसे अधिक ₹250 तक का मिलता है.
.Tags: Hindi news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : February 25, 2024, 16:39 IST



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